ताल तलैये सूख चले थे,
कली कली कुम्भ्लाई थी ।
धरती माँ के सीने में भी
एक दरार सी छाई थी।
बेबस किसान ताक़ रहा था,
चातक भांति निगाहों से,
घट का पट खोल जल बूँद
कब धरा पर आएगी….
कब गीली मिटटी की खुशबू
बिखरेगी शीत हवाओं में,
कब बरसेगा झूम के सावन
ऋतू प्रीत सुधा बरसायेगी।
तभी श्याम घटा ने अपना घूंघट
तनिक सरकाया था
झम झम कर फिर बरसा पानी
तृण तृण धरा का मुस्काया था ।
नन्हें मुन्ने मचल रहे थे,
करने को तालों में छप-छप,
पा कर अमृत धार लबों पर,
कलियाँ खिल उठीं थीं बरबस।
कोमल देह पर पड़ती बूँदें,
हीरे सी झिलमिलाती थीं
पा नवजीवन होकर तृप्त
वसुंधरा इठलाती थी।
देख लहलहाती फसल का सपना,
आँखें किसान की भर आईं थीं
इस बरस ब्याह देगा वो बिटिया,
वर्षा ये सन्देशा लाई थी.
कली कली कुम्भ्लाई थी ।
धरती माँ के सीने में भी
एक दरार सी छाई थी।
बेबस किसान ताक़ रहा था,
चातक भांति निगाहों से,
घट का पट खोल जल बूँद
कब धरा पर आएगी….
कब गीली मिटटी की खुशबू
बिखरेगी शीत हवाओं में,
कब बरसेगा झूम के सावन
ऋतू प्रीत सुधा बरसायेगी।
तभी श्याम घटा ने अपना घूंघट
तनिक सरकाया था
झम झम कर फिर बरसा पानी
तृण तृण धरा का मुस्काया था ।
नन्हें मुन्ने मचल रहे थे,
करने को तालों में छप-छप,
पा कर अमृत धार लबों पर,
कलियाँ खिल उठीं थीं बरबस।
कोमल देह पर पड़ती बूँदें,
हीरे सी झिलमिलाती थीं
पा नवजीवन होकर तृप्त
वसुंधरा इठलाती थी।
देख लहलहाती फसल का सपना,
आँखें किसान की भर आईं थीं
इस बरस ब्याह देगा वो बिटिया,
वर्षा ये सन्देशा लाई थी.
No comments:
Post a Comment