
सबसे पहले तो हिंदी साहित्य के सभी गुणीजनों और ब्लॉगजगत के सभी साहित्यकारों से हाथ जोड़ कर और कान पकड़ कर माफी .कृपया इस पोस्ट को निर्मल हास्य के रूप में लें .
हमारे हिंदी साहित्य में बहुत ही खूबसूरत और सार्थक विधाएं हैं और इनमें बहुत से रचनाकारों ने अपनी सिद्धता भी दर्ज की है .परन्तु मेरे खुराफ़ाती या कहें कि खाली बैठे शैतानी दिमाग में इनका कुछ अलग रूप आ रहा है आप भी पढ़िए और हंसी आये तो हंसिये पर व्यक्तिगत तौर पर या दिल पर मत लीजिए.
सबसे पहले सबसे कोमल विधा —
कविता.– मेरे ख्याल से इसका जन्म दो शब्दों से हुआ होगा – कवि + ता .तो कवि यानि जो कविता लिखे और ता यानी वो बच्चे खेलते हैं न छुपने वाला खेल …ता ………… मतलब कि जहाँ कविता का कवित्त छुपा रहे उसे कविता कहते हैं .यानी जो जितनी सर से ऊपर से निकल जाये उतनी बड़ी कविता.लिखा कुछ और गया हो मतलब कुछ और निकले और पढ़ने वाला अपने बाल नोचें पर मुंह से बोले वाह वाह , अगर वो ऐसा न करे तो मूढ़ बुद्धि .. उसे कविता की समझ ही नहीं .वैसे कुछ लोग जो जबान से नहीं कह सकते ..तुकबंदी के माध्यम से कहने की कोशिश करते हैं.उसे भी कविता कहा जाता है.
निबंध – किसी भी तथ्य का सीधा सपाट विवरण निबंध कहलाता है जो देखा बस लिख दिया जैसे स्कूल में लिखने को आता था गाय पर निबंध लिखिए .और जो सामने तस्वीर उभरी लिख दिया .गाय के ४ पैर होते हैं ,२ सींग होते हैं ,वो हमें दूध देती है .और कुछ सामाजिक परिवेश के हिसाब से इधर उधर भी .जैसे भारत में एक पंक्ति बढ़ जाती है .कि गाय को हम माता कहकर बुलाते हैं .
व्यंग – यानी जूते को भिगो – भिगो के मारना .जितनी भड़ास मन में सब निकाल देना .पर चाशनी में लपेट कर हाँ ..शर्त है कि चाशनी एकदम सही होनी चाहिए न ज्यादा पतली न ज्यादा गाढ़ी .क्योंकि पतली हुई तो जिस जगह जूते पर लगा कर मारी है वहां चिपकेगी ही नहीं तो बेकार है, असर ही नहीं होगा .गाढ़ी हुई तो जूता भी चाशनी के साथ चिपक जायेगा अब जूता भी गया हाथ से और जहाँ मारा है वो भी खफा.तो चाशनी ऐसी हो कि थोड़ी सी चिपक कर जूता अपने ही हाथ में वापस आ जाये.
संस्मरण – आप कहीं भी चाचा – मामा के यहाँ जाये या कि नदी ,पोखर की सैर करने तो घर में निकलने से पहले की लड़ाई से लेकर पोखर तक पहुँच कर वहां पैर फिसलने तक का सारा विवरण संस्मरण कहलाता है .इसे लिखने के लिए बहुत जरुरी है कि आपने बचपन में बादाम खाए हों क्योंकि रास्ते में मिले एक कुत्ते ने कैसे आपको देख कर पूछ हिलाई थी वह भी आपको याद रखना होगा वर्ना आपका संस्मरण अधूरा रह जायेगा.और लोगों को पढ़ने में मजा नहीं आएगा.
