Thursday, February 25, 2010

भंग की तरंग में होली का हुडदंग



होली के त्यौहार पर ,
चलो कुछ हुडदंग मचाएं,
टिप्पणियाँ तो देते ही हैं
इस बार कुछ title बनाये.
ब्लॉगजगत के परिवार में.
भांति भांति के गुणी जन
आज इस छत के नीचे
मिल जाएँ सब मित्रगण
प्रेम सौहार्द के रंग के साथ
है बस थोडा निर्मल हास्य
जैसे मीठी ठंडाई में
मिला दी भंग की गोली चार..
लो सबसे पहले हम खुद पर
महा मूर्ख की उपाधि धरते हैं.
कृपया न बुरा माने कोई.
अब हम शुरुआत करते हैं.


बुरा न मानो ,होली है भाई होली है.
Speacial thanks to “रश्मि रविजा” ..जिन्होंने बहुत से सदस्यों से परिचित कराने में अपना सहयोग दिया… 🙂


ताऊ = .
मोटे को पतला करे ,काला गोरा हुई जाय ,ब्लागिंग को ताला देकै, दूकान लियो बनाए
बी एस पाबला = आते जाते हुए मैं सबकी खबर रखता हूँ…….
समीर लाल = हो कनाडा या बनारस की गली, हर जगह पहुंचे उड़न तश्तरी ,एक हाथ दे दूजे हाथ ले टिप्पणी.
राज भाटिया.= जानी !……………..हम वो नहीं जो वक़्त के साथ बदल जाया करते हैं

श्याम सखा “श्याम”= नाम के ही सखा नहीं मन के भी सखा से हैं,भावुक मन से लिखते हैं पर ज़माने से खफा से हैं.

अरविन्द मिश्र = आँखों की गुस्ताखियाँ माफ़ हों…

निर्मला कपिला = माँ कहोगे तो लड्डू दूंगी………:)

श्रीमति अजीत गुप्ता = दिल से लिखती खूब हैं, सबका मन भरमाय, समझ सकौ तो ठीक ,है अनाड़ी जो समझ न पाए.

वाणी = मोटापे पे दुखियाये , मॉर्निंग वाक् करने नेट पे आये.

रश्मि प्रभा = शब्दों की चित्रकार, भावनाएं हैं गहन ,होठों पर मुसकान लिए जीत लेती हैं मन

संगीता पूरी.= इनकी कछु न पूछिए ,जन्मतिथि लियो छुपाय, हत्थे गर इनके चढ़े, जाने क्या दें ये बताय

अदा = . अदा की अदा निराली ,पीछे चलती भवरों की टोली सारी..

अविनाश बाचस्पति = दिन में जब भी चाहे मन ,कर लो कुछ काव्य लेखन ,आशु बनाओ या मैगी नूडल्स .just two minuts ……

संगीता स्वरुप = ब्लोगिंग की किसको पड़ी है, वो तो अपनी कविताओं में रमी है.

ओम आर्य = किस किससे क्या मांग लिया ..जाने क्या जंजाल किया.न समझा कोई हाले दिल, कवि मन का क्या हाल किया.

हरकीरत हीर = मेरे तो अमृता इमरोज़ दूसरो न कोई …….

अनूप शुक्ल = आ देखें जरा किसमें कितना है दम.

शरद कोकस = भूत पिचाश निकट नहीं आवे ,शरद कोकस जब नाम सुनावे.

गौतम राजरिशी = गन और ग़ज़ल का साथ…क्या गज़ब की धार…

रश्मि रविजा = दुनिया न जाने कहाँ फिर रही है ,एकता कपूर तो यहीं खड़ी है.

ललित शर्मा.= चेहरे पर फौजी सी मूंछ ,पर लेखन में हैं मशरूफ.
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काजल कुमार = कहता है कार्टून सारा ज़माना आधी हकीकत आधा फ़साना ..चश्मा उतारो फिर देखो यारो…….

शैफाली पाण्डेय.= चाकू छुर्रियाँ तेज़ करा लो……हर मुद्दे की धज्जियाँ उड़वा लो.

