Wednesday, August 19, 2015

लज्ज़तदार स्पेन...

स्पेन खान के पान मामले में अपनी एक खास पहचान रखता है और पुर्तगाल की संस्कृति से काफी मिलता जुलता है. अपने समुंद्री किनारों के कारण स्पेन के खान पान में सी फ़ूड का काफी प्रयोग होने के वावजूद स्पेनवासी अपने फलों और सब्जियों के लिए भी बहुत प्रेम रखते हैं. उनके पेय से लेकर नाश्तों और खाने तक में फलों और सब्जियों के विभिन्न स्वरुप का समावेश दिखाई देता है. मौसम के अनुरूप ही किसी स्थान का खान पान हुआ करता है इसलिए स्पेन में गर्मी से बचाव के लिए कई तरह के पेय एवं खाद्य पदार्थ देखने को मिलते हैं.


सांगरिया स्पेन और पुर्तगाल का एक खास पेय है और भारत में लस्सी की तरह, हर जगह बेहद चाव से पीया जाता है. बड़े बड़े रेस्टोरेंट से लेकर सडकों, समुद्री किनारों तक पर लोग एक ट्रे में सांगरिया के गिलास सजाये, बेचते देखे जा सकते हैं. 

कटे हुए फलों और रेड वाइन और थोड़ी मिठास से बना यह पेय बेहद ताजगी भरा होता है. देखने में गहरे लाल रंग का होता है इसलिए शायद इसे यह शब्द – सांगरिया दिया गया है जिसका स्पेनिश में अर्थ रक्तपात होता है. 

मोहितो भी यहाँ बेहद चलन में है जिसे वाइट रम, चीनी, नीबू का रस, पानी और पुदीने के पत्ते डाल कर बनाया जाता है.यूँ ये पेय कॉकटेल होती हैं परन्तु मांग करने पर इन्हें बिना अल्कोहल के भी बनाकर दिया जाता है. 
एक शुद्ध शाकाहारी पेय और स्पेन की खास पहचान है जो होता तो ठन्डे सूप जैसा है परन्तु इसे कहते सलाद हैं 
ग़ज़पाचो  खीरा, टमाटर, लहसन, और थोड़ी शिमलामिर्च को हलके नमक के साथ पीस कर बनाया गया यह सूप जैसा सलाद स्पेन में गर्मियों के दिनों में ठंडक एवं स्फ्रुतिदायक होता है. इसे हमारी मैड्रिड में रहने वाली एक मित्र ने हमें बना कर खिलाया।


इनके अलावा एक और स्थानीय पेय है जो अधिकतर दर्शनीय स्थलों पर ठेले पर बिकता हुआ मिल जाता है. होरचातास्पेनिश जंगली बादाम से बना हुआ यह पेय कुछ कुछ बादाम दूश जैसा स्वाद देता है परन्तु इन ख़ास बादामों का हल्का मिट्टी का सा स्वाद इसे बेहद ख़ास बना देता है. 


स्पेन वासियों की प्रमुख पसंद है उनकी ताज़ी ब्रेड है जिसे वे पान कहते हैं और जिसके बिना उनका कोई भी खाना पूरा नहीं होता. 

मीट में भी अधिकतर ठन्डे मीट का चलन अधिक है जिसे फांकों में काट कर विभिन्न प्रकार की ब्रेड के साथ दिन के किसी भी समय खाया जा सकता है.

पेय के साथ चुगना के तौर पर तपस का चलन भी मजेदार है, जिसमें तले हुए पकोड़े रुपी पकवान या मसालेदार आलू छोटे पोर्शन में परोसे जाते हैं.

इसके अलावा नाश्ते में जो सबसे ज्यादा मशहूर है वह है स्पेनिश ऑमलेट, जिसे आलू और अंडे के साथ बेक करके बनाया जाता है. 

स्पेन में टमाटर बहुतायत में होता है अत: टमाटर से बने पकवान भी अधिक होते हैं.
सबसे मजेदार होता है ब्रुशेटा- ब्रेड के एक सिके हुए पीस पर हल्का लहसन रगड़ कर उसके ऊपर टमाटर का गूदा डालकर,उसपर हल्का जैतून का तेल और नमक बुरक कर नाश्ते में खूब खाया जाता है. 

मीठे में एक बहुत ही दिलचस्प चीज स्पेन की ख़ास है जिसे चिर्योज कहा जाता है. फीकी जलेबी और डोनट की मिली जुली ये डंडियाँ गर्म चोकलेट के घोल में डुबो कर खाई जातीं हैं और बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक की आँखों में इनके लिए चमक मिल जाती है.

यदि आप स्पेन में हैं और आपने पायेया (paellaनहीं खाया तो आपका स्पेन जाना व्यर्थ माना जायेगा. स्पेन का सबसे प्रसिद्द खाद्य पदार्थ यह पायेया एक तरह का पुलाव है जो वहां हर नुक्कड़ पर मिल जाया करता है और आप शाकाहारी हों या मांसाहारी, दोनों ही रूपों में स्वादिष्ट होता है. 