कहानी – ये सबसे रोचक विधा है. इसके सभी पात्र इसके लेखक के हाथ की कठपुतली होते हैं जिन्हें जैसे वह चाहे घुमा दे जैसा जब चाहे रूप दे दे .कहानी का लेखक अपने आसपास के लोगों को भी कहानी का एक पात्र मात्र समझता है. किसी की भी जिंदगी के अनछुए पहलू को कहानी बना सकता और चाहता है वे पात्र उसकी सोच और कल्पना के अनुसार ही व्यवहार करें . जरा भी चूं चपड़ की अपने हिसाब से तो बस, बना दिया विलेन कहानी का. और मजाल किसी की , कि जो कोई दावा कर दे . क्योंकि इस विधा के साथ स्वत: ही एक डिस्क्लेमर जुड़ा होता है कि “:इसके सभी पात्र काल्पनिक हैं और इसका किसी भी जीवित या मृत से कोई लेना देना नहीं ” कहानी का लेखक संवेदनशील होता है पर उसकी कहानी के पात्रों को अगर वो न चाहे तो संवेदनशील होने का कोई हक नहीं..
यात्रा वृतांत – एक विधा है ये जताने के लिए कि देखो जी कित्ता घूमें हैं हम .गली गली ,चप्पे चप्पे की खाक छानी है .और याद भी रखा है .और हर बात में अपनी नाक घुसेड़ी है कि बाद में लिखा जा सके.जब बाकी लोग दर्शनीय स्थल का मजा ले रहे हों मनोरम दृश्यों का रस ले रहे हों आप इन्फोर्मेशन सेंटर में पैम्फ्लेट्स तलाशिये,यहाँ वहां की तस्वीरें खींचिए ,वहां का खाना बेशक समझ ना आये पर खाकर देखिये अजी बाद में उल्टी कर दीजियेगा पर जरुरी है कि सब ठीक से पूरे तरीके से समझा जाये वर्ना क्या लिखेंगे भला? .तो बस सब कुछ इकठ्ठा करके ले आइये और लिख डालिए और बताइए कितने आउट गोइंग हैं आप.
यात्रा वृतांत – एक विधा है ये जताने के लिए कि देखो जी कित्ता घूमें हैं हम .गली गली ,चप्पे चप्पे की खाक छानी है .और याद भी रखा है .और हर बात में अपनी नाक घुसेड़ी है कि बाद में लिखा जा सके.जब बाकी लोग दर्शनीय स्थल का मजा ले रहे हों मनोरम दृश्यों का रस ले रहे हों आप इन्फोर्मेशन सेंटर में पैम्फ्लेट्स तलाशिये,यहाँ वहां की तस्वीरें खींचिए ,वहां का खाना बेशक समझ ना आये पर खाकर देखिये अजी बाद में उल्टी कर दीजियेगा पर जरुरी है कि सब ठीक से पूरे तरीके से समझा जाये वर्ना क्या लिखेंगे भला? .तो बस सब कुछ इकठ्ठा करके ले आइये और लिख डालिए और बताइए कितने आउट गोइंग हैं आप.
आलोचना – यानी… आ.. लो.. चना (लोहे का ) और नाक से चबाओ .इसे समालोचना समझने की भूल ना करें. सिर्फ और सिर्फ सीधी – सच्ची आलोचना .आपको कोई पसंद ना हो या लगे कि ज्यादा उछल रहा है पकड़ लीजिये उसकी रचना. और खोद कर निकाल डालिए कमियाँ .और अगर ना मिले तो २-४ शुभचिंतकों को अपने में मिला लीजिये और अच्छे को भी कहिये बुरा फिर उन्हें कहिये आपके सुर में सुर मिलाएं .हाँ कुछ २- ४ बड़ी दुर्लभ किताबों के नाम याद कर लीजिये और हो सके तो अपनी अलमारी में उन्हें रखकर फोटो खिंचवा लीजिये जिससे कोई ये ना कह सके कि आपको विषय का ज्ञान नहीं .बस हो गई आलोचना .
अभी बस इतने ही ज्ञान से काम चलाइये … बाकी की विधाएं कुछ और बादाम खाने के बाद..अरे कुछ खुद भी पढ़िए समझिये कि सब हम ही बताएँगे…..
No comments:
Post a Comment