Friday, July 2, 2010

आज इन बाहों में


रक्तिम लाली आज सूर्य की 
यूं तन मेरा आरक्त किये है.
तिमिर निशा का होले होले 
मन से ज्यूँ निकास लिए है.
उजास सुबह का फैला ऐसा 
जैसे उमंग कोई जीवन की 
आज समर्पित मेरे मन ने
सारे निरर्थक भाव किये हैं
लो फैला दी मैने बाहें 
इन्द्रधनुष अब होगा इनमे 
बस उजली ही किरणों का 
अब आलिंगन होगा इनमें 
खिलेगा हर रंग कंचन बनके ,
महकेगा यूँ जग ये सारा 
उसके सतरंगी रंगों से 
मुझको अब रंगने हैं सपने.  
नई उमंग से खोल दी मैंने 
आज पुरानी सब जंजीरें 
आती स्वर्णिम किरणों से
रच जाएँगी अब तकदीरें
कर समाहित सूर्य उष्मा 
तन मन अब निखर रहा है 
आज खुली बाहों में जैसे 
सारा आस्मां पिघल रहा है.


Winner chitra srijan june 2010.jpg

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