Friday, September 25, 2009

करवा चौथ बदलते परिवेश में

करवा चौथ – ये त्योहार उत्तर भारत में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है.और भई मनाया भी क्यों न जाये आखिर एक महिने पहले से तैयारियाँ जो शुरु हो जाती हैं..शुरुआत होती है धर्मपत्नी के तानो से, कि, देखो जी mrs शर्मा १०,००० कि साड़ी लाई हैं इस बार, सुनो जी पड़ोसन को उसके पति ने नये झुम्के दिलाये हैं ,पर यहाँ तो किसी को कदर ही नहीं है, कोइ जिये मरे इन्हें क्या…….और इस तरह रो धो कर एक नई साड़ी तो आ ही जाती है।
फ़िर शुरु होता है सिलसिला पार्लर का, अरे शादियों के मौसम में भी ऐसी रंगत कहाँ देखने को मिलती है यहाँ, जितनी इस दिन होती है। अब भाई वो भी तो अपनी दूकान खोल कर बैठे हैं न अब व्रत के दिन हम उनका ख्याल नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा? और होता है नख से शिख तक का श्रृंगार, गोया करवा चौथ न हुई सुहागरात हो गई। हाँ आखिर शाम की पूजा के वक़्त सौन्दर्य प्रीतियोगिता जो होनी है॥खैर बन- संवर कर पूरे तन- मन से होती है पूजा।
और इंतज़ार शुरू होता है चाँद का तो वो महाशय भी पूरे भाव में होते हैं उस दिन। अब समय से निकले तो निकले और जो बादलों ने ढक लिया तो इन्टरनेट है ही वहीँ दर्शन करके अर्क दे देंगे, नहीं तो शादी के बाद पति देव का सर क्या किसी चाँद से कम हो जाता है? उसी को देख व्रत तोड़ लेंगे,आखिर रखा तो उन्हीं के लिए है न। संम्पन्न होगी पूजा और चरण स्पर्श होगा पति परमेश्वर का.आखिर हर गधे का दिन आता है,तो जी कुछ भोले भाले मनुष्य तो फूल कर कुप्पा, गाल लाल हो जायेंगे कान कि बेक ग्राउंड में गाना बजने लगेगा “पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले झूठा ही सही”और बीबी बुदबुदा रही होगी “अब आगे भी आओ या वहीँ खड़े रहोगे ,एक काम ढंग से नहीं कर सकते”.और कुछ पति देव मन ही मन बुदबुदायेंगे ” हाँ हाँ ठीक है जल्दी ख़तम करो अपना ये सब, खाना खाएं फिर कल काम पर भी जाना है”(आज तो जल्दी मिल गई छुट्टी मजाल किसी बॉस कि जो मना कर दे आखिर उसे भी तो अपने घर जाना है.)
और बारी आती है खाने की . तो जी आजकल कुछ पति- गण भी पत्निव्रता होने कि इच्छा रखते ,हैं वो भी अपनी अर्धांगिनी के साथ व्रत रखते हैं, ….हाँ जी ! क्या बुरा है? वेसे भी कौन तीनो टाइम ठीक से खाना मिलता है?सो एक वक़्त भूखे रह कर पत्नी प्रेम जाहिर हो जाये तो कौन बुरा सौदा है।और फिर सारे साल के ताने से भी निजात कि “तुम्हारे लिए पूरे दिन निर्जल व्रत करते हैं ,तुम क्या करते हो हमारे लिए? “सो भैया अब ये सुकून तो रहेगा।
खैर अब जब दोनों ने व्रत रख लिया तो खाना कौन पकायेगा?ये मरी बाइयां भी छुट्टी ले लेती हैं।सो जी भला हो इन हल्दीराम सरीखे लोगों का।बहुत पुण्य मिलेगा इन्हें. पर रेस्टोरेंट में पैर रखने कि जगह शायद न मिले पर जैसे भी हो घुसघुसा कर कुछ ले ही आयेंगे पति -देव अपनी प्रिया के लिए.और इस तरह करवा चौथ की कथा में जेसे सांतवी बहन अपने पति को सकुशल लौटा लाई थी ,उसी तरह आज कि पतिव्रता पत्नी भी खिला पिला कर पतिदेव को सकुशल घर ले आती है.और संपन्न होता है ये पवित्र त्यौहार.बोलो करवा चौथ माता कि जय……………….

