Wednesday, April 27, 2011

गर्मी मौसम की या?????


लन्दन का तापमान आजकल उंचाई पर है .पारा २४ डिग्री पर पहुँच गया है .ये शायद पहली बार है जब यूरोप में सबसे ज्यादा तापमान लन्दन में है लोग अपनी ईस्टर की छुट्टियों में इस बार स्पेन या फ्रांस नहीं जा रहे बल्कि लन्दन में ही सूर्य देवता को नमन कर रहे हैं . समुद्री किनारों पर जैसे सैलाब उमड़ आया है. लन्दन ग्लोबल शहर है अत: इसके समुद्री बीचों पर भी विभिन्नता देखते ही बनती है .समुद्र की लहरों के साथ सूर्य स्नान करते, जरुरत से ज्यादा कपड़ों में भी लोग दिख जाते हैं और कुछ जरुरतभर भी पहनने की जहमत नहीं उठाते.उन्हें देख कर मुझे महाभारत की वो कहानी याद आती है. जहाँ गांधारी ने दुर्योधन को सुरक्षा कवच से नवाजने के लिए उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि के सामने आने को कहा था और अपने लिहाज के चलते दुर्योधन के शरीर का कुछ हिस्सा असुरक्षित रह गया था. जो उसकी मौत का कारण बना. हमारी पौराणिक  कहानियों से हमने कुछ सीखा हो या नहीं, पर लगता है पश्चिम के देशों ने बहुत प्रेरणा ली है इसलिए सूर्य देवता की खास मेहरबानी से मिले कुछ मौकों को वे शर्म लिहाज में गवाना नहीं चाहते. आखिर साल में इन कुछ दिनों से  मिली खुराक से ही साल भर उनका शरीर सुरक्षित रहता है अत: शरीर के किसी भी हिस्से को वे सूर्य की दिव्य दृष्टि से वंचित नहीं रखना चाहते. इस बार तो तापमान भी ऊपर था उसपर लम्बा सप्ताहांत समुद्री किनारों पर गज़ब का रुझान है.



अब इस गर्मी की वजह तापमान के अलावा राजकुमार विलियम और कैट की शादी भी हो सकती है .जिसकी तैयारियों में लन्दन व्यस्त है और और २९ अप्रैल का लन्दन के नागरिक बड़ी बैचेनी और उत्साह  से इंतज़ार कर रहे हैं.डायना  और राजकुमार चार्ल्स की शादी में जो लोग मौजूद नहीं थे उनके लिए लिए यह भव्य आयोजन देखना एक स्वप्न जैसा है. इस शाही शादी के उत्सव पूरे लन्दन की सड़कों पर मनाये जायेंगे सड़क के दोनों तरफ जनता का हुजूम होगा और बड़ी बड़ी स्क्रीन पर आयोजन को दिखाया जायेगा.उस दिन सेंट्रल लन्दन की सभी सड़कें यातायात के लिए बंद होंगी. .

