सुनो आज मौसम बहुत हसीं है
फिफ्टी फिफ्टी के अनुपात में
सूरज और बादल टहल रहे हैं
चलो ना , हम भी टहल आयें
जेकेट – नहीं होगी उसकी ज़रूरत
हाँ ले चलेंगे अपनी वो नीली छतरी
जिसपर गिरती हैं जब बारिश की बूँदें
तो रंग आसमानी सा हो जाता है
और टप टप की आवाज के साथ
लगता है जैसे खुले आकाश के नीचे
कर रहा हो कोई टैप डांस
एक ही छतरी को दोनों पकड़ते हुए
कितना मुश्किल होता है न चलना
तुम हमेशा कहते हो बीच रास्ते
क्यों नहीं लेती अपनी अलग छतरी
मैं नहीं कह पाती तुमसे,बुद्धू हूँ न
उस एक छतरी में डगमगा कर चलना
तुम्हारे साथ खुले आसमान के तले
नृत्य करने जैसा एहसास देता है .
उफ़ बहुत फिल्मी हो ,
हाँ हाँ मालूम है यही कहोगे
इसीलिए तो नहीं कहती कुछ
वरना तो मन की तिजोरी
भरी पड़ी है शब्दों से
न जाने क्या क्या है कहने को
यह भी कि काश कभी चलते चलते
किसी टापू पर हम दोनों खो जाएँ
और कम से कम दो दिनों तक
न मिले कोई बचाने वाला .
मैं चाहती हूँ देखना
क्या तब भी तुम्हें आता है याद
खाने का समय और दो सब्जियां
देखना चाहती हूँ मैं
प्योर प्रायवेसी के उन पलों में
क्या याद करते हो तुम
साथ बिताये वो सुनहरे पल।
हाँ बाबा हाँ ,जानती हूँ
बातों से नहीं भरता पेट
कोरी भावनाएं हैं यह सब
फालतू लोगों के शगल
फिर भी …
उफ़ कितनी जिद्दी हूँ न मैं
Monday, February 25, 2013
टप टप टपा टप टप ....
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment