Friday, January 29, 2010

मेरा गिरना तेरा उठाना


तुम्हारे उठने और 
मेरे गिरने के बीच 
बहुत कम फासला था. 
बहुत छोटी सी थी ये जमीं 
या तो तुम उठ सकते थे 
या मै ही, 
मैंने 
उठने दिया दिया था तुम्हे 
अपने कंधो का सहारा देकर 
उसमे झुक गए मेरे कंधे 
आहत हुआ अंतर्मन 
पर ह्रदय प्रफुल्लित था 
आत्मा की आवाज़ सुनकर. 
पर आज 
सबकुछ नागवार सा है, 
भूल गए हो तुम 
अपनी ज़मीन, 
मिल जो गया है तुम्हें आसमान 
इन कन्धों की अब नहीं जरुरत,
बढ़ जो गया है वजूद तुम्हारा. 
पर याद रखना मेरे हमदम 
जिस दिन 
जिन्दगी की सांझ आएगी न 
यही जमीन पास होगी 
इन्हीं कंधो पर तेरा हाथ होगा. 
और तब होउंगी मैं 
बस मैं तेरे पास ,तेरे साथ 
तब शायद होगा तुझे 
अहसास मेरे जज्बों का..

Wednesday, January 27, 2010

अरे चाय दे दे मेरी माँ !


अक्सर हमने बुजुर्गों को कहते सुना है कि ये बाल हमने धूप में सफ़ेद नहीं किये…..वाकई कितनी सत्यता है इस कहावत में …जिन्दगी यूँ ही चलते चलते हमें बहुत कुछ सिखा देती है और कभी कभी जीवन का मूल मन्त्र भी हमें यूँ ही अचानक किसी मोड़ पर मिल जाता है.अब आप सोच रहे होंगे कि किस लिए इतनी भूमिका बाँध रही हूँ मैं ? मुद्दे पर क्यों नहीं आती ..तो चलिए मुद्दे पर आते हैं आज आपको कुछ ऐसे वाकये सुनती हूँ जिनसे मुझे जीवन की सबसे बड़ी सीख मिली.पर शुरू करते हैं एक मजेदार किस्से से .
बात उन दिनों की है जब मैं १२ वीं के बाद अपनी आगे की पढ़ाई करने मोस्को (रशिया) गई थी.हमारे उस batch में करीब ५०-६० विद्यार्थी थे और हमें अपनी अपनी university भेजने से पहले १-२ दिन के लिए मोस्को के ही एक होटल में टिकाया गया था ,जहाँ खाने पीने तक की सारी व्यवस्था हमरे ऑर्गनाइजर. ही करते थे.और हमें कहीं भी बाहर जाने की इजाजत नहीं थी, क्योंकि हमें रूसी भाषा का बिलकुल ज्ञान नहीं था और वहां आम लोग बिलकुल अंग्रेजी नहीं समझते थे.खैर एक दिन हम कुछ दोस्तों (सभी भारतीय )को चाय की तलब लगी तो एक मित्र ने सलाह दी कि चलो होटल के कैफे में जाकर चाय पी जाये पर समस्या फिर वही की भाषा नहीं आती …हमारे उस मित्र महोदय में आत्म विश्वास कुछ ज्यादा ही था कहने लगा हम हैं न… समझा लेंगे ,सो हम केफे आ गए ..और शुरू हुई मुहीम वहां attendent को चाय समझाने की .अपने हाव भाव से, अंग्रेजी को तोड़-मोड़ के, घुमा घुमा का होंट बनाकर ,वह महोदय हो गए शुरू..अब हमारा वो दोस्त कहे ..टी-… टी …, फॉर टी pl .पर वो महिला समझ ही नहीं पा रही थी..थोड़ी देर सर फोड़ने के बाद …आखिरकार हमारा दोस्त खीज गया और झल्ला कर बोला ” चाय दे दे मेरी माँ.…………” और तुरंत ही जबाब मिला ” चाय खोचिश? ( चाय चाहिए) हमने जल्दी जल्दी हाँ मैं सर हिलाए..गोया हमने देर कि तो वो चाय को फिर से कॉफी समझ बैठेगी….हा हा हा …. उसदिन हमने रूसी भाषा का पहला शब्द सीखा…चाय……………रूसी में भी चाय को चाय ही कहते हैं..
अब आते हैं उस घटना पर जिसने मुझे जिन्दगी का शायद सबसे बड़ा सबक सिखाया…हुआ यूँ कि …मोस्को युनिवर्सिटी के ५ साला परास्नातक पाठ्यक्रम में जिसके …हर एक्जाम के लिए क्रमश ५ ( excellent ) ४ (good ) ३ ( satisfactory ) और २ (fail ) इस हिसाब से no दिए जाते थे …और जिसके शुरू से आखिर तक रिपोर्ट बुक में तीन या उससे कम विषय में से कम ४ no हो और बाकी के सब ५ उन्हें “रेड डिग्री” यानि की गोल्ड मेडल से नवाजा जाता है..तो जी बात उन दिनों की है जब मैं अपने आखिरी सेमेस्टर में थी और उस गोल्ड मेडल के ५ उम्मीदवारों में से १ उम्मेदवार भी……आगे २ exams और बचे थे और मेरी रिपोर्ट बुक में दो चौग्गी लग चुकीं थीं यानि सिर्फ एक ४ no की और गुंजाईश थी…एक exam बचा था रूसी भाषा का ..जिसमें मैं अपनी क्लास में अव्वल थी और दूसरा था इकोनोमिक्स का जिसमें मेरा हाथ ज़रा तंग था और पिछले सेमिस्टर में उसी में हम ४ no पा चुके थे और उसकी teacher ने हमसे हाथ जोड़ कर विनती की थी की pl .बस एक वो लाइन बोल दे जिसमें इस सवाल का जबाब है ..तेरी रिपोर्ट में पहली चौग्गी (४ no ) लगाने का पाप मैं अपने सर नहीं लेना चाहती ..पर भला हम क्या करते नहीं आ रही थी वो लाइन दिमाग में तो नहीं आ रही थी...खैर हमारे पास बस एक उपाय था कि उस रूसी के exam में पांच no ही लाने हैं…अब हम पहुँच गए exam देने और पता चला exam लेने वाली teacher बहुत ही खडूस है और बहुत मुश्किल से ५ no. देती है

