Wednesday, January 29, 2014

जिद्दी जिंदगी..

जब से सोचने समझने लायक हुई, न जाने कितने सपने खुली आँखों से देखे. कभी कोई कहता कोरे सपने देखने वाला कहीं नहीं पहुंचता तो कभी कोई कहता कोई बात नहीं देखो देखो सपने देखने के कोई दाम पैसे थोड़े न लगते हैं.पर उनमें ही कुछ बेहद पोजिटिव और मित्र किस्म के लोग भी होते जो कहते कि अरे सपने – जरूर देखो वर्ना पूरे होने की उम्मीद किससे करोगे. और मैं, हमेशा ही जो अच्छा लगे वह मानने वाली, झट से आखिरी वाला ऑप्शन मान लेती। इसीलिए सपने देखना कभी बंद नहीं हुआ. परन्तु उन्हें पूरा करने के लिए कभी कोई खास मशक्कत भी नहीं की. जिंदगी जिस राह पर ले गई हँसते, मुस्कराते, शिद्दत और ईमानदारी से बढ़ लिए. कभी पीछे मुड़ कर देखा तो कुछ सपने याद भी आये, आँखें कुछ नम हुईं, एक हुड़क उठी, थोड़ी सी कसमसाहट और बस, फिर थामा हाथ उसी जिंदगी का, साथ लिया वर्तमान को, ठोकर मारी अतीत को और चल पड़े.



जिंदगी बहुत  जिद्दी और एगोइस्ट किस्म की होती है. उसे ज़रा सा लाइटली लेना शुरू करो तो तुरंत पैंतरा बदल लेती है. उसके किये फैसलों को स्वीकारना या न स्वीकारना हमारे बस में नहीं होता परन्तु अपने अनुसार उन्हें ढालना जरूर हम चाहते हैं. और जब वह भी नहीं कर पाते तो उसी में रम जाते हैं.  फिर जब एक कम्फर्ट जोन में चले जाते हैं तो फिर जिंदगी अपना दाव चलती है. हमेशा कोई न कोई सरप्राइज देकर अपनी तरफ ध्यान आकर्षित करने की बुरी आदत जो है उसे. ज़रा किसी ने क्षण भर चैन की सांस ली नहीं कि, फोड़ दिया कोई बम उसके सिर पर.

सालों बाद पैरों में बंधे पहिये थमे थे. मकान को घर की तरह समझना सीख लिया था. और उसकी चार दीवारी के अंदर की हवा में ही सुकून के रास्ते खोज लिए थे. कि फिर न जाने क्यों उसने वर्षों से बंद पड़ा एक झरोखा खोल दिया. बाहर से आती तेज हवा का झोंका अंदर आया और फिर उड़ा ले गया वह सब, जो किसी तरह समेट कर सहेज लिया था. अब वह बाहर की हवा अंदर आई तो मजबूर करने लगी अपने साथ रमने को, ठेलने लगी फिर से उसी रास्ते पर जिसे पीछे, बहुत पीछे छोड़ आई थी. बहुत मुश्किल था फिर से उसी राह तक पहुंचना उस ताज़ी हवा के साथ जिसे सहने की आदत भी नहीं रही थी. पर जाना तो था. कैसे भी, किसी भी तरह, अकेले, उसी तेज हवा के साथ, संभालते हुए खुद को . हो सकता है डगमगाऊं थोड़ा, सहम जाऊं कभी, या न समझ पाऊँ किस ओर जाना है… 

परन्तु कदम बढ़ गए हैं तो राह मिल ही जायेंगी, कुछ पहचाने मोड़ मिलेंगे तो मंजिल भी याद आ ही जायेगी. आखिर अपनी ही है जिंदगी, इतनी कठोर भी ना होगी. 

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