आजकल हर जगह अन्ना की हवा चल रही है .बहुत कुछ उड़ता उड़ता यहाँ वहां छिटक रहा है.ऐसे में मेरे ख़याल भी जाने कहाँ कहाँ उड़ गए .और कहाँ कहाँ छिटक गए….
क्षणिकाएं ……..
क्षणिकाएं ……..
अपनी जिंदगी की
सड़क के
किनारों पर देखो
मेरी जिंदगी के
सफ़े बिखरे हुए पड़े हैं
है परेशान
महताब औ
आफताब ये
शब्बे सहर भी
मेरे तेरे बोलो पे
टिके हैं.
शब्दों के
लिहाफ को
ओढ़े हुए पड़ी हूँ ,
इस ठिठुरती रूह को
कुछ तो सुकून आये
बारिश की
बूंदों को
पलकों पे
ले लिया है
आँखों के
खारे पानी में
कुछ तो
मिठास आये.
आ चल
निशा के परदे पे
कुछ प्रीत के
तारे जड़ दे
इस घुप
अँधेरे कमरे में
कुछ तो
चमक आये.
दो पलकों के बीच
झील में तेरा अक्स
यूँ चलता है
वेनिस की
जल गलियों में
गंडोला ज्यूँ चला हो.
हम
इस खौफ से
पलके नहीं
बंद करते
उनमें बसा तू
कहीं अँधेरे से
डर ना जाये
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