Wednesday, September 26, 2012

हल्का- फुल्का

 

कुछ अंगों,शब्दों में सिमट गई 
जैसे सहित्य की धार 
कोई निरीह अबला कहे, 
कोई मदमस्त कमाल.
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दीवारों ने इंकार कर दिया है 

कान लगाने से 
जब से कान वाले हो गए हैं 
कान के कच्चे.

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काश जिन्दगी में भी 
गूगल जैसे ऑप्शन होते 
जो चेहरे देखना गवारा नहीं 
उन्हें “शो नेवर” किया जा सकता 
और अनावश्यक तत्वों को “ब्लॉक “

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 कोई सांसों की तरह अटका हो 
 ये ठीक नहीं 
 एक आह भरके उन्हें रिहा कीजिये.
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मेरे हाथों की लकीरों में कुछ दरारें सी हैं 

शायद तेरे कुछ सितम अभी भी बाकी हैं.


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हाथ फैला के सामने वो रेखाओं को बांचते हैं 
एक लकीर भी सीधी जिनसे खींची नहीं जाती.

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Monday, September 17, 2012

उलझा सुलझा सा कुछ...

मन की राहों की दुश्वारियां

निर्भर होती हैं उसकी अपनी ही दिशा पर
और यह दिशाएं भी हम -तुम निर्धारित नहीं करते 
ये तो होती हैं संभावनाओं की गुलाम 
ये संभावनाएं भी बनती हैं स्वयं 
देख कर हालातों का रुख 
मुड़ जाती हैं दृष्टिगत राहों पे
कुछ भी तो नहीं होता हमारे अपने हाथों में 
फिर क्यों कहते हैं कि आपकी जीवन रेखाएं 
आपके ही हाथों में निहित होती हैं.
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कुछ पल छोड़ देने चाहिए यूँ ही 
तैरने को हलके होकर 
शून्य में 
मिले जहाँ बहाव ,बह चलें
क्यों जरुरी है उनका 
सही गलत निर्धारण करना
उन्हें भारी बना देना 
और करना ज़बरदस्ती,
बाँधे रखने की कोशिश।
जबकि बंध तो नहीं पाते वे फिर भी
क्योंकि मन की डोरी होती है बड़ी कच्ची 
उससे बाँध भी लें  उन पलों को 
तो रगस उसमें भी लगती है 
फिर शनै : शनै :  कोमल सी वो डोरी 
टूट जाती है कमजोर होकर. 
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मेरा अपना मेरा है 

उस पर हक़ भी मेरा है

क्यों हो वो तेरा,इसका, उसका 
क्यों ना मुझसे मेरा साक्षात्कार हो 
जिसपर मेरा, सिर्फ मेरा अधिकार हो .

Tuesday, September 11, 2012

अमित्रस्य कुतो सुखम....

अमूमन कहा जाता है कि दोस्त ऐसे रिश्तेदार होते हैं जिन्हें हम खुद अपने लिए चुनते हैं. परन्तु मुझे लगता है कि दोस्त भी हमें किस्मत से ही मिलते हैं.क्योंकि मनुष्य तो गलतियों का पुतला है इस चुनाव में भी गलती कर सकता है खासकर जब बात अच्छे और सच्चे दोस्तों की हो.तो ऐसे दोस्त किस्मत वालों को ही नसीब होते हैं.इन दोस्तों की भी कई किस्में होती हैं.

कुछ ऐसे जिनकी उपस्थिति भर से एक सुरक्षा का सा अहसास होता है. जो पास रहे या दूर, पार्श्व  में हमेशा एक ध्वनि आती रहती है – मैं हूँ ना… .
वहीँ कुछ ऐसे भी जो अपनी अनुपस्थिति में भी अपनी उपस्थति का एहसास कभी कम नहीं होने देते.बहुत दूर होते हुए भी जो हमेशा मन से आपके पास होते हैं और उनका यह सामीप्य हमेशा आपको एक सकारात्मक ऊर्जा देता रहता है.जो आपकी हर कही अनकही समझते हैं और सही रूप में समझते हैं.
कुछ ऐसे जिनसे आप कभी मिले नहीं, कोई संवाद नहीं हुआ परन्तु मिलते ही एक अदृश्य सी डोर जैसे आपको बाँध लेती है लगता है शायद पहले का है नाता कोई.
कुछ ऐसे भी जिन्हें कभी आपके सही ,गलत होने से कोई फरक नहीं पड़ता उनके लिए तो बस आप हैं और हर हाल में वो आपके साथ हैं.और किसी भी हाल में बस आपको हँसता देखना चाहते हैं.

और कुछ ऐसे भी जिनसे पहली बार मिलकर भी नहीं लगता कि पहली बार मिले हैं ऐसा अनौपचारिक माहौल बन जाता है कि लगता है जाने कब से एक दूसरे को जानते हैं.बातें निकलती हैं तो ख़तम ही होने को नहीं आतीं जैसे जन्मों की इकट्ठी रही हों.

हालाँकि कुछ दोस्त ऐसे भी होते हैं,जिनका कोई नाम तक नहीं होता, जिनसे आपका कोई लेना देना नहीं होता, कभी देखा नहीं होता, कभी मिले नहीं होते, आप उनका नाम तक नहीं जानते और शायद उन्हें कहा जाये तो वह भी आपका पूरा नाम तक ना जानते हों. फिर भी आदतन दोस्ती का हक़ वह अवश्य ही जताते हैं.ऐसे जैसे ना जाने कितनी अच्छी तरह आपको जानते हैं. यूँ ऐसे तथाकथित दोस्त भी बहुत जरुरी होते हैं आपके असली दोस्तों से पहचान कराने के लिए.आखिर “हर एक दोस्त जरुरी होता है”.

यूँ दोस्ती कोई खरीद फ़रोख्त की चीज नहीं कि बाजार से चुन के ले आये जो अच्छी लगी. यह तो एक ज़ज्बा है जो स्वत: ही उपजता है हाँ यह और बात है कि हम कभी उसे समझ पाते हैं कभी नजरअंदाज कर देते हैं और गलत चुनाव हो जाता है.परन्तु दिल तो आखिर दिल है जल्दी ही समझ जाता है.
बरहाल दोस्त एक ऐसी अमूल्य निधि होते हैं जिन्हें आपसे कोई चुरा नहीं सकता।
इस भारत प्रवास में बहुत से दोस्तों से मिली. और मैं खुशकिस्मत हूँ कि उपरोक्त सभी तरह के दोस्त मेरी जिन्दगी में हैं। 
बेशक इन तस्वीरों में हों न हों :).