खैर हमसे पहले और २ लोगों ने exam दिया जिन्होंने कभी १ बार में कोई exam पास नहीं किया था और उन्हें ५ no. मिल गए … हम हैरान ..फिर लगा भाई हो सकता है आखिरी साल है अक्ल आ गई होगी.अब हम पहुंचे, सारे जबाब दिए पर उन्होंने हमें पकडाए no. ४ . बात हमारी समझ में नहीं आई..पर कर क्या सकते थे ? हमने कहा हमें ये मंजूर नहीं हम दुबारा आयेंगे exam देने . हॉस्टल पहुँच कर देखते हैं वो दोनों अपनी जिन्दगी के पहले और आखिरी पंजी (५ अंक ) का जश्न मना रही थीं वहां हमें एक कॉमन फ्रेंड ने बताया कि उन्होंने एक महँगा गिफ्ट देकर उस teacher को खरीद लिया था..खैर हमें क्या ? हम फिर जुटे पढाई में और फिर से पहुंचे exam देने …पर इस बार उस teacher का रुख ही बदला था औपचारिकता वश १-२ सवाल पूछ कहने लगी कि नहीं मैं ४ से ज्यादा नहीं दे सकती…अब तो हमारा खून उबाल मारने लगा.जाने कौन सा भूत सवार हुआ … हमने छीनी अपनी रिपोर्ट बुक उसके हाथ से और चिल्लाकर कहा “मुझे पता है ५ no . कैसे मिलते हैं और अब मैं वैसे ही लुंगी.”और दनदनाते निकल गए कमरे से...वहां से हॉस्टल तो आ गए . वहाँ आकर एहसास हुआ कि क्या गज़ब कर आये हैं…अपने पैर पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली है…दोस्तों को बताया तो वो भी गलियां देने लगे ” दिमाग ख़राब हो गया है तेरा…teacher से लड़ आई …पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर ? अब ४ no भी नई मिलेंगे.”..पर अब क्या कर सकते थे तीर तो निकल चुका था कमान से ….कुछ न कुछ तो करना था . यूं अपनी ५ साल की मेहनत पानी में जाते नहीं देख सकते थे हम…..हम गए बाजार और एक बहुत ही खुबसूरत सा तोहफा खरीदा और लेकर पहुँच गए उस teacher को exam देने …एक हाथ में तोहफा और एक हाथ में रिपोर्ट बुक . teacher सामने आई तो सांस रुक सी गयी थी …आज से पहले किया कभी ऐसा काम किया नहीं था ..गला सूख रहा था …धडकते दिल से रिपोर्ट बुक पकड़ा दी..दूसरा हाथ आगे बढ़ाने ही वाले थे कि सुनाई दिया ” मुझे पता है आपने तैयारी की है मैं ५ no दे रही हूँ आपको.”..हमारी ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की नीचे….अनवरत ही दूसरा हाथ पैकेट के साथ आगे आ गया….पर वो ये कह कर चली गई कि “नहीं इसकी कोई जरुरत नहीं ..आपका भविष्य सुखमय हो”……हम जडवत से खड़े थे वहां, मुंह से शुक्रिया भी न निकला…कानो में Dean द्वारा अपना नाम पुकारने और तालियों की गडगडाहट गूंजने लगी थी…...हमारी जिन्दगी का सबसे सुखद क्षण था वो….जिसने हमें हमारी जिन्दगी का पहला और सबसे जरुरी सबक सिखाया था...” अपना हक किसी को मिलता नहीं ,मांगना पड़ता है …और मांगने से भी न मिले तो छीनना पड़ता है ” अगर हम उस दिन चुपचाप ४ no लेकर आ गए होते तो ५ साल की हमारी सारी मेहनत पर एक नाइंसाफी की वजह से पानी फिर जाता …..पर आज एक उसी क्षण की वजह से हमारी डिग्री पर स्वर्ण अक्षर इंगित हैं ..शायद हमारे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि ..और वो teacher जो शायद हमारी नफरत में कहीं होती आज हम उसे बड़े फक्र के साथ याद करते हैं


