Friday, June 27, 2014

आलू चना...

कल एक आधिकारिक स्क्रिप्ट पर आये फीडबैक को देखकर मेरे एक कलीग कहने लगे, – “ऐसे फीडबैक देते हैं तुम्हारे यहाँ? लग रहा है सिर्फ कमियां ढूंढने की कोशिश करके पल्ला झाड़ा गया है, बजाय इसके कि इसमें सुधार के लिए कोई गाइड लाइन दी जाती” 
अब मैं उन्हें यह क्या बताती कि शायद हमारे उन अधिकारी को इसी काम के लिए रखा गया हो या नहीं तो उन्हें शायद अपना यही काम समझ आया हो, और उनका रुतबा और काम इसी से जस्टिफाई होता हो कि वह कमियां बताईं जाएँ जो कि उस दस्तावेज में हों ही नहीं, व किसी और को नजर ही ना आएं, जिससे वे अपना सबसे समझदार और काबिल होना सिद्ध कर दें.

वो क्या है न कि, जैसे आलू और चना हमारे देश का पसंदीदा और सर्व सुलभ खाद्य पदार्थ है वैसे ही आलोचना हमारा पसंदीदा व्यवहार है. जो कोई भी, किसी भी क्षेत्र में, किसी की भी, किसी भी समय कर सकता है. कमियां निकालना हमारा स्वभाव है और उन्हें निकालकर खुद को बुद्धिमान दिखाना हमारा फ़र्ज़, जिसका पालन हर स्तर पर, हर ओहदे का इंसान बहुत ही निष्ठा से करता है. घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने की तर्ज़ पर, हम अपने अल्प ज्ञान को आलोचना के रूप में बघारकर अपने बुद्धि के दाने भुनाने की भरपूर कोशिश करते हैं और अपने परम धर्म की अदायगी करके निश्चिन्त हो लेते हैं.


यहाँ ये बात दीगर है कि आलोचना का मतलब भी यहाँ आलू, चने जैसा ही सरल हो जाता है जो हर एक के बस में है और हर एक का इसपर अधिकार है.

प्रतिक्रिया, समीक्षा, और आलोचना तीनो शब्दों को मिलाकर कर आलू चना का मिक्चर सा बना लिया गया है और सभी अपने अहम को  हृष्ट और रुतबे को पुष्ट करने के लिए उसे पिए जाते हैं. 

फिर आप बेशक फीडबैक मांगो, समीक्षा मांगो या आलोचना, सबकी मांग पर यही आलू चना रुपी चाट मिलेगी, हाँ अलग अलग क्षेत्र के अनुसार उसमें खट्टी- मीठी चटनी की मात्रा कुछ कम ज्यादा हो सकती है.

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