Wednesday, December 30, 2009

मुठ्ठी भर रेत


नया साल फिर से दस्तक दे रहा है …और हम फिर, कुछ न कुछ प्रण कर रहे हैं अपने भविष्य के लिए ….कुछ नाप तोल रहे हैं ..क्या पाया ? क्या खोया ? ये नया साल जहाँ हम सबके लिए उम्मीदों की नई किरण लेकर आता है ,वहीँ हम सबको आत्मविश्लेषण का एक मौका भी देता है….ये बताता है की वक़्त कभी किसी के लिए नहीं ठहरता.वक़्त किसी का इंतज़ार नहीं करता …हमें उसके साथ कदम से कदम मिलाने पड़ते हैं…..आज इसी अवसर पर ये कविता आपके समक्ष है …अवसर के मुताबिक खुशगवार नहीं है ..इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.
मुठ्ठी भर रेत
हर पल हर क्षण होती हैं
तमन्नाएँ,ख्वाइशें महत्वकांक्षाएँ
भरने कि उड़ान,छूने की आसमान
पर नहीं होती दृढ इच्छाशक्ति
कमजोर पड़ जाती हैं कोशिशें
अलग हो जाती हैं प्राथमिकतायें.
और इंतज़ार करते रहते हैं हम
सही वक़्त का.
अचानक.
एहसास होता है
अपनी नाकामी का
उन बहानों का
जिन्हें वक़्त के ऊपर
टाल दिया हमने
और फिर
अवसाद विषाद और
तनाव के बीच
हम रह जाते हैं देखते
अपनी खाली हथेलियों को
जिनसे फिसल गया था वक़्त
बंद मुठ्ठी में से रेत कि तरह

Saturday, December 19, 2009

बर्फ के फाहे

यहाँ आजकल बर्फ पढ़ रही है तो उसे देखकर कुछ ख्याल आये ज़हन
में
view from my house window .

छोटे छोटे रुई के से टुकड़े
गिरते हैं धुंधले आकाश से
और बिछ जाते हैं धरा पर
सफ़ेद कोमल चादर की तरह
तेरा प्यार भी तो ऐसा ही है,
बरसता है बर्फ के फाहों सा
और फिर ……
बस जाता है दिल की सतह पर
शांत श्वेत चादर सा।
और मैं ओढ़ के उसे
लिहाफ की तरह।,
सो जाती हूँ निश्चिन्त।
उसमें बसी
तेरे प्यार की गर्माहट
देती है यूँ हौसला
जिन्दगी की कड़ी सर्दी से उबरने का.

Thursday, December 17, 2009

हे नारी तू हड़प्पा है.

हे नारी तू हड़प्पा है…
अब आप सोच रहे होंगे कि भाई, नारी का हड़प्पा से क्या सम्बन्ध ? तो जी ! जैसे हड़प्पा की खुदाई चल रही है सदियों से, रोज़ नए नतीजे निकाले जाते, हैं फिर उन्हें अपने शब्दों में ढाल इतिहास बना दिया जाता है …
ऐसे ही बेचारी नारी है- खुदाई दर खुदाई हो रही है आदिकाल से, और किये जा रहे हैं सब अपने अपने तरीके से व्याख्या पर नतीजा ? ठन-ठन गोपाल….सच्चाई का किसी को कुछ पता नहीं परन्तु खोदना बंद नहीं होता.बड़े -बड़े विद्वान् आते हैं कुछ खोजते हैं पता नहीं क्या का क्या समझते हैं और फिर अपनी ही कोई मनघडंत कहानी बना इतिहास में छाप देते हैं.
किसी ने निष्कर्ष निकाला कि कमजोर है बेचारी तो घर ले जाकर बिठा दिया ।
तो किसी को दुर्गा नजर आई तो माथा टिका दिया.
किसी को सुन्दरता दिखी तो अजंता अलोरा में लगा दिया. 
तो किसी ने भोग बना कर कोठों पर सजा दिया ।
पर नारी पर शोध ख़तम नहीं हुआ. यहाँ तक कि बड़े बड़े ऋषि मुनि भी अछूते नहीं रहे इस विषय से…अब तुलसी दास को ही लीजिये लिखनी थी राम कथा -तो उसमें भी औरत को ले आये…और ताड़न का अधिकारी बना डाला. अब न जाने उनकी कौन सी भेंस खोली थी किसी औरत ने
ऋषियों ने वेदों में त्रिया चरित्र करार दे दिया .
फिर हमारे राष्ट्र कवि मैथली शरण गुप्त जी ने नारी को अबला बना दिया।( अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी…)
पर शोध ख़तम नहीं हुआ…लगातार जारी है।अब जब सारी उपमाएं, तुलनाये ख़तम हो गई तो कुछ नारी वाद का झंडा ले खड़े हो गए. और निष्कर्ष निकाला गया कि हम किसी से कम नहीं… और लड़े जा रहे हैं इसी मुद्दे पर ….
तो कहीं हो रही हैं चर्चाओं पर चर्चाएँ ..,शोध पर शोध ।
कोई अपने सर्वे के आधार पर कहता है की यह गेहुआं सांप होतीं हैं…औरतें झूठ का पुलिंदा होती हैं….
तो कोई अपने शोध से निष्कर्ष में उसे झूठी, कपटी, बहलाने -फुसलाने वाली बना देता है.अरे जब इतना समझते हो तो क्यों आते हो झांसे में दूर रहो नारी से।
मुझे तो समझ ये नहीं आता कि इस नारी नाम की मनुष्य को बख्श क्यों नहीं दिया जाता. अरे ऊपर वाले ने एक कृति गढ़ी है बाकि सब की तरह. जैसे ये पृथ्वी है, आकाश है,पेड़ -पौधे हैं, जानवर है वैसे ही एक नर है और एक नारी है फिर ये नारी को ही लेकर इतना हंगामा क्यों ?और बहुत से विषय हैं सोचने के लिए, सुलझाने के लिए, रिसर्च के लिए, उन पर ध्यान दो. नारी को ऐसे ही रहने दो जैसी वो है क्यों उसे वेवजह शोध का विषय बनाया हुआ है ?
बेचारा ऊपर वाला भी सोचता होगा – ये क्या बला बना दी मैने, कि बाकि सारी समस्याएं, सारे कर्म भूल कर सब इसी पर शोध करने पे तुले हुए हैं.
तो तात्पर्य ये है, 
जिसे उसका रचियता (ब्रह्मा) नहीं समझ सका उसे आप- हम जैसे तुच्छ मनुष्य क्या समझेंगे… तो बेहतर होगा नारी पर रिसर्च करने की बजाय दुनिया की बाकी समस्याओं का हल ढूँढने में वक़्त का उपयोग किया जाये.

