हाँ मैंने देखा था उसे उस रोज़
जब पंचर हो गया था
उसकी कार का पहिया
घुटने मोड़े बैठा था गीली मिट्टी में
जैक लिए हाथ में
घूर रहा था पहिये को
और फिर बीच बीच में आसमान को
शायद वहीँ से कुछ मदद की आस में
गंदे नहीं करने थे उसे अपने हाथ
पर गालों पर लग चुकी थी ग्रीस
जतन में उड़ाने के मक्खियां
फिर झुंझला कर जब उठा वो झटके से
हाँ तब देखा था मैंने उसे
और फिर तब
एक चाय के खोमचे पर
एक बैंच पर दो चाय के गिलास
बैठा था जब वो
उस चाय वाले लड़के राजू के साथ
बतियाता उससे उसके गाँव का हाल
और सुनाता अपने लड़कपन के किस्से
राजू के ठहाकों के बीच
जब फैलते थे उसके भी होंट
हाँ तब देखा था मैंने उसे
फिर मिला था एक बार
जॉगर्स पार्क में
पड़ोस वाली अम्मा जी से
ठिठोली करता हुआ
छूता उनकी ठुड्डी को
कभी पल्ला ढकता सर पर
झूठा गुस्सा दिखाती अम्मा की
चमकती आंखों में
जब झांकता वो
अपनी लाठी उठा अम्मा धमकाती उसे
और वह लुढक जाता उनकी गोद में
हाँ तब भी देखा था मैंने उसे.
फिर गाहे बगाहे
कभी किसी नुक्कड़ पर
किसी सड़क पर
किसी पार्क में
मिल ही जाता था वो
पर अब
न जाने कब से
नजर नहीं आता वो
खो गया है शायद इस बेढंगी दुनिया में
अपने से फुर्सत नहीं उसे या
दूसरों का बोझ ज्यादा है
शयद इसीलिए अब कहीं नहीं दिखता
मेरे सपनो का कोई शहजादा.
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