Sunday, May 30, 2010
हिंगलिश रिश्ते
Thursday, May 27, 2010
जन्म दिन हमारा मिलेंगे लड्डू सबको....इस पार्टी में आप सब सादर आमंत्रित हैं
चलिए आज आपको इसके जन्म से आजतक की कहानी सुनाती हूँ .
जैसा कि आप लोग मेरे परिचय से जानते हैं कि पत्रकारिता करने बाद मैने गृहस्थ जीवन को अपना लिया था .परन्तु लेखन का शौक और साहित्य में रूचि के कारण कभी कभार कविताएँ लिख डायरी में बंद करती रहती थी..कुछ घर गृहस्थी का बोझ कम हुआ तो कुछ न कर पाने की कुंठा सताने लगी , ऐसे में ही एक मित्र ने ऑरकुट से परिचय कराया.और वहां कुछ कम्युनीटीज़ पर अपना लिखा हुआ बांटना शुरू कर दिया. उस दौरान आभा क्षेत्रपाल की “सृजन का सहयोग ” और उसके सदस्यों ने मेरे रूठे आत्मविश्वास को मनाने में बहुत सहयोग दिया बहुत कुछ मिला वहां से ,बहुत से पुरस्कार भी और आराम से जिन्दगी चलने लगी .
फिर इसी क्रम में अचानक एक दिन एक फ्रेंड रिकुयेस्ट आई .और उस इंसान ने धकेल दिया मुझे एक्टिव ब्लॉगिंग के इस दलदल में .जी हाँ वह थे इस ब्लॉगजगत के भीम, रुस्तमे ब्लॉग जगत, जंगली सांड, और भी न जाने क्या क्या सबके चहेते महफूज़ मियां .वही थे जिन्होंने सबसे पहले ब्लॉगवाणी से परिचय कराया ,फिर टिप्पणी की महत्ता समझाई. उनके ब्लॉग पर कैसे १०० टिप्पणी और पाठक आते हैं इस पर भाषण दिया( हाँलांकि इन सब टिप्स पर मैं कभी अमल नहीं कर पाई ) आज भी ये सोच कर हंसी आती है कि कैसे वो अचानक आकर कहते थे ” अरे जल्दी चटका लगाइए न ” और भाग जाते थे ( शायद किसी और को यही कहने 🙂 ) और मैं बेचारी सोचती रह जाती थी कि ये चटका क्या बला है ..और ये कहाँ और कैसे लगाया जाता है .हा हा हा . और ब्लॉग जगत के बहुत से विद्वानों से परिचय भी कराया. तो इस तरह वो मेरे ब्लॉग गुरु हुए 🙂 और इस तरह फिर हमने ब्लॉगिंग शुरू की….. बहुत बहुत शुक्रिया महफूज़ .
अब ब्लॉगिंग तो शुरू कर दी पर स्वभाव से जल्दबाज़ होने के कारण वर्तनी दोष भी बहुत किया करती थी ऐसे में एक मसीहा बन कर आईं संगीता स्वरुप और हमने झट उन्हें अपना एडिटिंग का कार्यभार सौंप दिया. बस लिखती और मेल कर देती कि दी! देख लो ज़रा और वो उसे शुद्ध कर वापस भेज देतीं और मैं उसे पोस्ट कर देती..मजे की बात तो यह कि वह जो अशुद्धियों को ठीक करतीं मुझे वो दिखाई ही नहीं पड़ती थीं 🙂 और मैं उनसे पूछती क्या ठीक किया है आपने ? ऐसा ही तो था ..हा हा हा हा. पर मेरी इन बदतमीजियों(इसमें द पर हलंत नहीं लग रहा ) के बावज़ूद वो आज तक बड़े प्रेम से मेरा ये कार्यभार संभाले हैं.वो मेरी सलाहकार, दोस्त, दी, एडिटर ,आलोचक सब हैं .और इसके लिए मैं उनका शुक्रिया अदा न करना भी अपना हक़ समझती हूँ 🙂
अब तक मैं ज्यादातर कविताएँ ही पोस्ट किया करती थी या कभी कभार कुछ छोटे लेख.या रिपोर्ताज .फिर एक दिन परिचय हुआ रश्मि रविजा से और उन्होंने मुझे कहा कि तुम सारी दुनिया घूमी हुई हो …कितनी यादें होंगी ..खट्टे मीठे पल होंगे .संस्मरण क्यों नहीं लिखती.?सुनकर पहले तो मैं बहुत हंसी कि ये मेरे बस की बात ही नहीं है . कैसे कोई अपने पल ऐसे पब्लिक में कहानी बना कर लिख सकता है ? और कोई पढेगा क्यों? क्या पड़ी है किसी को, बोरिंग नहीं हो जायेगा?..पर वो मुझे यदा कदा उकसाती रहीं कि नहीं कोशिश तो करो देखना लोग पसंद करेंगे .तो एक दिन उनका मान रखने के लिए मैने अपने जीवन का पहला संस्मरण लिखा “वेनिस की एक शाम ” और ये देख कर मुझे घोर आश्चर्य हुआ कि सच में लोगों ने उसे बहुत पसंद किया और यहाँ तक कि इन्हीं २-४ संस्मरण ने मुझे नामित संवाद सम्मान का अधिकारी भी बना दिया … तो रश्मि ! इस सलाह के लिए मैं आपकी हमेशा आभारी रहूँगी | 🙂
बस फिर क्या था हौसले बुलंद होते गए …नए दोस्त मिलते गए और कारवां बढता गया.