इससे आगे यहाँ.http://shikhakriti.blogspot.com/2010/06/blog-post.html

Tuesday, January 26, 2010

चीत्कार उठी भारत माता

सर उठा रहा भुजंग है 
क्रोध, रोष, दंभ है 
बेबस है लाल भूमि के 
शत्रु हो रहा दबंग है 
फलफूल रहा आतंक है 
और सो रहा मनुष्य है 
अपनी ही माँ की छाती पर 
वो उड़ेल रहा रक्त है 
जिन चक्षु में था नेह भरा
वो पीड़ा से आज बंद हैं 
माँ कहे मुझे नहीं देखना 
मेरी कोख पर लगा कलंक है 
नादान मासूम बच्चों को 
कौन कर रहा यूँ भ्रष्ट है
चीत्कार उठी भारत माता 
बस बहुत हुआ …ये अनर्थ है 
पर न झुकेंगे हम, 
न डरेंगे हम 
जब तक है सांस लडेंगे हम 
सपूत धरा के आये हैं 
करने नष्ट शत्रु का ये दंभ.

Friday, January 22, 2010

किसकी शामत आई है


नजरें. कुछ और कह रही

लब की अलग कहानी है

देते आगे से मिश्री और

पीछे हाथ में आरी है

कोई बड़ा हुआ है कैसे

और कोई कैसे चढ़ा हुआ है

खींचो पैर गिराओ भू पर
ये किस की शामत आई है.
.
रख कर पैर किसी के सर
बस अपनी मंजिल पानी है.