दिगम्बर नासवा.= यहाँ वहां ,जहाँ तहां मत पूछो कहाँ कहाँ.. हैं मेरी टिप्पणियाँ…….ये टिप्पणियाँ

महफूज = पूछन गए भविष्य महाराज क्या शनि की छाया है? बोला पंडित नहीं बच्चा तुझ पर तो फ्लर्ट योग की माया है.

खुशदीप = हम हैं इतने महान ,किसी अवार्ड की कहाँ विसात कि करे हमारा सम्मान.

शाहिद मिर्जा “शाहिद “.= हमरे मन बस कवि समाये ,बाकी कछु नजर न आये

रेखा श्रीवास्तव = करने नहीं देंगे किसी को अपनी मनमानी.नारी को अपनी जगह दिलाने की है ठानी

वंदना अवस्थी दुबे = रेडियो में ही उलझा है मन ,वो अमीन सयानी की बातें ,वो उर्दू सर्विस की रातें


रचना = हाथ में डंडा मुंह में छुरी , झाँसी की रानी निकल पड़ी

जाकिर अली रजनीश = समाज सेवा में हाथ बटाऊं ,फिर भी तो दोषी कहलाऊं

शहरोज़ = चला जाता हूँ अपनी ही धुन में ,समाज के मुद्दे हजारों लिए.

आवेश =. यथा नाम तथा गुण,लेख आक्रोश से परिपूर्ण.

हरी शर्मा = इन बेनामियों ने हाय राम बड़ा दुःख दीन्हा ,टिप्पणी डिलीट करते करते आये पसीना.

विवेक रस्तोगी = ज्ञान बांटते चलो ,ज्ञान बांटते चलो.

दीपक मशाल = तस्वीर बनाता हूँ तस्वीर नहीं बनती ,कलम घिस गई पर घरवाली नहीं मिलती.

मिथलेश = १९ साल के बुढ्ढे या १९ साल के जवान?

अमरेंदर नाथ त्रिपाठी = संस्कृति की कलम में अपनी मिट्टी की स्याही है..अवध की खुशबु जिससे आई है.

कुश = कलम ,कॉफी, चर्चा के बीच साबुत बचा न कोए, जो हाथ मरे हर जगह तो कंट्रोवर्सी ही होए .

चंडीदत्त = हम करें फूल खुशबू ,चाँद की बातें ,तुम कर लेना रोटी कपडा मकान की बातें..
बहुत से मित्र छूट गए हैं यहाँ अब सबका परिचय तो संभव नहीं था…पर आप सब का स्वागत है यदि कोई अपना या अपने
.किसी ब्लोगर साथी का परिचय यहाँ जोड़ना चाहे..टिप्पणी के द्वारा लिख दें
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Thursday, February 18, 2010