Tuesday, December 15, 2009

आँखों का सागर.

सागर भरा है
तुम्हारी आँखों में
जो उफन आता है
रह रह कर
और बह जाता है
भिगो कर कोरों को
रह जाती है
एक सूखी सी लकीर
आँखों और लबों के बीच
जो कर जाती है
सब अनकहा बयाँ
तुम
रोक लिया करो
उन उफनती ,
नमकीन लहरों को,
न दिया करो बहने
उन्हें कपोलों पे
क्योंकि देख कर वो
सीले कपोल और
डबडबाई आँखे तुम्हारी
भर आता है
मेरी भी आँखों का सागर.

Wednesday, December 9, 2009

अन्तर-जाली रिश्ते.

{New Observer Post Hindi Daily 28th nov.2009 (online edition )में प्रकाशित.}
एक जमाना था जब पत्रमित्रता जोरों पर थी.देश विदेश में मित्र बनाये जाते थे, उसे ज्ञान बाँटने का और पाने का एक जरिया तो समझा ही जाता था, बहुत से तथाकथित रिश्ते भी बन जाया करते थे।और कभी कभी ब्लेक मैलिंग का सामान भी .
आज यही काम इंटर नेट के जरिये हो रहा है॥
जिसे बाहरी दुनिया में जो न मिले आ जाये, यहाँ सब मौजूद है।
सपने देखने का शौक किसे नहीं होता अब बाहरी दुनिया में आपके सपनो को कोई घास न डाले तो चले आइये यहाँ ,आप अपनी मंजिल पा ही लेंगे, सपनो में ही सही ॥
बेटा ,बेटी से लेकर ,मासी ,बुआ और प्रेमी – प्रेमिका तक के रिश्ते मिल जायेंगे ।अब सही मिले तो मिले- खुश रहिये ।सोचिये आपकी किस्मत अच्छी थी, ।नहीं तो झेलिये दर्द और रोते रहिये जीवन भर अपनी बेबकूफी पर, उन्हें क्या…. वो तो कहीं और व्यस्त हैं दूसरी माँ,और भाई बनाने में .
बाहरी दुनिया के रिश्तों से आहात हैं? यहाँ आइये एक ढूढीयेगा हजार मिलेंगे. भड़ास निकालनी हो या कुंठाएं मिटानी हो .भावात्मक सहारा चाहिए हो या अहम् शांत करना हो , यहाँ सब होता है ..वो भी एक क्लिक से….मन भाए तो निभाइए वर्ना एक क्लिक से ही ख़तम कर डालिए. कौन क्या विगाड़ लेगा आपका
एक नहीं हजार प्रोफाइल बनाइये और जम कर इश्क लड़ाइए ,। खाते रहें बाहरी दुनिया के लोग भाव …..अपना मतलब तो यहाँ निकल ही रहा है न ,और सामने वाले का डर भी नहीं कि गले पड़ जायेगा/जाएगी…..जमा तो जमा नहीं तो बहुत बड़ा है ये अंतर्जाल कोई न कोई रिश्तों का सताया तो फंस ही जायेगा.
अब भाई हर फूल के साथ कांटे होते हैं तो यहाँ भी हैं ।अब बिना एतिहात के फूल चुनोगे तो काँटा तो हाथ में चुभ ही जायेगा न और दर्द भी करेगा. हो सकता है घाव ही बन जाये ..तो भलाई इसी में है कि रहिये सावधान इस जाल में , इसमें मोती भी हैं और मगरमच्छ भी .बस सावधानी से मोती चुनिए और मगरमच्छों से दूर ही रहिये .खुश रहेंगे आप ….