इन्हीं के साथ अनगिनत ऐसे नाम – अजय झा ,, अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी, पी० डी० , अल्पना वर्मा, अमिताभ श्रीवास्तव, विक्रम 7, अनिलकांत, रोहित , डॉ. अनुराग., कुश, नीरज गोस्वामी,सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी, जी० के० अवधिया, संजय भास्कर, सुनीता शानू , अविनाश वाचस्पति ,काजल कुमार , गौतम राजरिशी, दिलीप कठवेकर , रविंदर प्रभात, अनिल पुदस्कर ,चंडीदत्त ,शोभना चौरे , अपनत्व (सरिता)जो कभी – कभार अपनी झलक दिखा कर कर मेरी रचनाओं का मान बढा गए.सबकी अपनी व्यस्तताएं हैं… आप सभी का कोटिश: धन्यवाद .
http://shikhakriti.blogspot.com/2010/01/blog-post_27.html#comments
शरद कोकास
और अंत में उन सभी साथियों का शुक्रिया जिनके नाम मैं यहाँ भूल गई हूँ. मैं आप सभी की दिल से आभारी हूँ और आशा करती हूँ आप अपना आशीर्वाद बनाये रखेंगे.
और ये ब्लॉग जो अब मेरी एक जरुरत ही नहीं ज़िंदगी बन गया है आज इसका जन्म दिन मानते हुए मेरे साथ केक काटेंगे और मोमबत्तियों में फूंक मारते हुए ये कामना करेंगे कि ये ब्लॉग जगत जिसने बहुतों की भावनाओं को पंख दिए, न जाने कितनो को निराशा की गर्त से उठाकर सपनों के उड़न खटोले पर बैठाया, कितनों की साहित्य साधना को नए आयाम दिए..इसे हम किसी भी गुटबाज़ी, द्वेष, या विवाद का कठघरा नहीं बनायेंगे.ये एक बहुत ही खूबसूरत मंच है भगवान इसे दीर्घायु करे.
इति शुभम.
Wednesday, May 19, 2010
'एक शून्य तृप्ति..!!
आजकल भाव
सब सूख से गए हैं
आँखों से पानी भी
गिरता नहीं
परछाई भी जैसे
जुदा जुदा सी है
मन भी अब
पाखी बन उड़ता नहीं
पंख भी जैसे
क़तर गए हैं.
पर फिर भी
ये दिल धडकता है
ज्यादा इत्मीनान से.
ख़ुशी भी झलकती है
अपने पूरे गुमान से
हाँ पर
ख़्वाबों को मेरे
ज़ंग लग गई है
Tuesday, May 18, 2010
कैमरा ......लाइट ......एक्शन ....और बचपन खल्लास .....
कहीं छोटे छोटे बच्चे किसी रोमांटिक गाने पर उत्तेजक मुद्राओ और हाव भाव के साथ डांस करते हुए दीखते हैं …और जज तालियाँ बजाते हुए कहते हैं वाह कमाल के हाव भाव थे…थोडा और काम करो इन पर.
