Friday, April 27, 2012

उम्मीदों का सूरज.

आज निकली है धूप 

बहुत अरसे बाद 
सोचती हूँ 
निकलूँ बाहर 
समेट लूं जल्दी जल्दी 
कर लूं कोटा पूरा 
मन के विटामिन डी का 
इससे पहले कि 
फिर पलट आयें बादल 
और ढक लें 
मेरी उम्मीदों के सूरज को.

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यूँ धुंधलका शाम का भी बुरा नहीं 
सिमटी होती है उसमें भी 
लालिमा दिन भर की 
जिसे ओढ़कर सो जाता है 
क्षितिज की गोद में 
लाने को फिर से नई सुबह 
मेरी उम्मीदों का वह सूरज. 
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पर यूँ भी तो है 
कल उगे वो 
पर ना पहुंचूं मैं उसतक
बंद हो खिड़की दरवाजे 
ना पहुँच सके वो मुझतक.
तो बस 
अभी ,इसी वक़्त 
भरना है मुझे अपनी बाँहों में 
मेरी उम्मीदों का सूरज.
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Monday, April 23, 2012

डूबते सूरज की चमक ..

बचपन से राजा महाराजाओं ,राजघरानो के किस्से सुनते आये हैं.उनके वैभव, राजसी ठाट बाट, जो कभी भी किसी भी हालत में कम नहीं होते थे. बेशक जनता के घर खाली हो जाएँ पर राजा का खजाना कभी खाली नहीं होता था.. राज परिवार में से किसी की  भी सवारी नगर से निकलती तो सड़क के दोनों और जनता उमड़ पड़ती.बच्चे ,बूढ़े, स्त्रियाँ सभी करबद्ध खड़े जयजयकार करते रहते.घर में बच्चे भूखे हों फिर भी राजा को भेंट दी जाती. राज्य में अकाल पड़े या कोई और आपदा हो तो  जनता पर कर बढ़ा दिए जाते परन्तु राजसी वैभव और रिवाजों पर कोई फर्क  नहीं पड़ता. कहने का आशय है कि देश की जनता की गरीबी का कोई असर राजा या राजघराने पर कभी नहीं होता था.

तब से अब तक कई सदियाँ बीत गईं,.औद्योगिक  क्रांति हुई, ह्युमन राईट की बातें की जाने लगीं. राजे रजवाड़े दुनिया से ज़्यादातर ख़तम हो गए .कहीं  इक्का दुक्का ही बचे. पर उन में राजसी वैभव  और उसके प्रदर्शन का रिवाज़ जस का तस बना रहा.इस पर ना किसी व्यवस्था का फरक पडा ना जाति,  धर्म, देश या परिवेश का.


