Monday, April 27, 2009

पलकें

समेटे हर लम्हा खुद में
हर ख्वाब का इन पर बसेरा है
झुकती हैं जब हौले से ये
शर्मो हया की वो बेला है
जो उठ जाएँ कुछ अदा से
मन भंवर ये बबला हो जाये
ये पलकें हैं प्यारी पलके
न बोले पर सब कह जाएँ
जो दो पल झपकें ये पलकें
तन मन सुकून यूं पा जाये
जो मिल जाये अपना सा कोई
खुद पर ही फिर उसे बिठाएं
जो गिरें तो हो जाये रात सनम
जो उठे तो सवेरा हो जाए
जो मिल जाएँ किसी से ये पलकें,
अनुराग ही पूरा हो जाये.

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