Saturday, January 8, 2011

मोस्को ..हर दिल के करीब.


क्रेमलिन – वर्ल्ड हेरिटेज साईट में शुमार.
घर की मुर्गी दाल बराबर .बस यही होता है. जो चीज़ हमें सहजता से सुलभ हो जाये उसकी कदर ही कहाँ करते हैं  हम. और यही कारण होता है कि जिस जगह हम रहते हैं वहां के दर्शनीय स्थलों के प्रति उदासीन से रहते हैं .अरे  यहीं तो हैं कभी भी देख आयेंगे, और ये कभी – अभी  करते करते गाड़ी स्टेशन से छूट जाती है. .

यही होता था हमारे साथ. मोस्को – .रूस की राजधानी और योरोप का सबसे बड़ा शहर मस्कबा (मोस्को ) नदी के आसपास बसा यह इतना खूबसूरत है कि वर्ल्ड हेरिटेज साईट  में इसका नाम है . पर हमारे लिए वह बस एक शहर भर था  जहाँ रहकर हमें अपनी पढ़ाई पूरी करनी थी और या फिर छात्रों वाली कुछ मस्ती .आज दुनिया के बाकी विकसित देशों से तुलना करती हूँ तो पाती हूँ कि मोस्को के दर्शनीय स्थल तो छोडिये मेट्रो स्टेशन भी कम दर्शनीय नहीं थे  जहाँ बाकी देशों के मेट्रो  स्टेशन  एक गंदे से “सब वे”  नजर आते हैं वहीँ मोस्को के मेट्रो स्टेशन किसी भी म्यूजियम से कम नहीं .एक एक स्टेशन किसी ना किसी थीम  पर बना  है और इतना खूबसूरत है कि दर्शक आलीशान इमारतें भूल जाये.हालाँकि तब हमारे लिए ये स्टेशन सिर्फ आने जाने का एक साधन भर हुआ करते थे या ज्यादातर रूसियों  की तरह पुस्तक पढने की एक जगह (आपको मेट्रो में बैठे या खड़े सभी यात्री कोई ना कोई पुस्तक पढ़ते दिखाई  देंगे )इसलिए  विदेशी यात्रियों को वहां के चित्र खींचते देख हमें उनकी बेबकूफी पर हंसी आया करती थी पर आज हमें अपनी बेबकूफी पर रोना आता है कि हमने क्यों नहीं उन सब नक्काशी और सुन्दरता को अपने केमरे में कैद किया. 
मोस्को का एक खूबसूरत मेट्रो स्टेशन 
वैसे मोस्को में अलग से कोई स्थान देखने जाना हो या नहीं, पर कुछ चीज़ें आपको अपने आप ही दिख जाएँगी जैसे स्टालिन के समय में बनाई गईं “सात बहने “ जी नहीं ये स्टालिन की सात बहनों के पुतले नहीं हैं बल्कि हैं चर्च जैसे आकार की सात इमारतें हैं जो मोस्को के  अलग अलग कोनो पर बनाई गई हैं और मोस्को की सबसे ऊंची इमारतों में से हैं जिन्हें लगभग हर जगह से देखा जा सकता है और इनमें से एक है मोस्को स्टेट यूनिवर्सिटी  की ईमारत .वैसे मोस्को की सबसे ऊंची ईमारत है “अस्तान्किनो टावर .जिसे जब १९६७ में बनाया गया था तब वह  विश्व कि सबसे ऊंची ईमारत थी.
यूँ इन दर्शनीय स्थलों को देखने जाने के लिए हम छात्रों के पास ना तो पर्याप्त समय होता था ना ही धन, परन्तु कभी कभी अनुवादक  के काम के दौरान अपने मेहमानों ( क्लाइंट ) को घुमाने के चलते काफी कुछ देख लिया करते थे हम . और इस तरह हमें आम के आम और गुठलियों के दाम मिल जाया करते थे .मतलब काम भी हो जाता था,पैसे भी मिल जाते थे और फ्री में घुमाई भी हो जाती थी .इसी क्रम में त्रित्याकोव्स्काया गेलरी, ,जहाँ 15 वीं सदी से भी पहले कि तस्वीरें देखी जा सकती हैं ,खूबसूरत गोर्की पार्क जिसके पास से बहती मस्कबा  नदी उसकी शोभा बढाती है.खूबसूरत फव्वारों  और पुतलों से सजा दोस्ती और एकता का प्रतीक ऑल  रशियन एक्जीबिशन  सेंटर , रशियन बेले का मशहूर केंद्र बल्शोई ( बड़ा ) थियेटर और ठीक क्रास्नाया प्लोशाद (रेड स्क्वायर ) पर बना हुआ स्टेट हिस्टोरिकल म्यूजियम.वगेरह वगेरह हमने  देख डाला था. 