इन्हीं कुछ चुनिन्दा रजवाड़ों में एक मुख्य है इंग्लैंड,जो एक समय में विश्व का सबसे बड़ा साम्राज्य था. जिसके लिए कहा जाता था कि सूरज ब्रिटेन के साम्राज्य में ही उदय भी होता है और अस्त भी.उस दौरान अपने गुलाम देशों से बहुत सा बैभव उन्होंने बटोरा और सदियों तक शासन किया.कालांतर में गुलाम देश आजाद होते गए और ब्रिटेन के साम्राज्य के साथ ही इसकी आर्थिक स्थिति भी सिकुड़ती गई.और आज इंग्लैंड भी बाकी देशों की तरह आर्थिक मंदी से गुजर रहा है.और ऐसे दौर में इंग्लैंड की रानी इस वर्ष अपनी हीरक जयंती मना रही हैं.और इसी उपलक्ष  में देश भर में तैयारियां जोरों पर हैं,तरह तरह के आयोजन शुरू हो गए हैं इनमें ही एक के तहत रानी ने अपने जनता से मिलने का दौरा  ( जुबली टूर ) पिछले दिनों रेडब्रिज नाम के इलाके से शुरू किया.इस इलाके में उसदिन करीब १ किलोमीटर तक सुबह ७ बजे से ही लगभग १०,००० लोग जमा हो गए थे.इलाके के सभी प्राईमरी और सेकेंडरी  स्कूलों के कुछ चुनिन्दा बच्चों को रानी से मिलने का गौरव प्रदान करने के लिए  वहीँ सड़क पर धूप में घंटों पहले जमा कर दिया गया.सबके हाथों में यूनियन जेक,पोस्टर थे. माँएं अपने नवजात बच्चों को लिए रानी के दुर्लभ दर्शनों के लिए घंटो सड़क पर खड़ी इंतज़ार कर रहीं थीं. निर्धारित समय पर रानी की सवारी आई साथ में एडिनबरा के राजकुमार भी.कार से उतर कर दोनों तरफ लोगों की भीड़ से घिरी एक सड़क पर कुछ दूर चलीं, जो लोग सड़क के निकट थे उन्हें एक झलक नसीब हुई. उसके बाद उन्होंने कुछ औपचारिकतायें निभाईं फिर वह अपनी कार में स्कूली बच्चों के बीच से निकलीं, बच्चों को कार से एक हाथ हिलता दिखाई दिया और कुछ बड़े बच्चों को एक झलक चेहरे की भी मिल गई .और बस हो गया जनता का रानी का गौरवपूर्ण दर्शन समारोह संपन्न.और बच्चे रानी से मिलने का गर्वित अहसास लिए लौट आये.

इस उपलक्ष्य में लन्दन के मेयर बोरिस जोंसन ने २५०० स्कूलों में एक मीटर का यूनियन जेक बांटने का इरादा किया है जिसकी कीमत £२०,००० तक आएगी.उनका कहना है लन्दन के स्कूली बच्चों को अपने गौरव शाली अतीत पर गर्व होना चाहिए और रानी के इस हीरक जयंती के उपलक्ष  में झंडे फहराने चाहिए.
वहीँ भारत में पैदा हुए इस्ट इंडिया कम्पनी के चीफ एक्ज्यूकेटिव संजीव मेहता ने इस उपलक्ष में दुनिया का सबसे महंगा सुविनियर (स्मृति चिन्ह ) बनाया है.£१२५,००० के सोने के इस सिक्के पर हीरों का मुकुट पहने रानी की छवि अंकित है.उन्होंने १किलो के ऐसे ६० सिक्के बनवाये हैं जो रानी के स्वर्णिम ६० सालों के शासन काल को दर्शाते हैं. ६० सिक्के चांदी के भी बनाये जायेंगे,हर एक कीमत £२५,००० होगी.संजीव मेहता के अनुसार यह पूर्व ब्रिटिश साम्राज्य रूपी मुकुट में एक गहने के रूप में भारत की प्रतिष्ठा का प्रतीक है.और  देश की इतने वर्षों तक सेवा करने वाली इस महिला को सम्मान है.
पूरा यूरोप किस आर्थिक मंदी से गुजर रहा है अब यह छुपा नहीं. पर बढ़ता बेरोजगार और गरीबी जैसी समस्याओं का असर इस वैभव प्रदर्शन पर पड़ता कहीं भी दिखाई नहीं देता.क्योंकि हालात कैसे भी हों जनता पर कर बढ़ाने का सुगम उपाय तो आज भी है.आम सुविधाओं पर फीस, जुर्माना, इलाज आदि सभी पर बढ़ा ही दिया गया है.जरुरत पड़ने  पर और बढाया जा सकता है.परन्तु राजसी वैभव के प्रदर्शन से कोई समझौता संभव नहीं.आखिर वर्षों पुरानी साख और गौरवपूर्ण इतिहास का सवाल है.

नवभारत (अवकाश २२/४/२०१२) से सभार .

Friday, April 13, 2012

वो निरीह ..

