Monday, February 28, 2011
घूमता पहिया वक्त का.
Tuesday, February 22, 2011
यही होता है रोज.
रोज जब ये आग का गोला
Friday, February 18, 2011
क्या भारतीय बदबूदार होते हैं?
Tuesday, February 15, 2011
किस रूप में चाहूँ तुझे मैं ?
तू बता दे ए जिन्दगी
किस रूप में चाहूँ तुझे मैं?
या फिर चाहूँ तुझे
काश बन जाऊं वह नदी
Friday, February 11, 2011
प्रेम, रंग और मसाले
बसंत पंचमी ( भारतीय प्रेम दिवस ) बीत गया है ,पर बसंत चल रहा है और वेलेंटाइन डे आने वाला है ..यानी फूल खिले हैं गुलशन गुलशन ..अजी जनाब खिले ही नहीं है बल्कि दामों में भी आस्मां छू रहे हैं ,हर तरफ बस रंग है , महक है ,और प्यार ही प्यार बेशुमार . …वैसे मुझे तो आजतक ये प्यार का यह फंडा ही समझ में नहीं आया ….कहीं कहा जाता है ..प्यार कोई बोल नहीं ,कोई आवाज़ नहीं एक ख़ामोशी है सुनती है कहा करती है …तो कहीं कहा जाता है ….दिल की आवाज़ भी सुन ….
तो जी प्यार एक, रूप अनेक. टाइप बात है कुछ ..जरा सोचिये वेयर इस द टाइम टू हेट, व्हेन देयर इज सो सो मच टू लव …
यूँ मुझे इस प्रेम उत्सव से ज्यादा प्यार रंग उत्सव से है जिसका ऑफिशियल आगाज बसंतपंचमी से हो जाता है ...खासकर कुमायूं में तो हो ही जाता है. जहाँ बचपन में मनाई होली की तस्वीरें अब तक मेरे ज़हन में ताज़ा हैं. वहां बसंतपंचमी से ही होली की बैठकें शुरू हो जाती थीं .यानी बारी बारी हर एक के घर में बैठक होती जहाँ होली की टोली/मंडली हारमोनियम ,ढोलक के साथ पहुँचती और ” जल कैसे भरूँ जमना गहरी ” और ” काली गंगा को कालो पानी ” की सुर लहरियां गूंजने लगतीं, फिर जलपान के साथ संध्या का समापन होता और यही कार्यक्रम होली तक जारी रहता. .फिर होली वाले दिन भी ऐसी ही टोली में सब निकलते और नाचते गाते एक एक के घर जाते एक दुसरे को अबीर गुलाल लगाते और फिर वह भी टोली में शामिल जाता ..मैंने आजतक इतनी साफ़ सुथरी ,सभ्य ,सुघड़ और रोचक होली और कहीं नहीं देखी .…
कुमाऊँनी होली बैठक .
फिर पहाड़ों से निकल कर मैदानों में आये तो देखा होली का विकराल रूप. जितने तथाकथित सभ्य लोग उतना ही असभ्य होली मनाने का तरीका .जहाँ जब तक कीचड़ में फैंका जाये किसी का फगवा पूरा नहीं होता था.रंग ,कीचड़,कोलतार जो मिले पोत दो. होली से एक दिन पहले तैयारी में और २ दिन बाद के , सही दशा में आने में बेकार …पर फिर भी होली है भाई होली है…
पिछले साल की होली
Sunday, February 6, 2011
यवनिका यादों की ...
वैसे और लोग ही क्या ..हम भी आँख बंद करके आश्रित रहा करते थे पापा पर ,असंभव तुल्य ही काम क्यों ना हो बस कान में डाल दो पापा के और निश्चिन्त सो जाओ ..हो ही जायेगा वो भी पूर्ण व्यवस्थित तरीके से .
