तू समझे न समझे दीवानगी मेरी,
तेरे आगोश में मेरे मर्ज़ की दवा रक्खी है।
दिल आजकल कुछ भारी- भारी लगता है,
उसपर तेरी याद की परत जो चढ़ा रक्खी है।
आखों से लुढ़कते आँसू भी पी हम जाते हैं कि,
बह न जाये वो तस्वीर जो उनमें बसा रक्खी है।
नहीं धोया वर्षों से वो गुलाबी आँचल हमने,
उसमें तेरी साँसों की खुशबू जो समा रक्खी है।
अपने मंदिर में माला मैं चढाऊँ केसे?
ईश्वर की जगह तेरी मूरत जो लगा रक्खी है।
हम हथेलियाँ नहीं खोलते पूरी तरह से,
इनमें तेरे प्यार की लकीर जो छुपा रक्खी है।
कैसे छोड़ दूं मैं इस मिट्टी के शरीर को,
अपनी रूह से तेरी रूह जो मिला रक्खी है।
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