खूब बड़े बर्तन में बनने के कारण इसे अधिकांशत: एक से अधिक व्यक्ति मिलकर खाते हैं जो शायद स्पेन के पारिवारिक लगाव और मिलकर एक ही बर्तन में खाने की संस्कृति को  दर्शाता है. 

Sunday, August 16, 2015

घर बन पाते हैं फोस्टर केयर ???

पिछले दिनों एक समाचारपत्र में एक खबर थी कि एक २ साल की बच्ची को उसके नाना नानी से लेकर अनाथ आश्रम में पहुंचा दिया गया. क्योंकि नाना नानी को कोर्ट ने बच्ची की देखभाल के लिए उपयुक्त आयु से अधिक पाया। बच्ची की माँ नशे की आदी है और मानसिक रूप से किसी बच्चे को पालने में असमर्थ है इसलिए बच्ची अपने नाना नानी के घर पर थी. बेचारे बुजुर्ग नाना नानी का कहना है कि वह आयु में अधिक अवश्य हैं परन्तु शारीरिक रूप से इतने कमजोर नहीं कि अपनी धेवती की देखभाल न कर पायें और उन्होंने कोर्ट से अपील की थी कि उन्हें उस बच्ची को वापस दे दिया जाए. अब सामाजिक संस्था का तर्क था कि एक तो वह बुजुर्ग हैं दूसरा वह अपनी ही बेटी को सही आयु में नहीं संभाल पाये तो इस उम्र में बेटी की बेटी की परवरिश कैसे कर पाएंगे। अब वह बच्ची फ़ॉस्टर केयर में जाएगी जहाँ कोई काबिल परिवार उसके बड़े होने तक उसकी देखभाल करेगा। 

यूँ यह वाकया पश्चिमी देशों में खासकर यूरोप में बहुत आम है और यहाँ के सांस्कृतिक परिवेश को देखते हुए कई बार इस तरह की व्यवस्था सही भी लगती है. परन्तु फिर भी मन में यही ख़याल आता है कि अपने माता – पिता या दादा -दादी, नाना – नानी कैसे भी हों शायद  संवेदात्मक रूप से एक फोस्टर पेरेंट (पालक माता – पिता ) से बेहतर ही साबित होंगे. कई बार विभिन्न समुदायों के अलग पारिवारिक और सांस्कृतिक परिवेश के कारण कुछ माता पिता सामाजिक संस्थाओं के मापदंडों पर खरे नहीं उतरते और वे बच्चे के हित में बच्चे को उनसे अलग करके फोस्टर केयर में डाल देते हैं. परन्तु अनाथ आश्रम या पालक माता – पिता आखिर गैर ही होते हैं, वे बच्चे की आर्थिक जरूरतें तो पूरा कर सकते हैं जिसके लिए उन्हें सरकार से फंड दिया जाता है,पर क्या वे बच्चे को वह प्यार और अपनापन दे सकते हैं जो उसका अपना परिवार दे सकता है? यह एक सवाल हर देश और परिवेश में बना रहता है.

सामान्यत: एक पालक माता – पिता बनने के लिए आपको ज्यादा कुछ नहीं चाहिए होता –
आप अकेले, तलाकशुदा, साथ रहने वाले या शादीशुदा कुछ भी हो सकते हैं.
जोड़ों को अपने काम काजी घंटो की व्यवस्था में बदलाव करना पड़ सकता है जिससे उनमें से कोई एक बच्चे की देखभाल के लिए पूरा समय उपलब्ध रहे.
यदि आप एकल पालक हैं तो आपको पूरा समय घर पर रहना होगा या लचीला, अंशकालिक रोजगार लेना होगा।
आप एक घर के मालिक या किरायेदार कुछ भी हो सकते हैं परन्तु बच्चे के अनन्य उपयोग के लिए एक बेडरूम आवश्यक होगा।
यह शर्तें पूरी करने के बाद आप फोस्टर पेरेंट्स बनने के हक़दार हो जाते हैं और तब सरकार आपको उस बच्चे की देखभाल के लिए जरूरी सलाह, ट्रेंनिंग, सहायता और साप्ताहिक भत्ता देती है.

परन्तु अब एक समस्या यह है कि आंकड़ों के हिसाब से आज 87000 ब्रिटिश बच्चे फोस्टर केयर में हैं. हर बच्चे को एक स्थिर, प्रेमपूर्ण माहौल की आवश्यकता है परन्तु हर २२ मिनट में एक नया बच्चा यहाँ आ रहा है ऐसे में ब्रिटेन की यह फ़ोस्टरिंग व्यवस्था इसे निभाने के लिए संघर्ष कर रही है.
एक और समस्या जो देखने में आती है, फोस्टर केयर में आने वाले बच्चे अधिकतर व्यावहारिक रूप से बिगड़े होते हैं और सरकार के द्वारा दी गई सुविधाओं के वावजूद किसी दूसरे परिवार को उन्हें सम्भालना मुश्किल होता है. परिणाम स्वरुप कई बार बेहद भयानक कहानियाँ सुनने में आती हैं. जैसे 2011 के दंगे या 2012 में हुआ एक केस, जहाँ एक १४ साल बच्चे ने अपनी पालक माँ को चाकू मार कर मार डाला क्योंकि उसने बच्चे को जल्दी सो जाने के लिए कहा था.

