कुछ कहते हैं शब्दों के पाँव होते हैं
वे चल कर पहुँच सकते हैं कहीं भी
दिल तक, दिमाग तक,जंग के मैदान तक.
कुछ ने कहा शब्दों के दांत होते हैं
काटते हैं, दे
सकते हैं घाव, पहुंचा
सकते हैं पीड़ा।
सकते हैं घाव, पहुंचा
सकते हैं पीड़ा।
मेरे ख़याल से तो शब्द रखते हैं सिर्फ
अपने रूढ़ अर्थ
कब, कहाँ, कैसे,कहे, लिखे, सुने गए
यह कहने सुनने वाले की नियत पर है निर्भर
कोई भी शब्द अच्छा या बुरा नहीं होता,
भली- बुरी तो नियत होती है.
***
सदियों से बंद पड़े दरवाजों की कुण्डियों पर
लग जाती है जंग।
फिर उन्हें खोलने में लगती है
भरपूर शक्ति,
होता है किरकिरा शोर और
खुद पर पड़ जाती है धूल ।
भरपूर शक्ति,
होता है किरकिरा शोर और
खुद पर पड़ जाती है धूल ।
***
मुझे नहीं करतीं परेशान
बाहर से आतीं ट्रैफिक की
तेज़ आवाजें,
न बच्चों की चिल्ल पों ही
मुझे सता पाती है.
पक्षियों का कलरव भी
नहीं डालता बाधा
मेरे कामों में.
पर मुझे विचलित करती है
पडोसी के घर से आती
संगीत की वह ध्वनि
जो न तो सुनाई देती है साफ़
और न ही
नज़र अंदाज़ की जाती
है ।
है ।
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