Voronezh Railway Station.
वो कौन थी?..जी ये मनोज कुमार की एक फिल्म का नाम ही नहीं बल्कि मेरे जीवन से भी जुडी एक घटना है.
बात उन दिनों की है जब मैं १२ वीं के बाद उच्च शिक्षा के लिए रशिया रवाना हुई थी | वहां मास्को में बिताये कुछ दिन और वहां के किस्से तो आप ...अरे चाय दे दे मेरी माँ .……..में पढ़ ही चुके हैं ,अब उससे आगे का एक किस्सा सुनाती हूँ ,जिसे याद करते हुए आज भी मेरे रौंगटे खड़े हो जाते हैं .
हुआ यूँ कि बाकी की पढाई से पहले १ साल का रूसी भाषा का फाउन्डेशन कोर्स करने के लिए हम सभी को अलग अलग यूनिवर्सिटी भेजने की व्यवस्था थी .उसी क्रम में मुझे “वेरोनिश भेजना तय हुआ .हालाँकि वहां भेजे जाने वालों में मैं अकेली नहीं थी ..फिर भी हालात ऐसे बने और न जाने क्यों बने कि मुझे कहा गया कि फिलहाल एक ही टिकेट का इंतजाम हो पाया है तो तुम्हें अकेले ही जाना होगा.. .ज्यादा दूर नहीं है… ट्रेन शाम ७ बजे चल कर सुबह ७-८ बजे तक पहुँच जाएगी. ये सुनते ही हमारी जान निकलने को हो आई …एक तो पहली बार एक छोटे से शहर से अकेले निकले थे जहाँ सारा शहर हमें साहब की बेटी के नाम से जनता था ,और स्कूल में पढाई में अच्छे थे और बाकी एक्टिविटीज में भी, तो वहां भी रौब था तो कभी इस तरह की समस्या का मुंह नहीं देखा था , १६ साल की कमसिन उम्र और उसपर एकदम अनजान देश और भाषा का एक शब्द भी नहीं मालूम . पर कर क्या सकते थे ? अपना डर उन ऑर्गनाईजेशन वालों को दिखाना अपने अहम् को गवारा नहीं था सो डरते डरते चल पड़े . (हमारे २ दिन बाद पहुंचे कुछ लोगों ने बताया कि सबसे बड़ी बेबकूफ मैं ही निकली थी मुझसे पहले और मेरे बाद सभी ने अकेले जाने से साफ़ मना कर दिया था इसलिए उन्हें ग्रुप में भेजा गया था ) स्टेशन तक एक दुभाषिया हमें छोड़ने आया ,ट्रेन में बिठाया, हमें बताया कि गार्ड को बता दिया गया है कि तुम्हें कहाँ उतरना है ,वेरोनिश आने पर वो तुम्हें बता देगा .और वहीँ स्टेशन पर एक शाशा नाम का दुभाषिया मिलेगा जो तुम्हें यूनिवर्सिटी के हॉस्टल तक ले जायेगा बाकी का काम तो आसान था .और उसने हमें एक रुसी- इंग्लिश की वाक्य डिक्शनरी पकड़ाई और चला गया.
अब हमने अपना सामान रखा और एक बार पूरे कूपे को निहारा और दाद दी उस देश की क्यों कि यहाँ की ट्रेन के साधारण डिब्बे भी हमारी ट्रेन के AC 2nd टायर जैसे होते हैं . सारे कागजात एक बार चैक किये और अपना शब्द कोष लेकर बैठ गए पढने | वहीँ साथ वाले कूपे में एक रुसी महिला और एक पुरुष बैठे थे …दोनों खिड़की से निहार रहे थे ,थोड़ी देर बाद दोनों में परिचय आरम्भ हुआ ,और १० मिनट . बाद ही रोमांटिक फिल्म शुरू हो गई शायद क्लाइमैक्स ही बाकी था ..हमसे देखा न गया और हम झट अपनी सीट पर मुंह ढक कर सो गए कि सुबह तो गार्ड आकर उठा ही देगा.पर नई जगह और अनजान होने की घबराहट…. नींद कहाँ आनी थी ?सो किसी तरह अध् सोये पड़े रहे सुबह के इंतज़ार में ..इसी बीच देखा कि वो रुसी महिला बाय कहकर बीच में ही एक स्टेशन पर उतर गई थी और वो महाशय फिर लम्बी तान कर सो गए थे.वाह कितने कैजुअल रिश्ते होते हैं यहाँ ..कोई टेंशन ही नहीं..