है हाथ दोस्ती का बढा हुआ.
दिल से दुश्मनी निभानी है


कोई तो राह चलो मन की
कोई तो दे दो पनाह इसे
दर दर भीख मांग रही

ये इंसानियत बेचारी है

Monday, January 18, 2010

वेनिस की एक शाम

Venice city

बहुत साल पहले एक फिल्म आई थी ” द ग्रेट गेम्बलर ” उसमें अमिताभ बच्चन और जीनत अमान पर एक गाना फिल्माया गया था ” दो लफ़्ज़ों की है दिल की कहानी ” वेनिस में गंडोले (एक तरह की लम्बी नोंक वाली नाव जिसे नाविक उसके पिछले छोर पर खड़ा होकर चलाता है ) पर फिल्माए इस गीत ने बचपन में ही मुझे वेनिस से प्यार करा दिया था.
जिस उम्र में बच्चे “डिजनी वर्ल्ड ” जाने का सपना देखते हैं ,वहां मैने वेनिस जाने की कल्पना कर डाली थी. मन ही मन सोच लिया था कि वहाँ उस गंडोला वाले को यही गीत  “ओ मोरे मिओ (गीत की पहली पंक्ति जो इटालियन भाषा में है ) गाने को कहूँगी. तब किसने सोचा था कि जिन्दगी ये मौका भी देगी. हम तो ये सोच कर भूल गए कि “न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी
पर कहते हैं न कि सपने जरुर देखने चाहिए तभी हम उनके पूरा होने की उम्मीद कर सकते हैं. तो वह दिन भी आया जब हम मेरे सपनों के उस शहर में खड़े थे और उसे उस फिल्म के दृश्य से मिलाने की कोशिश कर रहे थे.