मंदी के वावजूद इस शाही शादी में बाजार बेहद गर्म हैं. लन्दन के बाजार राजकुमार और उनकी होने वाली दुल्हन के फोटो से सुसज्जित उत्पादों से भरे हुए हैं दुल्हे दुल्हन की फोटो वाले ७५०-००० ओएस्टर कार्ड (लन्दन के ट्रेवल पास)  दस पौंड्स  में दुकानों में आ गए  हैं ( दुगनी कीमत सामान्य कार्ड से ),वहीँ इनकी तस्वीरों वाले कप ,टी शर्ट,फोटो फ्रेम आदि से बाजार अटे पड़े हैं और दुगुनी तीनगुनी  कीमत पर लोग खरीद भी रहे हैं.
और तो और लेखकों में भी प्रिन्स  की शादी और उनके रोमांस को लिखने की  होड़ सी लग गई है .लेखकों को इस शाही रोमांस पर मिल्स एंड बूम्स टाइप के नोवेल को लिखने के लिए उत्साहित किया जा रहा है ,और इसी लिए रोमांटिक फिक्शन प्रकाशित करने वाले प्रकाशकों ने “रोयल रोमांस लेखन वर्क शॉप” आयोजित किये हैं .पिछले सप्ताह मिल्स एंड बून की लेखिका शेरोन केन्द्रिक ने एक टी शॉप में एक आयोजन किया जिसमें उन्होंने बताया कि किस तरह मुख्य चरित्रों को लिखा जाता है. उनके ख़याल से राजकुमारी को लम्बा,सेक्सी और एक्जोटिक  दिखाना चाहिए .उनका कहना था कि एक राजकुमार से शादी करना हर लड़की का सपना होता है.और मंडेटेरेनियन हीरो बहुत चर्चित होते हैं.पाठकों को ऐसे अमीर हीरो भी पसंद आते हैं जो दान धर्म करते हैं.
और किसी भी लेखक को शाही शयन कक्ष में आने में किसी शर्म या लिहाज कि जरुरत नहीं .उन्हें खुलकर इन दृश्यों को लिखना चाहिए.और इन दृश्यों में हमारे नायक और नायिका के बीच मजबूत कैमिस्ट्री दिखाई  देनी चाहिए.शेरोन केन्द्रिक ने कहा कि आखिरकार मिल्स एंड बूंस में हमेशा ही आकर्षक सेक्स को महत्ता दी जाती है और यहाँ भी यही होना चाहिए और इसका अंत भी सुखांत होना चाहिए.ऐसे ही कई वर्क शॉप जगह जगह चलाये जा रहे हैं और युवा लेखकों को शाही रोमांस पर पुस्तकें और उपन्यास लिखने को उत्साहित किया जा रहा है. .
जो भी हो २९ अप्रैल को इस शाही शादी वाले दिन राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया गया है.और एक मई  के बैंक होलीडे को  मिलाकर  चार दिन की छुट्टियाँ मिल गई हैं यानि एक और लम्बा सप्ताहांत और मौसम के विभाग के अनुसार सूर्य देवता भी मेहरबान रहने वाले है राजकुमार की शादी पर .तो कुल मिलाकर अगले सप्ताह तक  मौसम और माहौल बहुत गर्म रहने वाला है ….यानि हॉट हॉट हॉट…
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Friday, April 15, 2011

दिल बोले अन्ना मेरा गाँधी.....

