अभी कुछ दिन पहले दिव्या माथुर जी ((वातायन की अध्यक्ष, उपाध्यक्ष यू के हिंदी समिति) ) ने अपनी नवीनतम प्रकाशित कहानी संग्रह “2050 और अन्य कहानियां” मुझे सप्रेम भेंट की .यहाँ हिंदी की अच्छी पुस्तकें बहुत भाग्य से पढने को मिलती हैं अत: हमने उसे झटपट पढ़ डाला.बाकी कहानियां तो साधारण प्रवासी समस्याओं और परिवेश पर ही थीं परन्तु आखिर की दो कहानियों ” 2050 और 3050 के कथानक ने जैसे दिल दिमाग को झकझोर कर रख दिया.कहानी में लेखिका ने 2050 और 3050 तक इंग्लैंड में होने वाले बदलावों को काल्पनिक तौर पर बेहद प्रभावी ढंग से परिलक्षित किया है .एक कथ्य के अनुसार उस समय बच्चे पैदा करने के लिए भी यहाँ की सरकार से इजाजत लेनी होगी और वह आपके आई क्यू और स्टेटस को देखकर ही इजाजत देगी. जो कि बहुत ही दुश्वार कार्य होगा. और जो बिना इजाजत बच्चे पैदा करने की हिम्मत करेगा उनके बच्चे को निर्दयता से उनकी आँखों के सामने ही मार दिया जायेगा.और भी बहुत कुछ जैसे – हर बात पर जुर्माना ,जगह जगह कैमरे ,और सख्त नियम कानून ,वापस एशियन देशों में लौटने की चाहत पर ना लौट पाने की मजबूरी वगैरह वगैरह .कहने को तो यह एक कहानी है लेखिका की कल्पना शक्ति का एक नमूना भर. परन्तु मौजूदा हालातों को देखते हुए मुझे कोरी कल्पना भी नहीं जान पड़ती.पिछले २ वर्षों में आर्थिक मंदी के कारण इंग्लैंड में हुए बदलावों के परिप्रेक्ष्य में यह कल्पना अतिश्योक्ति नहीं जान पड़ती.
बात बात पर जुर्माना , बढ़ता टैक्स , बढ़ती शरणार्थी जनसँख्या की वजह से बिगड़ती और महंगी होती चिकत्सीय और शिक्षा व्यवस्था.
स्कूलों का पहले ही बुरा हाल है,बच्चों को अपने निवास क्षेत्र के स्कूल में जगह मिलना अब एक ख्वाब ही हो गया है माता पिता के लिए . और अब विश्वविद्द्यालय ने भी अपनी फीस एक साथ तीनगुना बढ़ा दी है .पिछले सत्र में जो फीस ३००० पौंड्स हुआ करती थी इस सत्र से वह बढ़ा कर ९००० पौंड्स कर दी गई है .और यह हालात साधारण विश्वविद्द्यालयों के हैं प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों के क्या हाल होंगे वह तो सोच कर ही डर लगने लगता है. उसके वावजूद भी पिछले साल कई सौ छात्रों को किसी भी विश्वविद्द्यालय में स्थान नहीं मिला.आने वाले समय में यह समस्या क्या रूप लेगी यह किसी से छुपा हुआ नहीं है .
वर्तमान परिस्थितियों में रोजगार की समस्या इतनी विकराल हो चुकी है कि खास स्किल्ड जॉब्स भी नहीं मिल रहे हैं. जहाँ पहले विश्वविद्द्यालय से निकलते ही नौकरी की गारेंटी हुआ करती थी और यही सोच कर लोग महंगी फीस लोन लेकर दे दिया करते थे .आज नौकरियों की अस्थिरता के चलते लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि शिक्षा के लिए लिया गया भारी लोन आखिर चुकाया कैसे जायेगा. ऐसे में जो लोग यहाँ काफी सालों से हैं उनकी तो मजबूरी है, परन्तु जिन लोगों के पास वापस भारत लौटने विकल्प है वह यहाँ से जाने में कोई कोताही नहीं कर रहे . जिन्होंने यहाँ आकर जीवन नहीं देखा उनमें यहाँ का आकर्षण शायद बना हुआ है परन्तु इस जीवन से वाकिफ लोग अब कहते पाए जाते हैं कि भारत में जीवन लाख दर्जे ज्यादा स्तरीय और सुविधाजनक है.
एक समय था जब किसी जान लेवा बीमारी से ग्रसित व्यक्ति को यह कहा जाता था कि इंग्लेंड जाकर इलाज कराइए बच जायेंगे .आज नौबत यह है कि साधारण प्रसव कराने के लिए भी यहाँ से लोग भारत जाना ज्यादा ठीक समझते हैं.
अब जब कि शिक्षा ,चिकित्सा, रोजगार जैसी मूल भूत सुविधाओं की यह स्थिति है, तो क्या आकर्षण है अपने देश को छोड़कर विकसित देश में आने का?
एक समय था जब भारत सोने की चिड़िया कहलाता था.हर तरह से सुखी और समृद्ध. तब पश्चिम के लोग आकर्षित हुए थे भारत की तरफ .तो क्या इतिहास फिर से दौहरायेगा खुद को ? क्या यह एक साईकिल है ?क्या फिर घूमेगा वक़्त का पहिया.?क्या एक बार फिर वह समय आने वाला है जब सुख सुविधाओं की खोज में लोग एक बार फिर पूरब की ओर रुख करेंगे.?.अभी हो सकता है ये बात कल्पना या स्वप्न सी लगे पर वर्तमान परिस्थितिओं को देखते हुए इस स्वप्न के पूरे होने में ज्यादा समय लगता नहीं दिखाई देता मुझे.
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