चक्कर घनचक्कर


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इस चक्कर की शुरुआत होती है इंजीनियरिंग डिग्री के बाद किसी maltinational में जॉब ऑफर से ….नया नया जोश और सजने लगते हैं सपने…Onsite के बहाने विदेश यात्रा के ..तभी एक स्पीड ब्रेकर आता है..” कि बेटा शादी कर के जाओ जहाँ जाना है , .एक बार गए तो क्या भरोसा है .नौकरी लग गई है, उम्र भी हो गई है ब्याह रचा लो और पत्नी सहित जाओ..और हमें छुट्टी दो . विदेश में भी खाने पीने का आराम रहेगा नहीं तो कहाँ मारे मारे फिरोगे खाने के लिए...सो जी बात में दम नजर आता है..पर समस्या दो – घरेलू बीबी किसी को चाहिए नहीं आजकल और कमाऊ ..ली ..तो वो भला क्यों जायेगी वो अपनी नौकरी छोड़ कर आपके साथ…तो जी या तो शादी शुदा हो कर भी आप जाओ अकेले २-३ महीने के वादे पर, निकल ही जायेंगे जैसे तैसे ..फिर जुगत शुरू होती है वहां ३ महीने हो गए अब वापस जाना है ..पर बॉस कहेगा अरे ऐसे कैसे? ..अब काम समझ गए हो प्रोजेक्ट को बीच में छोड़ कर कैसे जाओगे… ऐसे नहीं जा सकते . तो ३ के ६ और ६ के १२ महीने हो जाते हैं फिर किसी तरह माँ की बीमारी का बहाना बना कर कोई वापस आने में सफल हो गया तो ठीक वर्ना फिर से दो समस्या.या तो बीबी छुट्टी लेकर आये १-२ महीने की… तो उसका क्या फायेदा २ महीने के लिए अलग घर लो ,बसाओ इतनी हुज्जत करो..या वो अपनी नौकरी छोड़ कर आये ….जो मुश्किल है ..चलो अच्छी बीबी थी आ गई नौकरी छोड़ कर और बन कर रह गई ग्लेमरस maid तो अब जिन्दगी भर सुनो कि कैरियर बर्बाद कर दिया.काम वाली बाई बना कर रख दिया …..खैर किसी तरह चलती रही गाड़ी बीच बीच में लटकती रही तलवार कि अब वापस जाओ तब वापस जाओ ..इसी बीच हो गए १-२ बच्चे ,बच्चे हुए स्कूल जाने लायक ..तो फिर २ समस्या एक तो कंपनी वाले सर पर कि जाओ वापस बहुत साल हो गए यहाँ …दूसरा आपको लग गई हवा बाहर की तो अपना देश कूड़े का डिब्बा लगने लगा है .वहां बच्चे कैसे रहेंगे अब…अब फिर २ समस्या कि या तो उठाकर बोरिया बिस्तर चले जाओ वापस ..नहीं तो छोडो ये कम्पनी और ढूंढो दूसरा कोई वहां धंधा … और बस जाओ…अब फिर २ समस्या कि नौकरी छोड़ दी दूसरी नहीं मिली तो…? फिर बीबी ढूँढ ले नौकरी पर इतने साल घर बैठ कर अब उसके बस का भी नहीं बाहर काम ढूँढना .. विदेशी भ्रमण के चक्कर में चक्रम गोरे क्लाइंट , देसी बीबी और मिक्स बच्चों के बीछ चकरघिन्नी बन कर रह गया और बैठ गया सर पकड़ कर ..बेकार पड़े इस onsite के चक्कर में इंडिया में ही रह जाते २ रोटी कम खाते पर सुकून तो पाते .अब बीबी भी जिन्दगी भर सुनाएगी और बच्चे भी..

आखिर नहीं बचा रास्ता तो आ गए वापस ….फिर शुरू हुआ समस्यायों का सिलसिला आज पानी नहीं आया…बिजली नहीं है…बच्चे हिंदी में फेल हो गए..उफ़ कितनी गर्मी है ..हाय कितनी महंगाई है….और फिर से वही ….बेकार आये काश वहीँ रह जाते….ये तो अजीब घनचक्कर है चक्कर ….आपको समझ में आया ये चक्कर? अजी जब अब तक हमें नहीं समझ में आया तो आपको क्या खाक समझ में आएगा ये चक्कर घनचक्कर.

सभी इंजिनियर और उनके परिवार वालों से क्षमा याचना सहित :)

Thursday, February 11, 2010

प्यार बांटते चलो.

प्रेम दिवस कहो या valentine day ..कितना खुबसूरत एहसास है …आज के दौर की इस आपा धापी जिन्दगी में ये एक दिन जैसे ठहराव सा ला देता है .एक दिन के लिए जैसे फिजा ही बदली हुई सी लगती है ..फूलो की बहार सी आ जाती है…हर चेहरा फूल सा खिला दीखता है..कोई गर्व से , कोई ख़ुशी से , कोई उम्मीद से.. हाँ फूलो के दाम दोगुने हो जाते हैं..फिर भी हर हाथ में फूल दिखाई देते हैं …कोई लेने वाला है ..तो को देने वाला…कितना सुखद एहसास है.अब कुछ लोग कहेंगे बेकार के पचड़े हैं ..समय और पैसे की बर्बादी.क्या प्यार के लिए एक विशेष दिन का होना जरुरी है? ..बिना उसके प्रेम नहीं हो सकता ? तो जनाब प्रेम के इजहार की ये प्रथा आज की नहीं …बहुत पुरानी है ..हमारे देश में बसंत पंचमी के दिन पीले फूलों के साथ प्रेम इजहार की परंपरा न जाने कब से चली आ रही है…हाँ अब उसका स्वरुप जरुर बदल गया है..आज उन पीले फूलो की जगह सुर्ख लाल गुलाब और ग्रीटिंग कार्ड्स ने ले ली है..वैसे इस प्रेम दिवस को मनाने के लिए जरुरी नहीं की आप प्रेमी -प्रेमिका ही हों …ये दिवस आप हर उस इंसान के साथ मना सकते हैं जिसे आप प्यार करते हैं..फिर चाहे वो आपके भाई – बहन हों, माँ -पिता हों या फिर दोस्त…बस ये दिन एक बहाना है इस भौतिक वादी समय में थोडा प्यार बाँटने का ,थोडा प्यार पाने का..
खैर इस प्यार के बहुत से रूप होते हैं …एक रूप का एक नाम इंतज़ार भी है… तो आज उसी पर एक कविता अर्ज़ की है…

