देवनागरी लिपि है मेरी,
संस्कृत के गर्भ से आई हूँ.
प्राकृत, अपभ्रंश हो कर मैं,
देववाणी कहलाई हूँ.
शब्दों का सागर है मुझमें,
झरने का सा प्रभाव है.
है माधुर्य गीतों सा भी,
अखंडता का भी रुआब है.
ऋषियों ने अपनाया मुझको,
शास्त्रों ने मुझे संवारा है.
कविता ने फिर सराहा मुझको,
गीतों ने पनपाया है.
हूँ गौरव आर्यों का मैं तो,
मुझसे भारत की पहचान।
भारत माँ के माथे की बिंदी,
है हिन्दी मेरा नाम.
संस्कृत के गर्भ से आई हूँ.
प्राकृत, अपभ्रंश हो कर मैं,
देववाणी कहलाई हूँ.
शब्दों का सागर है मुझमें,
झरने का सा प्रभाव है.
है माधुर्य गीतों सा भी,
अखंडता का भी रुआब है.
ऋषियों ने अपनाया मुझको,
शास्त्रों ने मुझे संवारा है.
कविता ने फिर सराहा मुझको,
गीतों ने पनपाया है.
हूँ गौरव आर्यों का मैं तो,
मुझसे भारत की पहचान।
भारत माँ के माथे की बिंदी,
है हिन्दी मेरा नाम.
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