चल पड़े जिधर दो डग मग में 

चल पड़े कोटि पग उसी ओर.
ये पंक्तियाँ बचपन से ही कोर्स की किताबों में पढ़ते आ रहे थे .गाँधी को कभी देखा तो ना था. पर अहिंसा और उपवास से अंग्रेजी शासन तक का तख्ता पलट दिया था एक गाँधी नाम के अधनंगे फ़कीर से वृद्ध ने. यही सुनते आये थे. अंग्रेजों की गुलामी से आजादी तो मिल गई परन्तु इस प्रगति शील देश में भ्रष्टाचार की प्रगति भी होती गई. और इसी बीच अचानक एक ७२ साल वृद्ध ने भ्रष्टाचार के खिलाफ गाँधी वादी अनशन की घोषणा कर डाली.रोजमर्रा के कामो में भी भ्रष्टाचार से जूझने  वाली जनता को अचानक इस वृद्ध में गाँधी दिखाई देने लगे .जन आन्दोलन की ऐसी आंधी चली कि जिन युवाओं ने कभी गाँधी को देखा ना था.शायद कभी जाना भी ना था. उन्हें लगा कि गाँधी ऐसे ही होते हैं. वही अवस्था, वही तरीका. अब तो दशा सुधरकर ही रहेगी, किसी ने हाल ही में ईजिप्ट  में हुई जनक्रांति का हावाला दिया. तो किसी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ गाँधीवादी आन्दोलन का. और एक जन सैलाब इस अभियान से जुड़ गया.  इसे जनक्रांति का आगाज़ माना जाने लगा .
पहली बार लगा कि मीडिया अपना काम कर रही है. किसी लाला या नेता की भाषा नहीं बोल रही. पहली बार किराये की भीड़ नहीं बल्कि आम जनता का सैलाब दिखाई दिया , पहली बार किसी आन्दोलन में आगजनी नहीं हुई, पुतले नहीं फूंके गए ,निर्दोषों पर लाठियां नहीं बरसीं .और पहली बार देश का युवा वर्ग भारी संख्या में इस अहिंसावादी आन्दोलन का हिस्सा बन गया .इस आशा में कि गाँधी जी के अनुयायी अन्ना, गाँधी ही के तरीके से अब व्यवस्था सुधार कर ही रहेंगे.लोकपाल बिल के आते ही जादू की  छड़ी से सब अचानक सुधर जायेगा.और फिर वे भी एक सुव्यवस्थित और न्यायप्रिय समाज का हिस्सा होंगे.पर उन्हें क्या पता था कि भले ही गाँधी की नीयत में कोई खोट ना हो.परन्तु कुछ खास प्रिय लोग और कृपा पात्र उनके भी थे. जिन्होंने उनकी आड़ में अपनी रोटियाँ जम कर सेकीं.उन्हें क्या पता था कि इस समिति के सदस्य अचानक कहाँ से आये ?और उन्हें किस तरह चुना गया?. वे क्यों ये सोचते  कि समिति के सदस्य भी वही सब नहीं करेंगे  जो अब तक सरकारी महकमो में होता आया है. उन्हें तो बस अन्ना में अपने राष्ट्रपिता का रूप दिखाई दिया और उसी के पीछे वे हो लिए.
हर अखबार , हर नुक्कड़ हर चैनल पर बस अन्ना…  अन्ना…..और अन्ना … .अंतर्जाल भी बिछ गया अन्ना और आन्दोलन के लेखों से. हर कोई बस लिख रहा था और लिख रहा था अन्ना पर. और जिस शिद्दत से लिख रहा था और इस आन्दोलन में अपनी उपस्थिति दिखा रहा था अगर उसका एक चौथाई भी काम अपने सरकारी मकहमे में बैठ कर अपने कर्तव्यों के पालन के लिए किय होता तो शायद एक ७२ वर्षीय वृद्ध को भूखे पेट अनशन पर बैठना ही ना पड़ता. 
परन्तु हमारे देश में तो यही रिवाज़ है जो जोर से बोलता दिखा उसी के पीछे हो लिए .बिना ये सोचे कि अचानक इस आन्दोलन की किसी को भी सूझी कैसे? बिना ये जाने कि इसके व्यवस्थापकों ने इसकी व्यवस्था कब और कैसे की . हम ये क्यों सोचे कि बला की ढीट सरकार अचानक से कैसे इतनी मुलायम हो गई कि इस आन्दोलन का पक्ष लेने लगी और जिस देश में अनगिनत मुद्दे और केस सालों साल चला करते हैं वहीँ ये सरकार तुरंत ही अन्ना की शर्तें क्यों मान गई. तुरत फुरत में ही समिति बन गई. कोई यह सोचने को तैयार नहीं कि वे सब कौन है …अरे जाने दीजिये उन्हें. अगर जनता के हुजूम में पत्थर फेंक कर भी समिति का सदस्य चुना जाता तो हमारे भृष्ट प्रशासन में पहुँचते ही वह भी खरबूजे की तरह रंग बदल लेता और यहाँ तो उसी प्रशासन और राजनीति की चाशनी में पके हुए योद्धा हैं सब. क्या गारंटी है कि वे पाक साफ़ निकल आयेंगे.
जो भी हो …जो भी मकसद हो इस आन्दोलन का …और जो भी परिणाम निकले.
 मुझे बस एक बात अच्छी लगी कि जो भी हुआ शांति पूर्ण तरीके से हुआ और देश के हर वर्ग और आयु का व्यक्ति उसमें शामिल था.
और डर है तो वह भी एक, कि इतनी शिद्दत और लगन से युवाओं ने इस आन्दोलन में हिस्सा लिया ,आशाएं उनके मन में जगीं,सपने जगे …अगर यदि वे टूटे तो……इस देश का युवा टूट जायेगा …और यदि ऐसा हुआ तो …ये देश कहाँ बच पायेगा...

Monday, April 11, 2011

ख्याली मटरगश्ती..

आजकल हर जगह अन्ना की हवा चल रही है .बहुत कुछ उड़ता उड़ता यहाँ वहां छिटक रहा है.ऐसे में मेरे ख़याल भी जाने कहाँ कहाँ उड़ गए .और कहाँ कहाँ छिटक गए….
क्षणिकाएं ……..
अपनी जिंदगी की 
सड़क के 
किनारों पर देखो 
मेरी जिंदगी के 
सफ़े बिखरे हुए पड़े हैं

है परेशान 
महताब औ 
आफताब ये 
शब्बे सहर भी 
मेरे तेरे बोलो पे 
टिके हैं.

शब्दों के 
लिहाफ को 
ओढ़े हुए पड़ी हूँ ,
इस ठिठुरती रूह को 
कुछ तो सुकून आये




बारिश की  
बूंदों को 
पलकों पे 
ले लिया है 
आँखों के 
खारे पानी में 
कुछ तो 
मिठास आये.