कल देखा था मैंने उसे 

वहीँ उस कोने में 
बैठा था चुपचाप
मुस्काया मुझे देख 
सोचा होगा उसने 
कुछ तो करुँगी 
बहलाऊँगी ,मनाऊंगी 
फिर उठा लुंगी अहिस्ता से 
हमेशा ही होता है ऐसे.
वो जब तब रूठ कर बैठ जाता है 
थोडा ठुनकता है,
यहाँ वहां दुबकता है 
फिर मान जाता है.
पर इस बार जैसे 
कुछ अलग है 
नहीं है हिम्मत मनाने की 
जज्बा बहलाने का 
स्नेह उसे उठाने का 
इसलिए अभी तक वहीँ पड़ा है वो
कुम्हलाया,सकुचाया, हताश सा 
मेरा अस्तित्व .

Tuesday, April 10, 2012

नन्ही कली..

आज मेरी इस तूफ़ान का जन्म दिन है .यह कविता मैंने तब लिखी थी जब इसे अक्षर पढने तो क्या बोलने भी नहीं आते थे. फिर जब बोलने- समझने लगी तो एक बार मैंने इसे यह पढ़कर सुनाई.पर आखिरकार कुछ समय पहले इसने खुद इसे पढ़ा और कहा की आज जन्म दिन के उपहार स्वरुप मैं उसे यही कविता दे दूं.यानि अपनी इस धड़कन को स्पंदन पर प्रकाशित कर दूं :).तो यह रहा मेरी परछाई को मेरा यह छोटा सा उपहार.


सिमट गई दुनिया मेरी एक नन्ही सी कली में,
सो गए अरमान मेरे उसकी मधुर हँसी में,
वो बन गई मंज़िल और राह भी मेरी ज़िंदगी की,
अक्स उसका ही है अब मेरे मन की हर गली में.
सपनो के वो धागे जो कभी अपने लिए बुने थे,
काँटों के बीच से कुछ फूल ख़ुद के लिए चुने थे,
आज़ कर दी मैने वो माला अपनी शहजादी के नाम,
मेरे ख्वाबों के हँसी फूल जिसमें गुंथे थे.
सिवाए इसके नहीं आज़ कुछ मेरे दामन में,
ख़ुद मेरा ही वजूद नहीं है मेरे इस आँगन में,
खुदा करे कि पूरी हो हर-एक ख़्वाहिश तेरी,
तुझे देने के लिए बस ये दुआ है मेरे आँचल में.
तेरी नज़रों से देख लूंगी मैं अपने सपनों को,
तेरे मासूम बचपन में ढूंढ लूंगी मैं ख़ुद को,
तेरी किलकारी में पूरे हो जाएँगे अरमान मेरे,
तेरी बातों में छिपा लूंगी मैं अपनी हसरत को.
खुदा करे कि हर लम्हा तू हँसती जाए,
सुनहरी धूप तेरे आँगन में छन कर आए,
ना काँटा हो एक भी वो राह भर जाए फूलों से,
जिस राह से गुज़र कर तेरे फूलों से क़दम जाएँ.
***



सोम्या अब ,और उसकी कविता.
Happy Birthday Somya.

Wednesday, April 4, 2012

माध्यम बदलता है,स्वभाव नहीं

“आज मैंने घर में मंचूरियन बनाया बहुत अच्छा बना है.सबने बहुत तारीफ़ की।”

“कल हम घूमने जा रहे हैं, बहुत दिनों बाद.बहुत मजा आएगा।”
“किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है,
आ जा पूरी छोलों के साथ प्याज भी है।” …….(सभार राजीव तनेजा )
वाह वाह वाह…
क्या लगता है आपको  सहेलियां बात कर रही हैं ? या कोई शौकिया शायर अपनी तुकबंदी किसी को फ़ोन पर सुना रहा है ? जी हाँ ऐसा ही कुछ होता था पहले और अब भी होता है। बस अब यह किसी आँगन, चौपाल या फ़ोन पर ना होकर शोशल नेट्वोर्किंग साइट्स पर होता है। मनुष्य का स्वभाव हमेशा से ही विचारों के आदान प्रदान का रहा है। आपस में मिलने का कुछ अपनी कहने का कुछ दूसरों की सुनने का रहा है। मानव अपने दुःख, सुख, यारी, दुश्मनी निभाता रहा है हाँ उसका माध्यम वक़्त के साथ अवश्य बदलता गया है, और आजकल मानव स्वभाव की अभिव्यक्ति का सबसे लोकप्रिय और आसान माध्यम बन गयी हैं फेस बुक जैसी नेटवर्किंग साइट्स। जिसने घर से बाहर निकालने की दुश्वारियों से इतर घर बैठे ही यह सुविधा दी।

