बर्फ के सीने में फ़ना हो ज्यूँ ओस चमकती है.
बेशक फूलों से भरे हों बाग़ बगीचे हर तरफ
दूब फिर भी घास के साये में ही पनपती है.
मेरा यह विश्वास काफी हद तक ठीक निकला और धीरे धीरे मेरी सोई हुई पत्रकारिता को हवा मिलने लगी. फिर देश विदेश के पत्र पत्रिकाओं में छोटे छोटे लेख, फीचर, कवर स्टोरी, स्तम्भ, पुस्तकों से गुजरता हुआ मेरा यह सफर कब पुरस्कारों तक आ पहुंचा मुझे पता भी न चला.
अत: जब यू के में हिंदी मीडिया में योगदान के लिए उच्चायोग द्वारा महावीर प्रसाद द्विवेदी मीडिया सम्मान मुझे मिलने की सूचना, मुझे मिली तो मेरे लिए वह अद्भुत घड़ी थी. और इस घोषणा के औपचारिक पत्र के प्राप्त होने तक मुझे यकीन तक नहीं हो रहा था.
आखिर ५ दिसंबर २०१४ की वह शाम आ गई जब भारतीय उच्चायोग लंदन में, माननीय उच्चायुक्त रंजन मथाई द्वारा यह सम्मान दिया जाना था. इंडिया हाउस का गांधी हॉल यू के के साहित्यकारों, हिंदी प्रेमियों और अन्य गणमान्य विभूतियों से भरा हुआ था शुरूआती जलपान के बाद कार्यक्रम सही समय पर आरम्भ हुआ.
इस कार्यक्रम में भारतीय उच्चायोग द्वारा सन २०१३ एवं २०१४ के लिए लेखन, अध्यापन, पत्रकारिता, संस्था केलिए सम्मान एवं प्रकाशन के लिये अनुदान प्रदान किये गये।
कार्यक्रम की शुरुआत हिन्दी अधिकारी श्री बिनोद कुमार के सञ्चालन से हुई व मन्त्री समन्वय श्री एस.एस. सिद्धु ने सम्मानित विभूतियों एवं आमन्त्रित मेहमानों का स्वागत किया।
उसके बाद उच्चायुक्त श्री रंजन मथाई ने शील्ड, प्रशस्ति पत्र एवं शाल से साहित्यकारों को नवाज़ा। जिसके तहत – समग्र लेखन हेतु – सोहन राही एवं कविता वाचक्नवी को हरिवंश राय बच्चन सम्मान
पत्रकारिता के लिए – शिखा वार्ष्णेय एवं रवि शर्मा को आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी मीडिया सम्मान
हिंदी शिक्षण हेतु – देविना ऋषि एवं जूटा ऑस्टिन को जॉन गिलक्रिस्ट शिक्षण सम्मान
तथा वातायन और काव्य धारा संस्थाओं को फेड्रिक पिकेट हिंदी प्रचार -प्रसार सम्मान प्रदान किया गया.
उप-उच्चायुक्त डॉ. विरेन्द्र पॉल ने ज़किया ज़ुबैरी, शैल अग्रवाल, तेजेन्द्र शर्मा, वन्दना मुकेश शर्मा को लक्ष्मीमल सिंघवी अनुदान प्रदान किये।
मेरे लिए यह एक भावुक घड़ी थी, क्योंकि यह उस सपने का सम्मान
था जिसे मैं कभी देखा तो करती थी परन्तु समय के साथ पूरी तरह भुला चुकी थी. यह मेरे उस परिश्रम को मिली हुई पहचान थी जिसके तहत मैं पत्रकारिता में संग्लग्न हूँ.और इसलिए सम्मान के बाद जब वहां बोलने को कहा गया तो मुझसे कुछ नहीं बोला गया.भावुकता में सब गुड़ -गोबर कर दिया मैंने। अब कुछ लोगों को थैंक यू कहने का मन है
-कुछ उन को जिन्होंने गुरु की तरह बहुत कुछ सिखाया, जो एक भी कौमा या विराम रह जाने पर झूठे गुस्से से कहते – पता नहीं कैसे लिखती हो चिह्न तो लगाती ही नहीं हो.-कुछ
-कुछ उन दोस्तों का जो गाहे बगाहे मुझे धकेलते रहे, निरंतर लिखवाते रहे. जब जब मेरा मन ऊबा उन्होंने यह कह धक्का मारा “चुड़ैल चुपचाप जा कर लिख कुछ अच्छा सा”.
-कुछ उन अनुजों का जो हरदम हर वक़्त मेरी हौसला अफजाई के लिए मेरे साथ खड़े मिले।
-परिवार का, उन अपनों का जो बहुत दूर हैं पर जिनकी दुआएं और प्रेम हरदम एकदम करीब होते हैं.
और सबसे ज्यादा आप पाठकों का, आप सब का जो मेरे लगातार लिखने की प्रेरणा हैं.