Saturday, September 19, 2009

अभिलाषाओं का टोकरा


अपनी अभिलाषाओं का 

तिनका तिनका जोड़

मैने एक टोकरा बनाया था,

बरसों भरती रही थी उसे

अपने श्रम के फूलों से,

इस उम्मीद पर कि

जब भर जायेगा टोकरा तो,

पूरी हुई आकाँक्षाओं को चुन के

भर लुंगी अपना मन।

तभी कुछ हुई  कुलबुलाहट मन में

धड़कन यूँ बोलती सी लगी

देखा है नजरें उठा कर कभी?

उस नन्ही सी जान को बस

है एक रोटी की अभिलाषा 

उस नव बाला को बस

है रेशमी आँचल की चाह 

उन बूढी आँखों में बस

आस है अपनों के नेह की 

और उस मजदूर के सर बस

एक पेड़ की छांव है।

और मैने 

अपनी अभिलाषाओं से भरा टोकरा

पलट दिया उनके समक्ष

बिखेर दिए सदियों से सहेजे फूल

उनकी राह में

अब मेरी अभिलाषाओं का टोकरा तो खाली था,

पर मेरे मन का सागर  पूर्णत: भर चुका था.

Thursday, September 3, 2009

शेक्सपियर की जन्मस्थली (स्टार्टफोर्ड अपोन अवोन)

यूनाइटेड किंगडम में बर्मिघम से लगभग 22 मील की दूरी पर है यह एक क़स्बा स्ट्रेद्फोर्ड अपोन एवोन (Stradford Upon Avon )।यह ब्रिटेन के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है,जहाँ दुनिया भर से तीन मिलियन से भी ज्यादा यात्री प्रतिवर्ष आते हैं। एवन नदी के तट पर बसा यह खूबसूरत शहर विख्यात है महान लेखक शेक्सपियर की जन्म स्थली नाम से ,जहाँ उन्होंने जन्म लिया ,स्कूली शिक्षा ली, शादी की और आख़िर में शरीर भी त्यागा.आज हालाँकि ये शहर किसी भी विकसित और आधुनिक शहर से कम नही,सभी आधुनिक सुख सुविधाएं यहाँ उपलब्ध हैं। परन्तु इस महान लेखक की यादें और १५-१६वीं  सदी की जीवनक्रिया की छाप यहाँ चप्पे -चप्पे में दिखाई पड़ती है. यहाँ की सड़कों पर चहल कदमी करते समय भी त्युडोर समय काल में पहुँच जाने का एहसास होता है.

विलियम शेक्सपियर का घर ,उनकी बेटी दामाद का घर,और वो स्थान जहाँ विलियम ने आखिरी साँस ली और उन्हें दफनाया गया.सभी स्थानों का भ्रमण करते -करते , १५वीं सदी का सारा माहौल जैसे  नजरों के सामने जीवंत हो उठता है।

उस कमरे की खिड़की जहाँ शेक्सपियर का जन्म हुआ
सबसे पहले बात शेक्सपियर के जन्म स्थान की।- एक स्थानीय लकड़ी का बना यह मकान ,जिसे उनके पिता जौन और माँ मैरी द्वारा १५२९ में खरीदा गया था .इसके  हर कमरे में शेक्सपियर की जिन्दगी से जुड़े सवाल और उनके जबाब मिलते हैं।
निचली मंजिल पर -शुरूआत होती है एक छोटे से कमरे से, जो कभी एक अलग घर हुआ करता था जिसमें उनकी बहन उल्यामा जौन हार्ट रहा करती थीं. और उसके बाद आता है शेक्सपियर का पारिवारिक अतिथि कक्ष ,जिसे उसी रूप में संरक्षित किया गया है जैसा की वह १५७० में रहा होगा, जब शेक्सपियर के पिता शहर के नामी दस्ताने बनाने वालों में गिने जाते थे.पुराने पहने हुए एतिहासिक कपड़े,उनके द्वारा इस्तेमाल किए हुए बर्तन,वही पलंग, वही फर्नीचर और उपकरण,और दीवारों पर वाल पेपर की जगह लिनेन जेसे कलात्मक कपड़े का इस्तेमाल आपको शेक्सपियर काल की जीवन शैली से बखूबी परिचित कराते हैं। कोरिडोर के पास उनके पिता का एक कार्य कक्ष भी है जिसकी खिड़की ग्राहकों के लिए बाहर मुख्य सड़क पर खुलती थी।

फिर आता है, रसोई घर और खाने का कमरा- जहाँ परिवार के सभी सदस्य खाने के लिए एकत्रित होते थे. खाने की मेज उस समय प्रयोग होने वाले सभी साधनों से सजी थी, और पास ही अग्नि स्थान पर मांस को आग के ऊपर टांग कर पकाया जाता था।


दूसरी मंजिल के कमरों में खासकर परिवार के सदस्यों के शयन कक्ष थे.जहाँ एक कमरे में विलियम की बहन और दुसरे कक्ष में विलियम अपने भाई के साथ सोते थे.