आजकल शोशल नेटवर्क साइट्स को गरियाने का नया फैशन निकल पडा है या फिर यह कहना उचित होगा कि नया टाइम पास हो चला है। किसी ने कोई पकवान बनाया तो ऍफ़ बी, कोई हनीमून पर जा रहा है तो ऍफ़ बी और यहाँ तक की किसी को किसी का चरित्र हनन करना है तो बस ऍफ़ बी. की दीवार पर लिख डालिए और उसके पीछे कुछ लोग लाठी-भाले लेकर पिल पड़ेंगे। कुछ बस भेड़ चाल के लिए, कुछ अपने वर्ग विशेष के लिए, कुछ यूँ ही टाइम पास के लिए तो कुछ अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए, और हो जायेगा वहां मजमा इकठ्ठा सुनवाई दर सुनवाई, आरोप दर आरोप और यहाँ तक की कुछ लोग फैसला भी सुना देंगे। पर क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि हमारी असली दुनिया में भी ऐसा ही होता है। बस पंचायत की जगह एफ्बायत या मोहल्ले की लड़ाई की जगह ऍफ़ बी ग्रुप होना ही बाकी रह गया है, पर लोगों को परेशानी इन सब चीजों से नहीं है लोगों को समस्या है उन स्टेटस पर आये लाइक और टिप्पणी की संख्या से। हालाँकि ये शिकायत करने वाले खुद भी वही चाहते हैं….. इस बिनाह पर कि गंभीर मुद्दों पर इतनी भीड़ नहीं जुटती या जो जहाँ लोगों की भीड़ जुडती हैं वे लोग निकम्मे हैं, जाहिल हैं और ना जाने क्या क्या हैं पर यदि वही लोग इनके स्टेटस पर जुड़ जाएँ तो बुद्दिजीवी हैं। अब ये उनसे पूछा जाये कि उन्हें यह मुगालता क्यों है कि सबसे गंभीर और अच्छा मुद्दा वही उठाते हैं, पर क्योंकि उनके स्टेटस की जगह दूसरों (फालतू ) स्टेटस को ज्यादा लाइक  मिलते हैं असल पेट दर्द का कारण वह है।

खैर क्या गलत है क्या सही है यह तो एक अलग मुद्दा है .परन्तु इन सोसिअल साइट्स का यह स्वभाव  मुझे असल दुनिया से किसी भी तरह इतर नहीं लगता। हम ऍफ़ बी की दिवार पर लिखे की निंदा करते हैं जबकि हमारे देश में तो दीवारें और भी ना जाने किन-किन कामो में ली जाती हैं। फिर भला इन शोशल  साइट्स को ही गाली देने का क्या औचित्य है ? वह भी हम ही लोगों द्वारा बनाई गई दुनिया है, एक चौपाल है, जहाँ हर तरह हर तबके और हर फितरत के लोग अपने काम धंधों से फुर्सत में मिले पलों में इकठ्ठा होकर लोगों से मिलते हैं, गपियाते हैं, अपनी रूचि के विषयों पर चर्चा करते हैं। कुछ यूँ ही बिना वजह घूमने आ जाते हैं। कुछ यूँ ही निहारने और कुछ आवारागर्दी करने भी, और फिर अपने अपने घर चले जाते हैं। हाँ बस यह चौपाल किसी चबूतरे या किसी चाय के खोमचे पर ना लग कर इन्टरनेट की खिड़की पर लगती है। जो हर आम आदमी की पहुँच में है। अब आप ही सोचिये और इमानदारी से बताइए क्या जो सब ऍफ़ बी पर होता है वह इसके पहले बाहरी दुनिया में नहीं होता था या क्या अब नहीं होता ?.