या उस ८ साल के बच्चे को पता होगा कि अवार्ड ज्यूरी किस कैटगरी में उसे अवार्ड दे रही है…? जो उसने उस कैटगरी का अवार्ड ही लेने से इंकार कर दिया ..बच्चे तो बस इनाम पा कर खुश हो जाया करते हैं …..किसी वयस्क ने ही उन्हें ये सब रटाया होगा न..ऐसी मानसिकता बच्चों में भरकर क्या फायदा “तारे जमीं पर ” बनाने का ?आखिर क्यों अपने स्वार्थ के लिए हम इन मासूमो से इनकी मासूमियत छीनते हैं ? क्या हक़ है हमें इनके बचपन को बर्बाद करने का? और क्या होगा इनका भविष्य?
-और 80 -90 के दशक कि सुपर स्टार बेबी गुड्डू का तो कोई अता पता ही नहीं….जिसके बारे में लोग कहते थे कि उसके माता – पिता उसकी बढ़त रोकने के लिए उसे दवाइयां खिलाते थे कि कहीं बड़ी होकर उसकी मासूमियत ख़तम हो गई तो उन्हें विज्ञापन कैसे मिलेंगे.
-वहीँ एक बाल कलाकार ने बताया कि उसकी मम्मी उसे जोर से चिकोटी काटती है जब वो किसी दृश्य के लिए रोने से मना कर देती है.
-एक बच्ची के अनुसार उसे पढने का बहुत शौक है पर वो रात- दिन शूटिंग में व्यस्त होने कि वजह से स्कूल नहीं जा पाती थी. .और इस वजह से १ क्लास में वो २ बार फ़ैल हुई..
-वहीँ एक बाल कलाकार के सारे पैसे उसके माता पिता लेकर उड़ा देते थे और उससे कहते थे कि “तुम अपना पिग्गी बैंक मत खोलना इसी में हैं सब.”..एक दिन जब बच्चे ने देखा तो उसमें सिर्फ कुछ सिक्के थे.
-कहा जाता है बेबी नाज़ (बूट पोलिश ) अपने समय में किसी भी स्टार से ज्यादा पैसे कमाती थी पर उसे अपनी कमाई का एक भी पैसा छूने नहीं दिया जाता था.वो जब घर वापस आती थी उसके माता पिता उसे लड़ते हुए मिलते थे और उसे ठीक से खाना भी नहीं मिलता था.
आखिर क्या गुनाह है इन बच्चों का? यही कि ये देखने में खूबसूरत हैं , प्रतिभावान हैं , या उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका उनकी किस्मत ने दिया है ?.तो क्या इस गलती की सजा के तौर पर उन्हें अपना बचपन जीने का हक़ नहीं? क्या अपने हमउम्र बच्चों के साथ खेलने का हक़ नहीं ..क्या उन्हें अपने माता पिता की गोद में मस्ती करने का मन नहीं करता..?:)
मेरा कहने का मतलब ये नहीं कि बाल कलाकारों के माता पिता कसाई होते हैं ..या बच्चों की प्रतिभा को अवसर नहीं देना चाहिए..परन्तु ये कार्य उन मासूमो का बचपन बरकरार रख कर भी किया जा सकता है…हम हर बात पर इंग्लेंड या अमेरिका की होड़ करते हैं , फिर इस बात पर क्यों नहीं कर सकते.?
वहां बाल कलाकारों से एक समय अवधि से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकता जिससे उनपर किसी भी तरह का मानसिक या शारीरिक दवाब न पड़े.
उनकी पढाई की समुचित व्यवस्था होती है और परीक्षाओं के दौरान शूट पर ही टीचर का प्रबंध होता है.
उनकी कमाई का एक हिस्सा एक ट्रस्ट में उनके नाम जमा करना जरुरी होता है.
वहां जिस तरह बाल मजदूर के लिए कानून है उसी तरह बाल कलाकार के लिए भी है..पर अफ़सोस हमारी सरकार को अभी तक इस तरह के किसी कानून की कोई जरुरत महसूस नहीं हुई…हाँ बाल मजदूरी के लिए कानून अवश्य हैं वो लागू कितने होते हैं वो एक अलग मुद्दा है.
एक सर्वे के अनुसार हमारे देश में बाल कलाकारों का जीवन आम लोगों के अनुपात में छोटा होता है…खेलने – कूदने की उम्र में प्रेस कांफ्रेंस , ग्लेमरस पार्टी और फेशन परेड अटेंड करने वाले ये बच्चे कब अपनी उम्र से बहुत पहले ही व्यस्क होने पर मजबूर हो जाते हैं इन्हें खुद भी अहसास नहीं होता. कैमरे कि तीव्र रौशनी और दिखावटी दुनिया में कब इन नन्हें मासूमो पर एक दिखावटी आवरण चढ़ जाता है. और कब इनका व्यक्तित्व धूमिल हो जाता है ये शायद वक़्त निकल जाने पर इन्हें या इनके घरवालों को पता चलता हो . परन्तु इस नकली चूहा रेस में इनके बचपन के साथ साथ इनका भविष्य भी वयस्कों की स्वार्थपरता और लालच की भेंट चढ़ जाता है.