तुम्हें पता है?

रोज़ ही आती हूँ मैं
इस सागर तट पर
यूँ ही नंगे पांव,
सीली मिट्टी की छुअन
अहसास कराती है
तेरी मीठी हरकत सा
ये नमकीन सी हवा
सिहर जाता है मेरा तन
जैसे अभी पीछे से आकर
बना लेगा तू बाहों का घेरा
और मैं निर्जीव डाल सी
लचक जाउंगी तेरे आगोश में
कल फिर आएगा यही वक़्त
ये मद्धम-मद्धम सा सूर्य
यूँ ही उफनेंगी ये लहरे
तेरे प्यार की तरह
और चली जाएँगी
भिगो कर मेरे तलुवे
और मैं फिर इंतज़ार करूँगी
हमेशा, हर सुबह, इसी तरह.

Friday, February 5, 2010

मेरा हीरो

६ फरवरी …. . मेरे दिल के बहुत करीब है ये तारीख ,मेरे हीरो का जन्म दिवस…जी हाँ एक ऐसा इंसान जो जिन्दगी से भरपूर था ..जीवन के हर पल को पूरी तरह जीता था. एक मेहनतकश इंसान…. जिसके शब्दकोष में असंभव शब्द ही नहीं था,..व्यक्तित्व ऐसा रौबीला कि सामने वाला मुंह खोलते हुए भी एक बार सोचे ,आवाज़ ऐसी कि विरोधी सकते में आ जाएँ…जी हाँ ऐसा था मेरा हीरो — TDH (tall —dark और handsome -) “मेरे पापा “.