अब जरा इस किस्से पर गौर कीजिये …..
एक घरेलु महिला अपने घर का काम निबटा कर अपने संगी साथियों से कुछ बतियाने घर से बाहर निकलती है, कोई नया पकवान उसने बनाया हो या घर में कोई मेहमान आने वाला हो तो वो फुर्सत में बालकोनी, छत या घर के बाहर पहुँचती है, कोई पड़ोसन मिल जाती है या कोई परिचित तो उससे वह अपनी दिनचर्या की चर्चा करती है उछल उछल कर बताती है आज दिन में उसने यह किया, वो किया, या यहाँ घूमने गई …. इतने में अचानक पास से गुजरते हर कुछ मनचले या छिछोरे फिकरा कसते हुए निकल जाते हैं – “अरे मैडम कभी रात की बात भी बताओ” … अब वो महिलाएं क्या करेंगी ज्यादा से ज्यादा इसके खिलाफ २ शब्द बडबडा लेंगी, बहुत दबंग हुई तो १-२ गाली उस सिरफिरे को दे देंगी और अपने घर जाकर बाकी की बातें करेंगी। पर क्या इसके लिए हम दोष उस सड़क को देंगे जिस पर वो खड़े बात कर रहे थे या जिस पर से गुजर कर वे फिकरा कसने वाले गए ? क्या थोड़ी भी जिम्मेदारी उन महिलाओं की नहीं जो वहां आम सड़क पर व्यक्तिगत चर्चा कर रही थीं बिना ये सोचे कि उनकी वार्ता कोई ओर भी सुन सकता है।

अब यही ऍफ़ बी पर भी होता है लोग क्या बनाया से लेकर कैसे हनीमून मनाया तक सब ऍफ़ बी की वाल पर लिखते हैं फिर किसी तरह के अनवांछित टिप्पणी पर गरियाते हैं। अब बताये जरा इसमें उस बेचारे ऍफ़  बी का क्या दोष ? आपको यह बातें करनी है और इन फिकरों से बचना है तो आप घर में बैठकर कर सकते हैं और फब पर भी व्यक्तिगत सन्देश की सुविधा है जहाँ आपकी बात वही सुनेगा जिससे कही गई है।

ऍफ़ बी पर आजकल बहुत से लोग इस बात पर गरियाते देखे जाते हैं कि जिसे देखो वो कवि लेखक बन गया है और लोग उनकी घटिया कविता पर हजारों लाइक करते हैं परन्तु यदि दिनकर, निराला की कविता डाली जाये तो उस पर कोई नहीं फटकता।
अब आप जरा इमानदारी से सोच कर बताइए कि हमारी असली दुनिया में किसी को तुकबंदी करने का या लिखने का शौक नहीं होता ? वे लिखते हैं और जाकर अपने संगी साथियों को सुनाते भी हैं और उनसे जबरदस्ती ही सही वाह-वाही भी पाते हैं। तो यदि अब वही आम इंसान यही काम ऍफ़ बी पर करता है तो क्या समस्या है ? अब यह तो कोई बात नहीं हुई कि एक तथाकथित स्थापित साहित्यकार को ही लिखने का और उसे शेयर करने का हक़ है और किसी को नहीं। क्या कोई जरुरी है कि हर इंसान को साहित्य के प्रति दिलचस्पी हो ? आप सोचिये एक चौराहे पर एक सुन्दर सी लड़की खड़ी होकर एलान करे कि “मुझसे दोस्ती करोगे” और  दूसरे पर कोई कविवर अपने साहित्य का पाठ कर रहे  हों .तो भीड़ कहाँ ज्यादा जुटेगी ? अब इसमें गलत सही को छोड़ दिया जाये तो बात मानव स्वभाव की हैउसके अपने व्यक्तित्व और रूचि की है। ऐसा नहीं कि गंभीर मुद्दों पर जमघट नहीं लगता। मैंने ऍफ़ बी पर कल ही एक विडियो देखा.द्वारका में पुरातत्त्व खुदाई पर, उसमें 