*चित्र गूगल से साभार
Monday, May 17, 2010
महिला ब्लॉगर्स का सन्देश जलजला जी के नाम
कोई मिस्टर जलजला एकाध दिन से स्वयम्भू चुनावाधिकारी बनकर.श्रेष्ठ महिला ब्लोगर के लिए, कुछ महिलाओं के नाम प्रस्तावित कर रहें हैं. (उनके द्वारा दिया गया शब्द, उच्चारित करना भी हमें स्वीकार्य नहीं है) पर ये मिस्टर जलजला एक बरसाती बुलबुला से ज्यादा कुछ नहीं हैं, पर हैं तो कोई छद्मनाम धारी ब्लोगर ही ,जिन्हें हम बताना चाहते हैं कि हम इस तरह के किसी चुनाव की सम्भावना से ही इनकार करते हैं.
ब्लॉग जगत में सबने इसलिए कदम रखा था कि न यहाँ किसी की स्वीकृति की जरूरत है और न प्रशंसा की. सब कुछ बड़े चैन से चल रहा था कि अचानक खतरे की घंटी बजी कि अब इसमें भी दीवारें खड़ी होने वाली हैं. जैसे प्रदेशों को बांटकर दो खण्ड किए जा रहें हैं, हम सबको श्रेष्ट और कमतर की श्रेणी में रखा जाने वाला है. यहाँ तो अनुभूति, संवेदनशीलता और अभिव्यक्ति से अपना घर सजाये हुए हैं . किसी का बहुत अच्छा लेकिन किसी का कम, फिर भी हमारा घर हैं न. अब तीसरा आकर कहे कि नहीं तुम नहीं वो श्रेष्ठ है तो यहाँ पूछा किसने है और निर्णय कौन मांग रहा है?
हम सब कल भी एक दूसरे के लिए सम्मान रखते थे और आज भी रखते हैं ..
अब ये गन्दी चुनाव की राजनीति ने भावों और विचारों पर भी डाका डालने की सोची है. हमसे पूछा भी नहीं और नामांकन भी हो गया. अरे प्रत्याशी के लिए हम तैयार हैं या नहीं, इस चुनाव में हमें भाग लेना भी या नहीं , इससे हम सहमत भी हैं या नहीं बस फरमान जारी हो गया. ब्लॉग अपने सम्प्रेषण का माध्यम है,इसमें कोई प्रतिस्पर्धा कैसी? अरे कहीं तो ऐसा होना चाहिए जहाँ कोई प्रतियोगिता न हो, जहाँ स्तरीय और सामान्य, बड़े और छोटों के बीच दीवार खड़ी न करें. इस लेखन और ब्लॉग को इस चुनावी राजनीति से दूर ही रहने दें तो बेहतर होगा. हम खुश हैं और हमारे जैसे बहुत से लोग अपने लेखन से खुश हैं, सभी तो महादेवी, महाश्वेता देवी, शिवानी और अमृता प्रीतम तो नहीं हो सकतीं . इसलिए सब अपने अपने जगह सम्मान के योग्य हैं. हमें किसी नेता या नेतृत्व की जरूरत नहीं है.
इस विषय पर किसी तरह की चर्चा ही निरर्थक है.फिर भी हम इन मिस्टर जलजला कुमार से जिनका असली नाम पता नहीं क्या है, निवेदन करते हैं कि हमारा अमूल्य समय नष्ट करने की कोशिश ना करें.आपकी तरह ना हमारा दिमाग खाली है जो,शैतान का घर बने,ना अथाह समय, जिसे हम इन फ़िज़ूल बातों में नष्ट करें…हमलोग रचनात्मक लेखन में संलग्न रहने के आदी हैं. अब आपकी इस तरह की टिप्पणी जहाँ भी देखी जाएगी..डिलीट कर दी जाएगी.
Tuesday, May 11, 2010
जितने जमीन के ऊपर उतने ही जमीन के नीचे.