A Museum in Venice.
 उत्तरी इटली का एक छोटा सा शहर वेनिस- लगभग १७७ छोटे -छोटे द्वीपों से घिरा हुआजिसकी खूबसूरती किसी हसीन पेंटिंग की तरह लगती हैकल्पना से कोसों दूर हम कहाँ ये सोच सकते हैं कि कोई शहर ऐसा भी है जहाँ सड़क ही नहीं है. पानी है सिर्फ पानी। खुबसूरत कनाल बिछी हुई हैं पूरे शहर में और ४०० से ज्यादा पुल हैं. जब सड़क ही नहीं है तो उस पर चलने वाले वाहन कहाँ से आयेंगे सो कोई कारबसरेल यहाँ तक कि स्कूटर या बाइक का नमो निशान नहीं दीखता.अजीब शहर है. सारी सुविधाएँ है जैसे-टैक्सी ,बस पर सब पानी में चलती है. (वाटर टैक्सी ,वाटर बस) आपको कहीं भी जाना है शहर मेंयही एक मात्र साधन हैं आपके पास या फिर पैदल चलिए. कहीं परियों के देश सा कुछ एहसास होने लगता है. यह शहर इस दुनिया का तो नहीं लगता …
यूँ वेनिस में काफी होटल हैं परन्तु ट्रांसपोर्ट की कठिनाइयों के कारण काफी महंगे होने की वजह से  अधिकांश ट्यूरिस्ट वेनिस के बाहर किसी शहर में रुकना पसंद करते हैं और वहां से नाव द्वारा वेनिस की सैर किया करते हैं. परन्तु हमने ठीक वेनिस में ही पानी से घिरा हुआ एक होटल चुना। मिलान से युरोरेल के द्वारा हम वेनिस के सांता लुसिआ रेलवे स्टेशन पर उतरे और वहां से एक वाटर टैक्सी के द्वारा उस होटल में. डुप्लेक्स की तरह का २ कमरों का वह फैमिली सुइट बेहद खूबसूरत था. परन्तु दीवारों और फर्नीचर पर एक अजीब सी सीलन थी. जो भी हो वेनिस में जल महल जैसा एहसास कराने के लिए यह सीलन बुरी नहीं थी. होटल से सैर करने की सारी जानकारी लेकर हम बाहर निकले तो एक वाटर टैक्सी फिर हमारा इंतज़ार कर रही थी. 
अनगिनत चर्चों के साथ यह शहर एक सांकृतिक और व्यापारिक केंद्र भी है. साल भर सेलानियों को लुभाने के लिए बहुत से कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं यहाँ। क्रिसमस पर होने वाला कार्निवाल तो दुनिया भर में प्रसिद्ध है जिसमे खुबसूरत मास्क पहन कर लोग निकलते हैंऔर इन मास्क की फैक्ट्री और दुकानों की भव्यता देख कर गश आने लगता है. बहुत से संग्रहालय और आर्ट गैलरियां हैं. और बहुत ही खुबसूरत ग्लास फैक्टरी है जहाँ जाकर हमें एहसास हुआ कि हमारे भारत के लोग कितने अमीर हैं क्योंकि वहाँ के एक दुकानदार ने बताया कि उनके यहाँ से ६०% माल भारत के लिए निर्यात किया जाता है.
खैर इन सब को छोडिये। मुझे जो वेनिस की दो चीज़ें बहुत पसंद आईं  जिसमें एक थी – शहर की बनावट। लम्बी लम्बी पानी की कनालेउन पर चलती हुई मोटर बोटशहर की छोटी छोटी पानी की गलियों से जाते हुए गंडोलेइमारतों की दीवारों पर  जमी हुई काई. किसी काल्पनिक लोक में होने का सा एहसास देते है.
 यह एक सपनों का शहर है जहाँ की हवाओं में प्यार हैफिजाओं में रोमांस हैउसपर गंडोला की दिलकश यात्रा.
हालाँकि अपने बचपन के उस सपने को पूरा करने के लिए मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ी। क्योंकि वेनिस यूरोप का सबसे महंगा शहर है और ये वहाँ काम करने वाले लोग बड़े फक्र से आपको जताते हैं कि साहेब ! पैसे बचाने थे तो वेनिस क्यों आये?. तो जी गंडोला की एक ट्रिप का दाम था £१०० और ये सुन कर हमारी सांस कुछ अटक सी गई थी. पर फिर हिम्मत बांधी और अपना हिन्दुस्तानी रास्ता आजमाया. थोड़ी बहुत मेहनत गंडोला वाले से मोल भाव करने में लगी और थोड़ी पतिदेव को इमोशनल ब्लेकमेल करने में. आखिरकार £80 में दोनों मान गए और हम चढ़ गए गंडोले पर. हाँ यहाँ ये बताती चलूँ कि उसपर चढते ही मैंने अपनी फ़रमाइश रख दी गंडोले वाले से, कि गाना सुनाओ। वह और भी झक्की निकलाकहने लगा, ये तो पुरानी बात हो गई अब कोई नहीं गातान ही किसी को वे लोकगीत अब आते हैं. हमने कहा अरे इतने पैसे दिए हैं गाना तो हम सुनकर जायेंगे और दूसरी नाव वाला भी तो गा रहा है तुम्हें क्या गुरेज़ है. लोकगीत नहीं तो कुछ भी सुना दो.वह ठहाका लगा कर हँसने लगा बोलाआपको क्या पता वो क्या गा रहा है वो तो हमें पता है. टीपिकल इतालवी में गालियां दे रहा है. अब सकपकाने की बारी हमारी थी. पर बचपन का सपना था तो छोड़ने वाली तो मैं थी नहीं हमअत: उसे वही दो लाइन ओ मोरे मिओ” बताईं और कहा- ये ही गाओ बार बार. हमारी जिद देख आखिर उसने २ लाइन सुना ही दीं और हमारे पैसे वसूल हो गए
Gandola venice ki galiyon main. Venetian Mask