खैर किसी तरह सुबह हुई ,चाय आई ,हमने पी और इंतज़ार करने लगे कि अब गार्ड आएगा और बताएगा कि तुम्हारा स्टेशन आने वाला है.तभी ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी और लोग अपना सामान उठाकर उतरने लगे | लगभग सभी यात्रियों को उतरते देख हमें थोडा अजीब सा लगा तो हमने अपना शब्दकोष निकला और उसमें से एक वाक्य पास खड़ी एक रुसी लड़की को दिखाया ” ये स्टेशन कौन सा है ? ” वहां से जबाब आया ” वेरोनिज़े” …अब हम फिर परेशान कि क्या करें लग तो रहा है वही कह रही है जहाँ हमें जाना है पर वो गार्ड तो आया नहीं और हमें तो वरोनिश कहा गया है …पर हो सकता है कि एक्सेंट का फर्क हो ..हमें परेशान देख वो लड़की हमसे न जाने क्या पूछने लगी रुसी में और हम उसकी शक्ल देख बडबडाने लगे ” रुस्की नियत “( नो रुसी ) अब उसने भी किसी तरह हमारे शब्द कोष में से ढूँढ ढूँढ कर हमसे पूछा कि कहाँ जाना है ..हमने बताया ..अब उसे भी हमारे उच्चारण पर शक हुआ ..इसी तरह कुछ देर शब्दकोष के साथ हम दोनों कुश्ती करते रहे अंत में हमारा दिमाग चला और हमने फटाक से अपना यूनिवर्सिटी का ऐपौइन्टमेंट लैटर उसे दिखाया ..उसने देखा और फट हमारा एक बैग हमारे हाथ में थमाया और हमारा सूटकेस अपने हाथ में पकड़ा और झट से हमें स्टेशन पर उतार लिया …हम हक्के – बक्के हैरान परेशान ..जान हलक में अटकी हुई थी .रशियन माफिया और वहां विदेशी लोगों को लूटने के चर्चे भी सुने हुए थे. बस राम राम जपते हम उसकी अगली गतिविधि का इंतज़ार करते रहे..वो थोड़ी देर हमारे उस कागज को देख हमें कुछ समझाने की कोशिश करती रही .फिर उसने हमें शब्दकोष में दिखाया कि आओ मेरे साथ. मरता क्या न करता ?हमें आधा घंटा से ज्यादा हो गया था वहां मगज़ मारते पर उस दुभाषिये शाशा का कोई अता पाता न था ,तो ये सोच कि भागते भूत की लंगोटी भली ,ये लड़की शक्ल से चोर तो नहीं लगती ,बाकी भगवान की मर्जी सोच. हम उसके साथ चल दिए .अब हमारे एक कंधे पर १५ किलो का बैग और एक हाथ में ३५ किलो का सूटकेस (दाल चावल सब बाँध दिया था मम्मी ने कि वहां न जाने क्या मिलता होगा क्या नहीं ).
तो हम चल रहे थे अपनी चाल से ठुमक ठुमक और उसके पास था बस एक पिठ्ठू तो वो तो.शताब्दी एक्सप्रेस हुई जा रही थी …वैसे भी इन यूरोपियन को बहुत पैदल चलने का शौक होता है ..न जाने कितनी दूर पैदल ले गई वो ( वो हमें बाद में पाता चला कि स्टेशन से बस भी मिलती है यूनिवर्सिटी तक )फिर उसने हमारी चाल देखी और अपनी घड़ी और झट से हमारा सूटकेस ले लिया और बोली फास्ट…अब वो चलने लगी और हम उसके पीछे- पीछे दौडने लगे. आखिरकार २० मिनट चलने के बाद एक इमारत नजर आई और उसकी चाल थोड़ी धीमी हुई तो हमारी सांस भी थोडा नॉर्मल हुई खैर पहुंचे अन्दर, वहां जाकर उसने एक आदमी से न जाने क्या कहा ..उसे हमारा लैटर पकडाया .और हमें बाय कहकर एक पुच्ची गाल पर देकर चली गई .और तब हमें समझ आया कि हम ठीक जगह पर पहुंचे हैं और इस समय अपनी यूनिवर्सिटी के डीन के आगे खड़े हैं जो अंग्रेजी में हमारा स्वागत कर रहा है….. .तभी पीछे से एक मोटे से चश्में वाला अजीब नमूना सा ,सीकड़ा सा रूसी आदमी भागता हुआ आया और आते ही अपनी रूसी टोन की इंग्लिश में हमसे माफ़ी मांगने लगा …सॉरी कहते कहते उसकी ज़ुबान नहीं थक रही थी ..तब जाकर हमें सारा माजरा समझ आया कि वो वहां देरी से पहुंचा था और वो ट्रेन का गार्ड वोदका पीकर टुन्न था और वोरोनिश उस ट्रेन का आखिरी स्टेशन था.अब हमें होश आया तो अब तक की चुप्पी कहर बन बरस पड़ी उस डीन के सामने… बरस ही तो पड़े हम, कि ये कौन सा तरीका है ? अगर वो लड़की नहीं मिलती तो क्या होता हमारा ? कौन जिम्मेदार होता? हम बडबडाते रहे और वो शाशा सॉरी सॉरी करता हमारे दोनों बैग उठाकर हमारे हॉस्टल के कमरे में पहुंचा गया और फिर हमें लेकर सीधा वहां की कैंटीन ..वहां जाकर एक बढ़िया सी आइसक्रीम हमारे लिए मंगाई और हाथ जोड़कर हमारे सामने बैठ गया ..कि अगर हमने उसकी शिकायत कर दी तो उसकी नौकरी चली जाएगी फॉरेन स्टुडेंट का मामला है . खैर उस आइसक्रीम से हमारा दिमाग थोडा ठंडा हुआ और हमने उसे माफ़ कर दिया.ये सोच कर कि वो फ़रिश्ता जो हमें यहाँ तक छोड़ गई वो भी हमें इसी की वजह से मिली थी .और उस दिन से रूसी लोगों के लिए हमारे मन में जगह बन गई.उस लड़की ने अपना नाम “लेना” बताया था और वो भी एक स्टुडेंट ही थी पर शायद किसी और फैकल्टी की … उसके बाद उसे हमने ढूंढ़ने की बहुत कोशिश की क्योंकि शुक्रिया तक नहीं कह पाए थे उसे हम ..पर वहां “लेना, ओल्गा ,जैसे नाम हर दूसरी लड़की के होते हैं ..तो वो हमें फिर कभी नहीं मिली .शायद मेरे माता -पिता की दुआओं के चलते भगवान ने ही उसे हमारे लिए भेजा था.
तो ये था हमारी जिन्दगी का वो पहला और सबसे खतरनाक वाकया जिससे हम पता नहीं कैसे उबार पाए… पर इस घटना ने पूरे हॉस्टल में हमारी धाक जमा दी और हमें “बोल्ड गर्ल” का ख़िताब अनचाहे ,अनजाने ही दे दिया गया.जो बाद में हमारे बहुत काम आया ….. कैसे .? ये आपको फिर कभी बताउंगी .फिलहाल तो इन पंक्तियों के साथ इस पोस्ट को ख़तम करती हूँ
नहीं आता था ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर चलना भी
जिन्दगी सिखा ही देती है गिरना भी संभलना भी.
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Voronezh state University.
इससे आगे यहाँ .http://shikhakriti.blogspot.com/2010/08/blog-post_18.html
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