लोकार्पण
सुश्री संगीता बहादुर ( डारेक्टर नेहरु सेंटर)
श्री कैलाश बुधवार (पूर्व बी बी सी प्रमुख )ने पुस्तक के बारे में बोलते हुए कहा कि शिखा की यह पुस्तक एक ईमानदार अभिव्यक्ति है रूस के इतिहास भूगोल पर बहुत ही पुस्तकें मिल जाती हैं परन्तु शिखा ने एक जिस तरह रूस के समाज की तहों में पैठ बनाकर ईमानदारी से अपने अनुभवों को लिखा है वह बहुत कम मिलता है.यह पुस्तक उनके रोमांचकारी अनुभवों की रोचक प्रस्तुति से भरी हुई है.जिससे हमें पढने में आनंद तो आता ही है बल्कि उस समय के रूस में हुए परिवर्तनों की जानकारी भी मिलती है.पुस्तक के कुछ अंशों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि वाकयों का प्रस्तुतीकरण और शिल्प ऐसा है जैसा कि कभी कभी हमें फ़िल्मी परदे पर देखने को मिलता है.(आप यहाँ सुन देख सकते हैं-)
शिखा के वजूद में रूस बस्ता है
“शिखा वार्ष्णेय की किताब में रूस पर शोध कर के नहीं लिखा गया. जैसा शिखा ने रूस को महसूस किया ठीक वैसा ही उसे सरल और सीधे शब्दों में उतार दिया है. १६ वर्ष की teenager ने जैसे अनुभव ग्रहण किये शिखा हम से वो अनुभव बांटती है. . शिखा का अनुभव क्षेत्र केवल शिक्षा क्षेत्र तक सीमित नहीं है, वह अपने आस पास के समाज को समझने का प्रयास करती हैं, युवा मौज मस्ती का चित्रण करती हैं, अपने अकेलेपन का अहसास करवाती हैं और सोवियत रूस के टूटने की प्रक्रिया से गुज़रती हैं. रूबल की गिरती साख; डॉलर के प्रति रूसिओं का मोह; अचानक विघटित देशों में वीसा की ज़रुरत – शिखा की निगाह सभी ओरे जाती है. कहानी के रूप में लिखा यह संस्मरण इस बात का प्रमाण है की शिखा और रूस के बीच कैसा रिश्ता बना.” यह कहना था प्रतिष्ठित कथाकार तेजेंद्र शर्मा का जब वे स्मृतिओं में रूस के विमोचन समारोह में बोल रहे थे.
समारोह में बोलते हुए श्री आनंद कुमार ( अताशे हिंदी .भारतीय उच्च आयोग लन्दन )ने हिंदी के विकास के लिए उच्च आयोग द्वारा किये जा रहे कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला.
दिव्या माथुर, अमृता तोशी ,डॉ . हिलाल फरीद, इरीना आदि अनेक हिंदी और उर्दू साहित्य के गुणीजनों की उपस्थिति में हुए इस समारोह का संचालन रूस में हिंदी की छात्रा रही ओल्गा उस्मानोवा ने किया .—

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