मन की राहों की दुश्वारियांनिर्भर होती हैं उसकी अपनी ही दिशा परऔर यह दिशाएं भी हम -तुम निर्धारित नहीं करतेये तो होती हैं संभावनाओं की गुलामये संभावनाएं भी बनती हैं स्वयंदेख कर हालातों का रुखमुड़ जाती हैं दृष्टिगत राहों पेकुछ भी तो नहीं होता हमारे अपने हाथों मेंफिर क्यों कहते हैं कि आपकी जीवन रेखाएंआपके ही हाथों में निहित होती हैं.****************************
कुछ पल छोड़ देने चाहिए यूँ हीतैरने को हलके होकरशून्य मेंमिले जहाँ बहाव ,बह चलेंक्यों जरुरी है उनकासही गलत निर्धारण करनाउन्हें भारी बना देनाऔर करना ज़बरदस्ती,बाँधे रखने की कोशिश।जबकि बंध तो नहीं पाते वे फिर भीक्योंकि मन की डोरी होती है बड़ी कच्चीउससे बाँध भी लें उन पलों कोतो रगस उसमें भी लगती हैफिर शनै : शनै : कोमल सी वो डोरीटूट जाती है कमजोर होकर.
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