 पूरे ट्रिप के दौरान उसने कुछ बड़े -बड़े लोगों के घर दिखाए। जिसमें से लेओनार्दो डी विन्ची का घर भी था. कुछ पल को लगा कि जरूर इसी बालकोनी में बैठकर मोनालिसा बनी होगी इसलिए उसमें इस जगह का जादू समा गया होगा. एक बात जो वहाँ जगह-जगह पर अचंभित करती है वह यह कि आपके घर की खिड़की हो या दरवाजापानी में ही खुलता है. घर से निकले तो नीचे पानी. आपके स्कूटर या कार की जगह खड़ी है नाव. बैठिये और चल पढ़िए। फिर रैस्टोरेंट जाना हो या राशन की दुकानउसी से जाना होगा. हाँ रैस्टोरेंट से याद आया. दूसरी चीज़ जो वहां हमें बहुत पसंद आईवह था वनेशियन खाना। वहां जाकर हम मांसाहारी से शाकाहारी बन गए थे. वो कहते हैं न when there is so much to eat why eat meat ?. पिज्जा और पास्ता की इतनी किस्में मैने और दुनिया में कहीं नहीं देखी वे भी शाकाहारी। परन्तु भाषा की समस्या से कुछ सब्जियों को समझने में भी खासी कठिनाई आती थी. हालाँकि एक ट्यूरिस्ट स्थल होने के कारण काम चलाऊ अंग्रेजी वहां के सभी कर्मचारी बोल समझ लेते हैं परन्तु उच्चारण की भिन्नत्ता के कारण  कई बार साधारण सी बात समझने में भी खासी मशक्कत हो जाती है. एक पालक और बैगन वाला पिज़्ज़ा समझाने के लिए बेचारे वेटर को पूरी एक्टिंग करके दिखानी पड़ी. खैर इससे पहले की मेरे मुँह में फिर से पानी आये, आगे बढ़ते हैं.

वहाँ की जल गलियों में घूम-घूम कर मन ही नहीं भर रहा था. हाँ बाकी के लोगों को रात तक पानी से उकताहट सी होने लगी थी. और हमारे बच्चों को ठहरे हुए पानी की वजह से कहीं-कहीं बदबू का भी आभास होने लगा था. पर जैसे मेरा तो कोई पिछले जनम का नाता था वेनिस से. तो एलान कर दिया कि रात की छटा देखे बिना तो हिलेंगे भी नहीं. हमारा यह निर्णय व्यर्थ नहीं गया. पानी में तैरता वह शहर ,चाँदनी और नावों की चलती रौशनी में कैसा लगता है इसका बखान तो शब्दों में करना असंभव है। हाँ इतना जरुर कह सकती हूँ कि इस शहर की खूबसूरतीकिसी की भी कल्पना से परे है. दो दिन में देखे वेनिस को मैं कुछ पंक्तियों में उसे समेटने की कोशिश करती हूँ.
पानी ही पानी वहाँ तक
नजरें जाती हैं जहाँ तक 
प्रीत भरी हवा में देखो
रूह हो जाती मस्त जहाँ पर
जल में बहता एक गाँव सा
सुंदर नावों के पांव सा.
तन मन जहाँ प्रफुल्लित हो
कैसे भूलें वो दिन रात.
वेनिस की वो सुरमई शाम.

Friday, January 15, 2010

सीले सपने

उगता सूर्य कल यूँ बोला,

चल मैं थोडा ताप दे दूं 
ले आ अपने चुनिन्दा सपने
कुछ धूप मैं उन्हें दिखा दूँ 
 उल्लासित हो जो ढूंढा 
कोने में कहीं पड़े थे, 
कुछ सीले से वो सपने

निशा की ओस से भरे थे.

गत वो हो चुकी थी उनकी 
लगा श्रम बहुत उठाने में 
जब तक टाँगे बाहर आकर 
सूरज जा चुका था अस्तांचल में 
 अब फिर इंतज़ार दिनकर का, 
कब वो फिर से पुकारेगा, 
खूंटी पर टंगे मेरे सपनो को 
क्या कभी धूप वो दे पायेगा.?