वह कमरा जो उनके माता -पिता का शयनकक्ष समझा जाता है आजकल म्यूजियम के तौर पर उपयोग किया जाता है जहाँ सभी बड़े बड़े लोगों ने आकर अपने हस्ताक्षर किए हैं।
अब वह कमरा आता है जहाँ इस महान हस्ती ने जन्म लिया। इस शयन कक्ष में उस समयकाल का पालना ,खिलोने आदि रखे मिलते हैं और वह पलंग भी,जिसके साथ ही एक और छोटा पलंग निकाला जाता था जिसपर नए पैदा हुए बच्चे को माँ के साथ सुलाया जा सके।एक बहुत ही साधारण छोटे बच्चे के लिए उपयुक्त किया जाने वाला कक्ष, कौन जनता था कि यह बच्चा बड़ा होकर एक दिन विश्व साहित्य का पर्याय बन जाएगा।
आख़िर में घर के बाहर का बगीचा जहाँ १६ वीं सदी के उन नायब पोधों और हर्ब को देखा जा सकता है जिनका वर्णन हमें शेक्सपियर की रचनाओं में मिलता है।इसी बगीचे में समय समय पर कुछ कलाकार शेक्सपियर के किसी नाटक का छोटा सा अंश अभिनीत करते देखे जा सकते हैं।
समझा जाता है की ये घर १९ वीं सदी तक शेक्सपियर के वंशजों के पास था, फ़िर ये अतीत की बात हो गई और इसे शेक्सपिअर ट्रस्ट को सौंप दिया गया।

यहाँ से कुछ दूरी पर है शेक्सपियर की बेटी सुसाना और उनके प्रसिद्द डाक्टर पति जौन हाल का घर ,जिसमे बाकी सभी जरुरत के कक्षों के अलावा है, उनका परामर्श कक्ष जहाँ उस समय प्रयोग होने वाले सभी मेडिकल उपकरण और किताबों को देखा जा सकता है घर के बाहर है, एक बगीचा जिसमें उन हर्ब और खुशबू वाले पोधों को लगाया गया है जिन्हें वह अपनी दवाइयों में प्रयोग करते थे।


अब बारी आती है उस स्थान की जहाँ शेक्सपियर की कहानी ख़त्म होती है….एक आलिशान घर जिसे विलियम ने प्रसिद्धि पाने के बाद खरीदा और अपने आखिरी दिन बिताये ,यह स्टार्टफोर्ड का दूसरा सबसे बड़ा घर मन जाता है।

एक बहुत ही शेक्सपियर कालीन ढंग से सजा बृहत् बगीचे वाले इस घर में विलियम शेक्सपियर ने १६१६ में अपनी आखिरी साँस ली ।

इसके अलावा यहाँ है – अन्ने हाथ्वास कॉटेज –जिसे शेक्सपिअर की पत्नी अन्ना का पैत्रक निवास स्थान बताया जाता है।



मैरी अर्देनं फार्म – जहाँ आप वर्तमान से १५७० में अचानक पहुँच जाते हैं ।


रॉयल शेक्सपियर थियेटर भी है जो ब्रिटेन के प्रमुख सांस्कृतिक कार्यक्रमों के गढ़ों  में से एक है।

और पूरा शहर घुमने के लिए है एवोन नदी पर नाव की सैर। 

इतना कुछ है यहाँ कि  समय की पाबन्दी महसूस होने लगती है.और आगंतुक लौट जाते हैं विल्लियम शेक्सपियर की यादों को अपने सीने में संजोय.और नमन करते हुए उस महान लेखक को जिसने अपनी छोटी सी जिन्दगी में साहित्य की दुनिया में इतिहास रच डाला।



स्ट्रेद्फोर्ड, यू  के के दुसरे सबसे बड़े शहर बर्मिंघम से 22 मील की दूरी पर है और  एम् 40 राजमार्ग द्वारा सभी मुख्य सड़कों से जुड़ा हुआ है।
Stratford-upon-Avon railway station के लिए बर्मिंघम के स्नो हिल और मूर स्ट्रीट नामक स्टेशनों से  बेहतरीन ट्रेन ली जा सकती है। लन्दन के मार्लिबोन स्टेशन से भी यहाँ के लिए प्रतिदिन सात सीधी रेलों की व्यवस्था है।


शहर में ठहरने और खाने पीने के लिए सभी आधुनिक और परम्परागत सुविधाएं मौजूद हैं।