आ चल 
निशा के परदे पे 
कुछ प्रीत के 
तारे जड़ दे 
इस घुप 
अँधेरे कमरे में 
कुछ तो 
चमक आये.
दो पलकों के बीच 
झील में तेरा अक्स  
यूँ चलता  है 
वेनिस की 
जल गलियों में 
गंडोला ज्यूँ चला हो.


हम 
इस खौफ से 
पलके नहीं 
बंद करते 
उनमें  बसा तू 
कहीं अँधेरे से 
डर ना जाये

Tuesday, April 5, 2011

कोकोनट पीपल...

एक १४-१५ साल कि लड़की घर में घुसती है ” मोम ऍम आई एलाउड तो गो आउट विथ सम वन” ?अन्दर से चिल्लाती एक आवाज़. दिमाग ख़राब हो गया क्या तेरा? ये उम्र है इन सब कामो की ?पढाई पर ध्यान दो ...यू वीयर्ड मोम आल माय फ्रेंड्स आर गोइंग ..तो जाने दो उन्हें यह हमारा कल्चर नहीं .”ओके ओके नोट अगेन ..आई एम् हंगरी .आलू का परांठा है? अब आवाज़ बदलती है ...ओह काम ऑन स्वीटी! ये इंडिया है क्या ? फ्रिज में पास्ता पड़ा है खा लो.
आह  “कोकोनट पीपल” ऊपर से भूरे अन्दर से गोरे. (कम से कम बनने की कोशिश तो कर ही सकते हैं). 
लोगों से भरा एक हॉल. बीच में ना जाने किस ज़माने के पंजाबी गीतों पर बाल रूम डांस की तर्ज़ पर थिरकते कुछ लोग .भारी काम की कढी हुई साड़ियाँ ,सर पर ६० के दशक का सा जूड़ा. जब आये थे भारत से, यही फैशन था. भारत अब खुद इंडिया बन चुका है ये किसे खबर है.उसपर नकली नगों की भारी ज्वेलरी. किसी शादी का जश्न तो नहीं था.एक टीन एजर लड़की के जन्मदिन की पार्टी थी. टिपिकल अंग्रेजी में बतियाते लोग, हिंदी किसी को समझ नहीं आती ना बोलनी आती है.खालिस हिन्दुस्तानी खाना है मेनू में कोई चीनी, जापानी, इतलियानी खाने का नामो निशां नहीं हाँ बार पर हर तरह के पेय है. कुछ भूल कर कुछ याद रखने की जुगत के लिए जरुरी है शायद. केक है और शेम्पेन भी खुली है. पर डी जे ने भांगड़ा बजाना नहीं छोड़ा है.भारी लहंगे में सजी लड़की के  केक काटते ही उसने पंजाबी बोलियाँ शुरू कर दीं हैं, लड़की के सारे रिश्तेदारों के नाम वाली. आ आकर सब लड़की को केक खिला रहे हैं. शेम्पेन पी रहे हैं गाळ से गाल छुआ रहे हैं. you can take an Indian out of India but you can not take out  India out of an Indian (क्या करें भारतीय को तो भारत से बाहर ले आये पर भारतीयों के दिल से कैसे भारत बाहर जाये). . 
आज  मैच है भारत पकिस्तान का. सबने १ महीने के लिए स्पोर्ट चैनल ले लिया था. कुछ ने ऑफिस से छुट्टी भी. अचानक नीले रंग का “भारतीय गणराज्य के नागरिक ” लिखा हुआ पासपोर्ट नजरों में उभर आया है जिसे बड़ी मेहनत और मिन्नतों के बाद विदेशी पासपोर्ट प्राप्ति के बाद समर्पित किया था. पड़ोस से सेवइयां आया करती हैं  पर आज सबका मन था कि काश उन्हें रुमाल देने जाने का मौका मिल जाये. भारत जीत जाये. पीछे गैराज में किसी डिब्बे से निकाल कर तिरंगा भी मेज पर सजा दिया गया है पांच पौंडस का भारतीय बाजार से खरीदा था इन्हीं मौकों के लिए. आखिर अपनी पहचान किसी तरह बचाकर रखनी ही है. क्या हुआ अगर विदेशी बनने के लिए बहुत पापड़ बेले हैं.
गोरे तो कभी अपनाते नहीं .अपनों ने भी प्रवासी नाम दे दिया है.
प्रवासी फैशन ,प्रवासी संस्कृति और अब तो हिंदी और साहित्य भी प्रवासी .गोरे बनने की तमन्ना लिए पर भारतीयता का कवच ओढ़े हुए यही है पहचान अब – कोकोनट पीपल…  

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