कहने को तो वो अब हमारे बीच नहीं हैं …जिन्दगी से हर पल प्यार करने वाले इस प्यारे इंसान को हमसे उनकी मधुमेह की बीमारी ने असमय छीन लिया..परन्तु मैं उन्हें आज भी उसी जिन्दादिली से याद करती हूँ जिस तरह वो जिया करते थे…मैं आज भी उनका जन्मदिन उसी उत्साह से मानती हूँ जैसे वो मनाया करते थे….
बहुत शौक था उन्हें अपने घर लोगों को बुलाकर दावत करने का…न जाने कैसे कैसे बहाने ढूंढ लिया करते थे …और बुला लिया करते थे सब मेहमानों को….और जो ,न आ पाने का बहाना करे..उसे खुद अपने साधनों से बुलवा भेजते थे और फिर वापस घर भी छुड्वाया करते थे. मांसाहार तो क्या प्याज भी नहीं खाते थे.परन्तु लोगों को चिकेन बना कर खिलाते थे…खुद कभी बियर तक नहीं चखी जीवन में ,पर हमारे घर की छोटी सी बार हमेशा भरी रहती थी..
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थोड़े अजीब भी थे वो – कोई मांगे न मांगे पर वो सबकी मदद करने को तैयार…मुझे आज भी याद है मेरे high school का रिजल्ट आया था…और मेरी एक सहेली जो उनके ऑफिस के एक क्लर्क की बेटी थी…एक नंबर से इंग्लिश में फेल हो गई थी…तो हम भी थोड़े से दुखी थे उसके लिए क्योंकि बाकी विषयों में अच्छे नंबर थे उसके…बस फिर क्या था पापा ने राय दे डाली उन्हें कि कॉपी खुलवाओ १/२ no . की बात है बढ़ जायेगा…परन्तु वो महाशय कहने लगे अरे क्या साहब कौन इतना झंझट करेगा —लड़की है ,कौन तोप मारनी है अगले साल पास हो जाएगी…बस ये बर्दाश्त न हुआ पापा से और तभी अपना एक मातहत भेज सारी कार्यवाही करवाई और उसका नतीजा ये हुआ कि उसका १ no .बढ़ गया… ….मेरी सहेली का एक साल बच गया और उसकी आँखों में ख़ुशी और कृतज्ञता के धागे मुझे आज भी नजर आते हैं.
ऊपर से इतने कड़क और अनुशासन पसंद कि तौबा है… एक बार ५ मिनट की देरी हो जाने की वजह से अपने से ३ रैंक बड़े अफसर को छोड़ कर चले गए दौरे पर…और वो अफसर भुनभुनाता रह गया, कर कुछ नहीं पाया क्योंकि पापा जैसा कर्तव्यनिष्ठ और काम का इंसान उन्हें दूसरा नहीं मिल सकता था.
हम सब भी घर में उनके गुस्से से बहुत डरा करते थे ..वो घर में आते तो दस मिनट तक हम तीनो बहनों में से कोई उनके सामने नहीं जाता था कि पहले देख लें पापा का मूड कैसा है उस हिसाब से व्यवहार करेंगे…मूड ख़राब है तो चुपचाप अपनी पुस्तकें लेकर बैठ जाते थे.:)
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पर मन के इतने भावुक और संवेदनशील थे कि हिंदी फिल्म्स देखकर फूट फूट कर रो दिया करते थे , किसी की शादी में जाते थे तो विदाई तक रुकते ही नहीं थे .क्योंकि वो जानते थे कि खुद को काबू में नहीं रख पाएंगे , लड़के वाले की तरफ से होते तब भी
, क्यों कि फूट फूट कर रोता उन्हें सब लोग देख लेंगे और उनकी रौबीली image का बंटाधार हो जायेगा.
दूसरों की ख़ुशी में खुद बाबले हुए जाते थे .मतलब बिलकुल बेगानी शादी में अब्दुला दीवाना टाइप.
घूमने का शौक ऐसा कि साल में १ महीने के लिए जाना ही जाना है …एक बार तो हम अपने छमाही इम्तिहान में मेडिकल लगा कर गए थे घूमने
अब क्या क्या याद करूँ और क्या बिसराऊं ..उनसे जुड़ा हर व्यक्ति उनके पास रहकर अपने आप को सुरक्षित महसूस करता था ..
ऐसा था मेरा हीरो…आज भी है ..यहीं मेरे आसपास
.
मैने ये कविता कुछ समय पहले लिखी थी उनके लिए आज इस मौके पर आपको समर्पित करती हूँ.
पापा तुम लौट आओ ना,

तुम बिन सूनी मेरी दुनिया,
तुम बिन सूना हर मंज़र,
तुम बिन सूना घर का आँगन,
तुम बिन तन्हा हर बंधन.
पापा तुम लौट आओ ना
याद है मुझे वो दिन,वो लम्हे ,
जब मेरी पहली पूरी फूली थी,
और तुमने गद-गद हो
100 का नोट थमाया था.
और वो-जब पाठशाला से मैं
पहला इनाम लाई थी,
तुमने सब को
घूम -घूम दिखलाया था.
अपने सपनो के सुनहरे पंख ,

फिर से मुझे लगाओ ना.
पापा तुम लौट आओ ना.
इस जहन में अब तक हैं ताज़ा
तुम्हारे दौरे से लौटने के वो दिन,
जब रात भर हम
अधखुली अंखियों से सोया करते थे,
और हर गाड़ी की आवाज़ पर
खिड़की से झाँका करते थे.
घर में घुसते ही तुम्हारा
सूटकेस खुल जाता था,
और हमें तो जैसे अलादीन का
चिराग़ ही मिल जाता था.
वो अपने ख़ज़ाने का पिटारा
फिर से एक बार ले आओ ना.
पापा बस एक बार लौट आओ ना.
आज़ मेरी आँखों में भरी बूँदें,

तुम्हारी सुदृढ़ हथेली पर
गिरने को मचलती हैं,
आज़ मेरी मंज़िल की खोई राहें ,
तुम्हारे उंगली के इशारे कोतरसती हैं,

अपनी तक़रीर अपना फ़लसफ़ा

फिर से एक बार सुनाओ ना,

बस एक बार पापा! लौट आओ ना.