Wednesday, January 13, 2010

खुशदीप जी के १० पॉइंट्स का दूसरा रुख

इस पोस्ट की प्रेरणा मुझे खुशदीप जी की पोस्ट से मिली है. अभी १- २ दिन पहले उन्होंने पत्नियों को समझने के १० commandments बताये थे. जो बहुत मजेदार थे सबने बहुत आनंद उठाया ,परन्तु वो सिक्के का एक पहलू था , और दूसरा पहलू न दिखाया जाये तो ये बात तो ठीक नहीं .तब मैने वादा किया था खुशदीप से कि पतियों के गुण मैं बताती हूँ अब वादा किया था तो निभाना तो पड़ता ही… हाँ जरा देर जरुर हो जाती है .आखिर पति -पत्नी सिक्के के २ पहलू की तरह ही होते हैं…तो यहाँ मैने उसी दुसरे पहलू को रखने की कोशिश की है….किसी की भावनाएं आहत करना मेरा मकसद नहीं ..अत : कृपया कोई इसे अन्यथा न ले.


  1. .अगर पति बिना किसी कारण फूल लेकर आये तो उसके पीछे जरुर कोई कारण है……..- मोल्ली मैक गी
  2. पति नाम के प्राणी के पास बेशक एश्वर्या जैसी बीबी हो फिर भी उसकी नजर पड़ोस की काजोल पर ही होती है……. Anonymous
  3. पति आग की तरह होते हैं जिन्हें दायरे में न रखा जाये तो काबू से बाहर हो जाते हैं ………Zsa Zsa Gabor .
  4. पति पाना एक कला है और उसे टिका कर रखना एक कठिन कार्य ……..Simone De Beauvoir
  5. सुयोग्य पति पत्नी को सम्मान का अधिकारिणी बना देता है….. .मनुस्मृति
  6. पति और पत्नी पक्के और सच्चे साथी है . वे दोनों धर्म , अर्थ .काम , मोक्ष इन चारों पदार्थों की प्राप्ति के लिए सामूहिक प्रयास करते हैं ……...डा. राधाकृष्णन
  7. पत्नी पति की अर्धांगिनी और परम मित्र है .संसार में जिसका कोई सहायक ना हो ,उसका पत्नी जीवन यात्रा में साथ देती है…….महात्मा गाँधी
  8. केवल घर में रहने से कोई गृहस्थ नहीं होता .पत्नी के साथ रहने से मनुष्य गृहस्थ कहलाता है , जहाँ भार्या है वही घर है .भार्या विहीन घर तो वन तुल्य है …..बृहतपाराशर संहिता
  9. पतियों में दृष्टि होती है , पत्नियों में अंतर्दृष्टि …….विक्टर हुयुगो.
  10. पति वो जीव है जिसे रोटी दो तो हड्डी के लिए गुर्राता है ,पर दुत्कारो तो मिमियाता चला आता है…… . Anonymous

Tuesday, January 5, 2010

क्या बेबकूफ सिर्फ हम हैं?