बच्चों के मनोविज्ञान की बात कहें तो बच्चे अपनी बात मनवाने में बहुत माहिर होते हैं…किस तरह वो आपको ब्लैकमेल कर लें और आपको पता भी नहीं चलता …कभी प्यार से तो कभी चापलूसी से, कभी रो कर तो कभी गुस्सा दिखा कर…ये सारे हथियार वो बहुत सोच समझ कर इस्तेमाल करते हैं…कब कहाँ कौन सा हथियार काम आएगा इसका भी उनको बिल्कुल सही अंदाजा रहता है…घर में वो रो कर या गुस्सा करके कोई बात नहीं मनवाएंगे , हाँ कहीं बाहर हैं या किसी के घर गए हुए हैं या किसी गैदरिंग में हैं तो ये उनका नायब हथियार होता है…असल में हम बच्चों को बहुत कम आंकते हैं…….
माँ – बाप तो इनके हाथों की कठपुतली भर हैं …जिन्हें ये जब जैसा चाहे वैसा नचा सकते हैं …और माँ बाप बेचारे अपने मासूमो पर निहाल हो होकर नाचते हैं …इसी पर एक आँखों देखा वाकया आप लोगों को सुनाती हूँ.
एक रेस्टोरेंट एक ८-९ साल का बच्चा अपनी माँ के साथ खड़ा है ,बच्चे के पिता कैश काउंटर पर है , बच्चे का मन समोसा खाने का है ,उसने अपनी मम्मी से इच्छा जाहिर की, मम्मी ने पापा को बोला ..पापा ने झिड़क दिया – यहाँ अच्छे नहीं कहीं और से दिलवा देंगे ..मम्मी ने यही बच्चे से दोहरा दिया कि पापा मना कर रहे हैं ..यहाँ अच्छे नहीं हैं. ..पर बच्चे को पता था कि यहाँ से गए तो बात गई .अपनी मम्मी से बोला आपको कहना नहीं आता ..देखो पापा अभी लेकर आयेंगे समोसे…..और एक कोने में जाकर खड़ा हो गया जहाँ से उसके पापा उसे देख सकें …और न जाने क्या करके दो मिनट बाद वापस अपनी मम्मी के पास आ गया …कुछ ही देर में उसके पापा हाथ में २ समोसों के साथ हाजिर थे…मम्मी हैरान कि ये क्या हुआ इसने यहीं खड़े खड़े ऐसा क्या किया ? आप भी सोच रहे होंगे ….सोचिये ..चलिए आपको उसी बच्चे के शब्दों में बताती हूँ.
मम्मी! मैने कुछ नहीं किया ..बस पप्पी डॉग फेस बनाया .(देखिये चित्र.)
ये बहुत काम की चीज़ होती है ,और इसे सिर्फ बच्चे ही बना सकते हैं
ये सिर्फ १२ साल की उम्र तक ही काम आता है ..टीन एज के बाद इसका प्रभाव ख़त्म हो जाता है
ये सिर्फ छोटी – मोटी चीज़ों के लिए ही काम आता है ..मसलन कोई खाने की चीज़ या कोई सस्ता सा खिलौना
पर हाँ कभी कभी कोई महंगा खिलौना सेल में हो और पापा उसे देख रहे हों तो तब भी ये बहुत काम आता है.
ये मम्मी से ज्यादा पापा पर काम करता है. पर बहन या भाइयों पर बिलकुल भी काम नहीं करता.बल्कि बहन या भाई इसे बनाते देख लें तो तुरंत उसके प्रभाव के ख़त्म होने का खतरा रहता है.
यदि बार- बार या ज्यादा इसका इस्तेमाल किया जाये तो भी इसका असर कम होने लगता है और धीरे धीरे ख़त्म हो जाता है.
अब आप ही बताइए हमसे ज्यादा मनोविज्ञान की समझ क्या ये बच्चे नहीं रखते ? हम भी स्कूल न जाने के तरह तरह के बहाने बनाया करते थे और उनमें से कुछ काम भी आ जाया करते थे ..परन्तु आजकल के बच्चे हम से कई कदम आगे हैं …किस परिस्थिति को किस तरह हेंडल करना है ये ही नहीं ..बल्कि कहाँ कैसे इस्तेमाल करना है और फिर उसकी किस तरह व्याख्या करनी है इसमें भी उन्हें पूरी तरह महारथ हासिल है ( INTELLIGENT LIFE magazine, December 2007 . के मुताबिक इंसानों में औसतन IQ की दर पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ रही है. मतलब आपका IQ संभवत: आपके माता पिता से ज्यादा है और आपके बच्चों का संभवत: आपसे ज्यादा होगा..)