सेवेन सिस्टर्स की एक सिस्टर.
वैसे रूसी लोग संगीत और नृत्य के बेहद शौक़ीन होते हैं और किसी भी छुट्टी के दिन थियेटर भरे रहते हैं फिर बेले हो या ओपेरा कार्यक्रम से ज्यादा वहां उपस्थित लोग आकर्षित करते हैं खूबसूरत,शिष्ट ,परिष्कृत लोग और बेहद खूबसूरत, औपचारिक लिबास. थियेटर के अन्दर का दृश्य किसी शाही शादी का सा प्रतीत होता है.यूँ भी रूसी लड़कियों जितनी खूबसूरत लड़कियां शायद ही कहीं होती हों उसपर बेले में थिरकते नर्तक  चाबी भरे किसी गुड्डे गुडिया से लगते .और सर्कस का तो कहना ही क्या. जिमनास्ट जैसे हर रूसी बालिका की रग रग में बसता हो सुगठित लचकता शरीर दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर कर देता था .
पर जिसने हमारे दिल पर गहरी छाप छोड़ी वह था लेनिन की  समाधि  जहाँ लेनिन का वास्तविक निर्जीव शरीर प्रिजर्व  करके अबतक रखा हुआ है .यह गवाह है रूसी जनता के उस प्यार का जो ब्लादिमीर लेनिन को मिला . २१ जनवरी १९२४ को लेनिन की मृत्यु के बाद  लेनिन के प्रशंसक लेनिन को अपने से दूर नहीं करना चाहते थे और इसके तुरंत बाद रूस की सरकार को पूरे देश १०,००० से ज्यादा टेलीग्राम मिले जिसमें ये प्रार्थना कि गई थी कि लेनिन को भावी पीढ़ी  के दर्शनार्थ संरक्षित रखा जाये.  इसलिए तत्काल इस पर कार्यवाही शुरू कि गई और और २७ जनवरी को लेनिन के ताबूत को एक खास लकड़ी के बक्से में रखा गया और और फिर बाद में यह विचार किया गया कि किस तरह उनके शरीर को ज्यादा समय के लिए संरक्षित रखा जा सकता है और इस तरह  कई प्रक्रियाओं से गुजरता  हुआ लेनिन का पार्थिव शरीर आज भी शीशे के एक ताबूत में संरक्षित रखा हुआ  है. और इसकी देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती हालाँकि समय समय पर यह  बात उठती रहती है कि उन्हें दफना देना चाहिए यही उनके प्रति सही श्रधांजलि  होगी .परन्तु फिलहाल तो दर्शनार्थीयों  के लिए उनके दर्शन उपलब्ध  हैं.दर्शन के लिए समाधी के बाहर  लम्बी लाइन लगती है और अन्दर प्रवेश करते ही भावनाओं और सम्मान का एक ज्वार सा महसूस होता है कितने ही लोगों के आँखों के कोर  गीले दिखाई देते हैं.  उस महानायक का  मृत्युपरांत आभामंडल भी उनके हर समर्थक को ये विश्वास दिला जाता है कि उनका नायक अब भी उनके साथ है और इस देश को हमेशा संरक्षित रखेगा.
चिर निंद्रा में ब्लादिमिर लेनिन.
(तस्वीरें गूगल से सभार )

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