Wednesday, March 19, 2014

यह भी तो ज़रूरी है न !

जी हाँ,मेरे पास नहीं है 

पर्याप्त अनुभव 

शायद जो जरुरी  है
कुछ लिखने के लिए 

नहीं खाई कभी प्याज

रोटी पर रख कर 

कभीनहीं भरा पानी 
पनघट पर जाकर  

बैलगाड़ी, ट्रैक्टर, कुआं
और बरगद का चबूतरा
सब फ़िल्मी बातें हैं मेरे लिए 

“चूल्हा” नाम ही सुना है सिर्फ मैंने 
और पेड़ पर चढ़ तोड़ना आम 
एक एडवेंचर,एक खेल 

जो कभी नहीं खेला
हाँ नहीं है मेरे पास गाँव
नहीं हैं बचपन की गाँव की यादें 

पर –
मेरे पास है शहर

बहुत सारे शहर
सड़के,आसमान, और बादल
उनपर चलती रेलें हैं
बसें हैं, हवाई जहाज हैं
और उनके साथ भागती सीमाएं हैं
अलग अलग किस्म, 

अलग अलग नस्ल के लोग हैं 
और उनकी रंगबिरंगी जिंदगियां हैं
तो मैं इन चित्रों की ज्यामिति को 

उकेर देती हूँ ज्यों का त्यों । 
इन पर भी तो लिखना ज़रूरी है न !

No comments:

Post a Comment