Wednesday, February 3, 2010

एक और अंग्रेजी सच

“In my next life I would like to be born an indian” जी नहीं… ये कथन मेरा नहीं ,मुझे तो ये रुतबा हासिल है….यह कथन है एक अंग्रेज़ का ..जी हाँ ठीक सुना आपने वो अंग्रेज़ जिन्हें भारत में कमियां और अपने देश में खूबियाँ ही नजर आती हैं.यह कहना है Sebastian Shakespeare का जो हाल ही में २ हफ्ते की छुट्टियाँ भारत में बिता कर आये हैं और उन्होंने अपने कुछ खास अनुभव evening standard friday २९ january २०१० में एक लेख के तहत बांटे हैं. असल में इस लेख के शीर्षक ने मेरा ध्यान आकर्षित किया “jobsworths and rudeness – I ‘m back in Britain ..क्योंकि कुछ दिन पूर्व मैने भी ब्रिटेन में कुछ समस्याओं पर एक लेख लिखा था (.http://hamzabaan.blogspot.com/2010/01/blog-post_20.html).जिस पर कुछ लोगों ने आपत्ति जताई थी कि ऐसा नहीं है यहाँ सब बहुत खुश हैं. लेकिन ये लेख लिखा है एक अँगरेज़ ने ,..तो इसी उत्साह में पढ़ गई मैं पूरा लेख ..और यकीन मानिये जैसे जैसे पढ़ती गई , गर्व से फूलती गई…, अपने देश लौटने का जज्बा मजबूत होता गया 🙂 और ये ख़ुशी आप लोगों के साथ बाँटें बिना रहा न गया..और शायद जो लोग भारत में रहकर लन्दन को सपनो का शहर समझते हैं उनकी सोच में कुछ परिवर्तन हो सके..

अपने इस लेख में लेखक कहते हैं – “उन्होंने लन्दन की सड़कों पर पिछले एक हफ्ते में इतने भिखारी देखे हैं जितने उन्होंने अपने पूरे तमिलनाडु दौरे के दौरान नहीं देखे.”भारत विश्व का भविष्य है और विश्व के २५ साल से कम उम्र के लोगों में २५ % लोग भारतीय हैं , और तमिलनाडु भारत के सबसे धनाड्य प्रदेशों में से एक है…
अपने लेख में आगे वे कहते हैं कि अपनी वापसी पर biritish airways की उड़ान में उस वक़्त उन्हें बेहद शर्मिंदगी महसूस हुई जब एक भारतीय यात्री के साथ एक केबिन सदस्य ने बहुत ही बेरुखी से सुलूक किया.और उसकी सहायता करने से ये कह कर मना कर दिया कि मेरी ड्यूटी तो पीछे खड़े रहने की है...” क्या वह हड़ताल पर चला गया था? ….वाह क्या गज़ब का इम्प्रेशन हम पहली बार इंग्लेंड में आने वाले लोगों को देते हैं…. उसके बाद अगले दिन lloyds बैंक की एक ब्रांच में इसी तरह की ग्राहक सेवा और अनियमता का सामना उन्हें करना पड़ा ..वहां एक ग्राहक जोर जोर से चिल्ला रहा था कि “lloyds had to be bailed out by taxpayers with billions of pounds and yet the bank coudnt even find enough staff to man its tills.” तो मैनेजर महाशय कहते हैं “मैं टिल पर नहीं जा सकता क्योंकि मैं मेनेजर हूँ.”लेखक कहते हैं “तो आखिर मेरी भारत यात्रा के बाद मैं इंग्लैंड के बारे में क्या जनता हूँ? ….यही कि we are a nation of jobsworths.और हमें व्यापारिक ,ग्राहक सम्बन्ध सुधारने के लिए लम्बा रास्ता तय करना है...और आखिर में वह कहते हैं.-.
“कभी ऐसा कहा जाता था कि एक ब्रिटिश बन कर जन्म लेना लॉटरी में पहला इनाम जीतने जैसा है…पर अपने अगले जनम में ..मैं एक भारतीय बनकर जन्म लेना चाहता हूँ.”.
जय हिंद