आज भी, जब भी विदेशी मीडिया में हिन्दुस्तान का जिक्र होता है तो उसमें सांप भालू का नाच दिखाते लोग, मूर्तियों को दूध पिलाते लोग दिखाए जाते हैं, भारत को किस्से कहानियों का, तमाशबीनों का देश समझा जाता है जिसके नागरिक किवदंतियों और चमत्कारिक कहानियों को अपना इतिहास बताते हैं.
जी हाँ, बरसों से सुनते आये हैं कि हम भारतीय बेबकूफ हैं, अन्धविश्वासी हैं. न जाने किन किन चीज़ों पर विश्वास करते हैं. पत्थर की मूर्तियाँ बना कर पूजते हैं वो भी १ – २ नहीं ३५ करोड़. इंसान तो इंसान सांप, हाथी, बन्दर यहाँ तक कि नदी और पेड़ पौधों को भी नहीं छोड़ते. मिर्गी के दौरों को किसी प्रेत आत्मा का असर समझते हैं और मीजिल्स जैसी बीमारियों को माता का प्रकोप. किसी अंग्रेज़ के लिए हिन्दुस्तान इतिहास का एक अध्याय जैसा है. और अब एक नया शिगूफा कि कोई भी बीमारी हो,डर हो तो उसके पीछे है.कोई राज़ पिछले जनम का…
पर जरा सोचिये क्या हम सचमुच अन्धविश्वासी हैं ? बेबकूफ हैं ? यदि हाँ तो फिर हम उन इजिप्शियन को क्या कहेंगे? जो नदी,पर्वत,सूरज आदि को पूजा करते थे. क्या वो मृत्यु के बाद की जिन्दगी पर विश्वास नहीं करते थे ?जिसके लिए उन्होंने mummified जैसी तकनीक इजाद की, जिसके साथ वो उसकी जरुरत का सारा सामान रखा करते थे, जिन्हें आज भी दुनिया के सबसे बड़े आश्चर्य के रूप में देखा जाता है. क्या कहेंगे आप दुनिया के एक सबसे विकसित और so called सभ्य कहे जाने वाले उस देश को जो उन mummies को इतिहास की सबसे बड़ी धरोहर और विज्ञान की एक उपलब्धि मानते हुए अब तक बड़े गर्व के साथ अपने संग्रहांलयों में सजाय हुए है.
ब्रिटिश मुजियम में रखी(संरक्षित ) एक जिंजर नाम की ममी जिसके साथ उसकी जरुरत का सामान भी मौजूद है
चलिए ईजिप्ट और उसकी बातें आदि काल की हो गईं पर क्या कहेंगे आप उन अंग्रेजों को? जो आज भी कुछ बड़े पत्थरों को एक स्थान पर सजाये (इंग्लैंड में स्थित स्टोन हेंज )बड़े फक्र से कहते हैं कि वह एक आश्चर्य है. वे पत्थर क्यों हैं, किसलिए हैं ? पता नहीं. शायद पहले लोग उनसे मौसम या ग्रहों की स्थिति का पता लगाते थे. अब उन्हें तो कोई बेबकूफ नहीं कहता पर जब हम कहते हैं हमारे पूर्वज बांस घुमा कर ग्रहों और मौसम की जानकारी पाते थे तो उसे कहानी कहा जाता है और हमारे पत्थर पूजने को अन्धविश्वास…
स्टोन हेंज
और तो और पश्चिम देशों में आज भी हेलोइन जैसे त्यौहार मनाये जाते हैं. भूत,चुड़ैलों के अस्तित्व को माना जाता है. यहाँ भी haunted house पर लोग यकीन करते हैं जहाँ उनकी रानियों की आत्माएं घूमा करती हैं. सांता क्लोस जैसे चमत्कारिक चरित्र पर बच्चों को विश्वास दिलाया जाता है. फिर उन्हें क्यों नहीं कोई अन्धविश्वासी कहता?
हेलोइन के दौरान अमरीकी सड़कों पर भुतहा परेड …त्यौहार मानते लोग.
जाने दीजिये ये सब. परन्तु प्रभु ईसा मसीह का एक दिन मरना और दूसरे दिन पुन: जीवित होना …इसे क्या कहेंगे आप ? क्या ये पुनर्जीवन नहीं है? इसपर तो सारा विश्व यकीन करता है…फिर हमारी ही मान्यताएं गलत और तर्कहीन क्यों? हम ही अन्धविश्वासी और बेबकूफ क्यों?
यहाँ ये सब कहने से मेरा ये मतलब कदापि नहीं कि हमें इन सबमें विश्वास करना चाहिए या अन्धविश्वासी होना चाहिए. मेरा मकसद किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुचना भी नहीं है. मेरा सवाल सिर्फ इतना है कि जब सारा विश्व इन मान्यताओं को किसी न किसी रूप में मानता है तो अन्धविश्वासी,पिछड़ा हुआ और बेबकूफ सिर्फ हम हिन्दुस्तानियों को ही क्यों कहा जाता है?