क्या वाकई ये बच्चे जितने जमीन के ऊपर हैं उतने ही जमीन के नीचे भी नहीं ?
Wednesday, May 5, 2010
शायद झुलसती गर्मी में ही गर्माते हैं रिश्ते .....मेरा भारत प्रवास------ शिखा
रश्मि के साथ ……
खैर मुंबई में वो २ दिन बहुत ही शानदार गुजरे और उछलते कूदते हम दिल्ली आ पहुंचे , दिल्ली में १० दिन रहने का विचार था और हजारों काम , यही होता है दो नौका में एक साथ सवारी करने का अंजाम …हजारों काम पेंडिंग थे जिन्हें निबटाना था । पर हमारा दिमाग तो लगा था कि क्या जुगत लगाई जाये कि कुछ करीबी मित्रों से मिलने की सूरत निकल आये.पर सुबह से शाम तक चकरघिन्नी की तरह घूमने के चक्कर में अपनी ये योजना हमें खटाई में नजर आ रही थी…बहुत से लोगों से फ़ोन करने का और मिलने का वादा किया हुआ था …पर डर के मारे कॉल भी नहीं की ..कि यदि कॉल किया तो मिलने का और भी मन करेगा और न मिल पाने कि सूरत में कोफ़्त भी बहुत होगी..पर वो कहते हैं न कि इच्छा सच्चे दिल से कि जाये तो सारी कायनात उसे पूरा करने में जुट जाती है ..ऐसा ही कुछ हुआ… किसी जरुरी काम से हमारे पतिदेव को गुडगाँव जाना पड़ा और इस बहाने हम द्वारका में अपने एक रिश्तेदार के यहाँ रुक लिए …बस फिर क्या था .तपाक से किया संगीता दी (स्वरुप )को फ़ोन और झटपट पहुँच गए उनके घर.ये दास्ताँ आप उनके ब्लॉग पर भी पढ़ चुके होंगे और अगर नहीं पढ़ा तो अब पढ़ लीजिये गीत http://geet7553.blogspot.com/2010/04/blog-post_07.html पर।) और जी हमें एक दुसरे को पहचानने में जरा भी मुश्किल नहीं हुई। क्योंकि देखने में भी संगीता जी उतनी ही प्यारी हैं जितनी सुन्दर वो कवितायेँ लिखा करती हैं …हाँ उनकी कविताओं को पढ़कर ये सोचना थोडा मुश्किल हो सकता है कि वो कितनी ज्यादा हंसमुख हैं ,और उनका सेन्स ऑफ़ ह्यूमर कितना जबरदस्त्त है.वैसे इस मामले में मिस्टर स्वरुप ( उनके पतिदेव) भी कुछ कम नहीं ..जितनी देर बैठे फुलझड़ियाँ छोड़ते रहे और हम लपकते रहे.,हमारे ये तरह तरह के पोज बनाकर फोटो भी उन्हीं ने खींचे।
संगीता दी के साथ
Mr . Swarup के साथ
उस दिन इतेफाक से संगीता दी की छोटी बहन भी वहां थीं ,उनसे मिलने का सौभाग्य भी मिल गया हमें ,और हमने मिलकर खूब गप्पे मारी और ठहाके लगाये और जबरदस्त्त किस्म का “आम पन्ना“ पिया ..खाया क्या – क्या ये अभी नहीं बताउंगी वरना फिर से मूंह में पानी आ जायेगा और आगे कुछ लिखा नहीं जायेगा। तो जी …जी भर बातें करने के बाद हमने दी से विदा ली।
फिर बाद में कुछ और मित्रों को भी कॉल किया कि मिलने का समय तो नहीं पर कॉल करने से शायद थोड़ी शिकायतें कम झेलनी पड़ेंगीं ..जिनमे से एक महफूज़ मियाँ भी थे ,जिन्होंने फ़ोन उठाते ही कहा “। कहाँ हैं आप ? में अभी आ रहा हूँ आपसे मिलने …अगली ही गाडी से ” पर जैसा कि आप सब जानते हैं ..और मैं भी कि उनकी गाड़ी हमेशा एन वक़्त पर छूट जाया करती है….ही ही ही ।



