Tuesday, March 28, 2017

वह जीने लगी है...

अब नहीं होती उसकी आँखे नम जब मिलते हैं अपने
अब नहीं भीगतीं उसकी पलके देखकर टूटते सपने।

अब नहीं छूटती उसकी रुलाई किसी के उल्हानो से
अब नहीं मरती उसकी भूख किसी के भी तानो से।

अब किसी की चढ़ी तौयोरियों से नहीं घुटता मन उसका
अब किसी की उपेक्षाओं से नहीं घुलता तन उसका ।

अब नम होने से पहले वह आँखों पर रख लेती है खीरे की फांकें
लेती है कॉफी के साथ केक, सुनती है सेवेंटीज के रोमांटिक गाने।

मन भारी होता है तो वह अब रोती नहीं रहती है
पहनती है हील्स और सालसा क्लास चल देती है।

आखिरकार अपनी जिंदगी अब वह जीने लगी है
क्योंकि पचास के आसपास की अब वह होने लगी है।

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