विशुद्ध साहित्य हमारा कुछ
उस एलिट खेल की तरह है
जिसमें कुछ सुसज्जित लोग
खेलते हैं अपने ही खेमे में
बजाते हैं ताली
एक दूसरे के लिए ही
पीछे चलते हैं कुछ अर्दली
थामे उनके खेल का सामान
इस उम्मीद से शायद कि
इन महानुभावों की बदौलत
उन्हें भी मौका मिल जायेगा कभी
एक – आध शॉट मारने का
और वह कह सकेंगे
हाँ वासी हैं वे भी
उस तथाकथित पॉश दुनिया के
जिसका —
बाहरी दुनिया के आम लोगों से
यूँ कोई सरोकार नहीं होता
बाहरी दुनिया के आम लोगों से
यूँ कोई सरोकार नहीं होता
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