कहीं छोटे छोटे बच्चे किसी रोमांटिक गाने पर उत्तेजक मुद्राओ और हाव भाव के साथ डांस करते हुए दीखते हैं …और जज तालियाँ बजाते हुए कहते हैं वाह कमाल के हाव भाव थे…थोडा और काम करो इन पर.
या उस ८ साल के बच्चे को पता होगा कि अवार्ड ज्यूरी किस कैटगरी में उसे अवार्ड दे रही है…? जो उसने उस कैटगरी का अवार्ड ही लेने से इंकार कर दिया ..बच्चे तो बस इनाम पा कर खुश हो जाया करते हैं …..किसी वयस्क ने ही उन्हें ये सब रटाया होगा न..ऐसी मानसिकता बच्चों में भरकर क्या फायदा “तारे जमीं पर ” बनाने का ?आखिर क्यों अपने स्वार्थ के लिए हम इन मासूमो से इनकी मासूमियत छीनते हैं ? क्या हक़ है हमें इनके बचपन को बर्बाद करने का? और क्या होगा इनका भविष्य?
-और 80 -90 के दशक कि सुपर स्टार बेबी गुड्डू का तो कोई अता पता ही नहीं….जिसके बारे में लोग कहते थे कि उसके माता – पिता उसकी बढ़त रोकने के लिए उसे दवाइयां खिलाते थे कि कहीं बड़ी होकर उसकी मासूमियत ख़तम हो गई तो उन्हें विज्ञापन कैसे मिलेंगे.
-वहीँ एक बाल कलाकार ने बताया कि उसकी मम्मी उसे जोर से चिकोटी काटती है जब वो किसी दृश्य के लिए रोने से मना कर देती है.
-एक बच्ची के अनुसार उसे पढने का बहुत शौक है पर वो रात- दिन शूटिंग में व्यस्त होने कि वजह से स्कूल नहीं जा पाती थी. .और इस वजह से १ क्लास में वो २ बार फ़ैल हुई..
-वहीँ एक बाल कलाकार के सारे पैसे उसके माता पिता लेकर उड़ा देते थे और उससे कहते थे कि “तुम अपना पिग्गी बैंक मत खोलना इसी में हैं सब.”..एक दिन जब बच्चे ने देखा तो उसमें सिर्फ कुछ सिक्के थे.
-कहा जाता है बेबी नाज़ (बूट पोलिश ) अपने समय में किसी भी स्टार से ज्यादा पैसे कमाती थी पर उसे अपनी कमाई का एक भी पैसा छूने नहीं दिया जाता था.वो जब घर वापस आती थी उसके माता पिता उसे लड़ते हुए मिलते थे और उसे ठीक से खाना भी नहीं मिलता था.
आखिर क्या गुनाह है इन बच्चों का? यही कि ये देखने में खूबसूरत हैं , प्रतिभावान हैं , या उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका उनकी किस्मत ने दिया है ?.तो क्या इस गलती की सजा के तौर पर उन्हें अपना बचपन जीने का हक़ नहीं? क्या अपने हमउम्र बच्चों के साथ खेलने का हक़ नहीं ..क्या उन्हें अपने माता पिता की गोद में मस्ती करने का मन नहीं करता..?:)
मेरा कहने का मतलब ये नहीं कि बाल कलाकारों के माता पिता कसाई होते हैं ..या बच्चों की प्रतिभा को अवसर नहीं देना चाहिए..परन्तु ये कार्य उन मासूमो का बचपन बरकरार रख कर भी किया जा सकता है…हम हर बात पर इंग्लेंड या अमेरिका की होड़ करते हैं , फिर इस बात पर क्यों नहीं कर सकते.?
वहां बाल कलाकारों से एक समय अवधि से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकता जिससे उनपर किसी भी तरह का मानसिक या शारीरिक दवाब न पड़े.
उनकी पढाई की समुचित व्यवस्था होती है और परीक्षाओं के दौरान शूट पर ही टीचर का प्रबंध होता है.
उनकी कमाई का एक हिस्सा एक ट्रस्ट में उनके नाम जमा करना जरुरी होता है.
वहां जिस तरह बाल मजदूर के लिए कानून है उसी तरह बाल कलाकार के लिए भी है..पर अफ़सोस हमारी सरकार को अभी तक इस तरह के किसी कानून की कोई जरुरत महसूस नहीं हुई…हाँ बाल मजदूरी के लिए कानून अवश्य हैं वो लागू कितने होते हैं वो एक अलग मुद्दा है.
एक सर्वे के अनुसार हमारे देश में बाल कलाकारों का जीवन आम लोगों के अनुपात में छोटा होता है…खेलने – कूदने की उम्र में प्रेस कांफ्रेंस , ग्लेमरस पार्टी और फेशन परेड अटेंड करने वाले ये बच्चे कब अपनी उम्र से बहुत पहले ही व्यस्क होने पर मजबूर हो जाते हैं इन्हें खुद भी अहसास नहीं होता. कैमरे कि तीव्र रौशनी और दिखावटी दुनिया में कब इन नन्हें मासूमो पर एक दिखावटी आवरण चढ़ जाता है. और कब इनका व्यक्तित्व धूमिल हो जाता है ये शायद वक़्त निकल जाने पर इन्हें या इनके घरवालों को पता चलता हो . परन्तु इस नकली चूहा रेस में इनके बचपन के साथ साथ इनका भविष्य भी वयस्कों की स्वार्थपरता और लालच की भेंट चढ़ जाता है.
*चित्र गूगल से साभार
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