ऐ मुसाफिर सुनो,
वोल्गा* के देश जा रहे हो
मस्कवा* से भी मिलकर आना.
आहिस्ता रखना पाँव
बर्फ ओढ़ी होगी उसने
देखना कहीं ठोकर से न रुलाना।
पर जरा बचकर जाना
वहीँ पास की एक ईमारत में
लेनिन सोया है
उसे नींद से मत जगाना।
मत्र्योश्काओं* का शहर है वह
एक बाबुश्का* को जरूर मनाना
बेचती होगी किसी कोने में “परागा”*
कुछ अधिक रूबल देकर ले आना.
गोर्की तो कुछ दूर है
चाहो तो मिल आना
चाय मिलेगी “स कन्फैतमी “*
कुछ कप साथ में पी आना.
और सुनो मुसाफिर!
लौटोगे न, तो छोड़ आना
अपने देश की गर्माहट।
ठंडा देश है वह
तुम्हें सराहेगा।
हाँ लौटते हुए वहां से लेते आना
रूसियों की जीवटता.
बोर्श* में पड़े एक चम्मच स्मिताने* सी
लड़कियों की रंगत
उनके सुनहरे बालों का सोना,
और मासूम बालकों के गालों के टमाटर।
सुनो न, बाँध लाना अपनी पोटली में
उनकी कहानियों के कुछ पल,
और बस, इतना काफी होगा न,
वोल्गा और गंगा के प्रेम स्पंदन के लिए.
***
वोल्गा*, मस्कवा* = नदियाँ
मात्रूशकाओं* = रूसी गुड़ियाएं
बाबुश्का* = बूढी अम्मा
परागा”* = एक तरह का केक
स कनफैती”* = मीठी टॉफ़ी के साथ
बोर्श* = चुकंदर के साथ बना एक तरह का रूसी सूप
स्मिताने*= बांध हुआ दही ( सॉर क्रीम)
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