लाइक की संख्या ने एक रिकॉर्ड बना लिया है। और ये अकेला ऐसा नहीं और भी अनगिनत गंभीर मुद्दे हैं जहाँ असंख्य लाइक होते हैं, पर हमें वही दीखता है जो हम देखना चाहते हैं.. आपको अगर वह सब नहीं पसंद  तो मत गुजरिये उस सड़क से, और जो नहीं पसंद उसे सिर्फ एक क्लिक से ब्लाक कर दीजिये जैसे अपने घर के दरवाजे बंद कर देते हैंयानि अपने घर के दरवाजे उनके लिए बंद अब आपको वो आपके घर में तो क्या आस पास भी दिखाई नहीं देंगेजबकि ऐसी सुविधा हमें अपनी बाहरी दुनिया में नहीं मिलती यहाँ आप किसी अनावश्यक और अनचाहे को अपने घर आने से तो रोक सकते हैं पर अपने घर के सामने वाली सड़क पर चलने से नहीं रोक सकते, पर हर विषय का अपना एक अलग वर्ग होता है और शायद स्थान भी हो सकता है एक चौराहे पर शीला की जवानी सुनने वाले लोग इकठ्ठा होते हों तो दूसरे पर राजनीती पर चर्चा करने वाले .अब आपको जो पसंद हो आप उस चौराहे पर जाइये

ये शोशल साइट्स भी एक इलाके / मोहल्ले जैसा है जहाँ हर तरह के लोग हैं और हर तरह की गतिविधियाँअब आपको पसंद है तो वहां घर बनाइये अपना. नहीं पसंद तो नहीं आइये इसमें बेचारे उस मोहल्ले का क्या दोष ? यूँ कानून हर जगह है, क़ानूनी मदद के लिए आपके पास आप्शन बाहर भी हैं और इन साइट्स पर भी अभी हाल में ही लन्दन के समाचार पत्र में खबर थी कि ऍफ़ बी पर एक लड़की को ब्लेकमेल करने वाले को उस लड़की की शिकायत पर पुलिस ने ढूंढ  कर जेल में डाल दियातो यहाँ भी हमें अपने बाहर की  दुनिया की तरह अपने ही संयम से काम लेना होता हैअपनी सुरक्षा और अपने मान की जिम्मेदारी हर जगह हमारी अपनी ही होती हैहमें क्या हक़ है कि यदि किसी को हलके फुल्के गाने सुनने का मन हो तो हम जबर्दास्त्ती उसे बुलाकर इतिहास सुनाएँ ? और फिर यदि वो ना सुने तो उसे अपने दोस्तों घेरे से  निकाल दें या फिर उसे और उसके पूरे खानदान को गरियायें

बरहाल गलत जहाँ भी हो उसका विरोध होना चाहिए फिर चाहे वो दुनिया में कहीं भी हो, पर मेरे ख़याल से कोई जगह गलत नहीं होतीआप और हम गलत होते हैंहम समाज में रहते हैं और यहाँ सही, गलत सब होता है और यह हमेशा से होता रहा है, और उसे हम अपनी अपनी बुद्धि विवेक से ही सुलझाते भी हैं और जरुरत पढने पर कानून भी हैजहाँ तक मेरा मानना है बदला कुछ भी नहीं ना समाज, ना हम, ना मानव स्वभाव बस बदला है तो माध्यम कल तो बातें चौपाल में फिर फ़ोन पर होती थीं आज इन शोशल साइट्स पर होती हैं


नवभारत से साभार (४ मार्च २०१२ को प्रकाशित)