इन सब परेशानियों की वजह से ज्यादा लोग इस व्यवस्था में दिलचस्पी नहीं दिखाते और अंतत: जाहिर है इन सब का असर उन बच्चों पर ही पड़ता है. नतीजतन बेहतर परवरिश के लिए अपने परिवार से दूर किये गए बच्चे बेहतर जीवन जीने में असमर्थ रहते हैं.कई अपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं और अधिकांशत:उनमें नैतिक मूल्यों का अभाव रहता है. 


अनाथ आश्रम और पालक माता -पिता किसी भी हालत में परिवार का विकल्प नहीं बन सकते। ऐसे में जरूरी है कि परिवार से लेकर फोस्टर केयर में डालने से पहले सामाजिक संस्थाएं लकीर की फ़कीर न बनकर कुछ और पहलुओं पर व्यापक तरीके से सोचें। बेहतर हो कि कागजी नियम के अलावा वे मानवीय मूल्यों पर सोच कर बच्चे के हित और उसकी ख़ुशी में फैसला लें.

Saturday, August 1, 2015

अधिकारों की दुविधा....

ज़माना बदल रहा है, ज़माने का ख़याल भी और उसके साथ कुछ दुविधाएं भी. आज इस देश काल, परिवेश  में समय की मांग है कि घर में पति पत्नी दोनों कमाऊ हों. यानि दोनों का काम करना और धन कमाना आवश्यक है खासकर लंदन जैसे शहर में. जहाँ एक ओर बाहर जाकर काम करना और अपना कैरियर बनाना आज की स्त्री के लिए आर्थिक रूप से आवश्यक हो गया है वहीँ उसके अस्तित्व के लिए भी जरुरी होता जा रहा है. 


अब एक और सार्थक कैरियर बनाना उसके अंदर के नारीवादी अधिकारों में आता है तो  वहीं दूसरी और माँ बनना भी उसका अधिकार है जिसे वह छोड़ना नहीं चाहती। अब ऐसे में समस्या यह कि इन दोनों अधिकारों की पूर्ती कैसे हो. एक कामकाजी औरत माँ का फ़र्ज़ कैसे निभाये ? बच्चा पैदा करना उसका अधिकार है, पर समस्या यह कि उस बच्चे की देखभाल कौन करे. 

यूँ पश्चिमी सामाजिक व्यवस्था में यह थोड़ा आसान हो गया है, उनके समाज में नारीवादी क्रांति हुए काफी समय हो गया और उन्होंने अपने इन क्रांति के दिनों में एक समाधान ढूंढ निकाला “नया पुरुष” जो घर में रह सकता था, खाना बना सकता था, कपडे धो सकता था और बच्चे की नैपी भी बदल सकता था. हालाँकि उन माओं को भी अपनी श्रेष्ठता की भावना के चलते इन नए पुरुषों पर अपने बच्चे की सही देखभाल का पूरा भरोसा नहीं था परन्तु फिर भी यह नैनी से बेहतर विकल्प था और इस समाज में बच्चों के छोटे रहते कई परिवारों में हाउस हसबैंड देखे जा सकते हैं. 

परन्तु हमारे एशियाई समाज में इस “नए पुरुष” की उत्पत्ति अभी भी पूरी तरह से नहीं हुई है. वे बेशक लंदन में हों या फिर चीन में, वे परिवेश के आधार पर अधिक से अधिक घर के कामों में हाथ बटा कर एक अच्छे साथी का खिताब तो पा सकते हैं परन्तु बच्चे की देखभाल अभी भी मुख्य: तौर पर माँ का ही जिम्मा माना जाता है. ऐसे में कामकाजी माओं के पास एक ही विकल्प रहता है वह है नैनी। जो उसके बच्चे के हर काम करती है. उसकी जरूरतों का ध्यान रखती है और माँ जब काम से घर वापस आती है तो बच्चा उसे नहाया -धोया, साफ- सुथरा, खाता – पीता उसके गले लगने को और खेलने के लिए तैयार मिलता है. फिर कुछ ही देर बार एक बेड टाइम स्टोरी सुनकर सो जाता है. 

यानि देखा जाए तो जरुरत सबकी पूरी हो रही हैं पर कहीं माँ का दिल कसक जाता है. बच्चे की परवरिश में एक माँ अपने आपको बहुत पीछे पाती है. क्योंकि बच्चे के पैदा होने से कम से कम ११ – १२ साल तक की उम्र तक उस माँ का बच्चे से रिश्ता बस कुछ पलों का ही रहता है. वह बच्चे का कोई काम नहीं करती तो जाहिर है उनके प्रति उसका आत्मविश्वास कम रहता है और आत्मविश्वास कम होने से अधिकार की भावना भी कम होने लगती है और फिर बच्चे के साथ वह असली रिश्ता नहीं बन पाता। अधिकांश समय नैनी के साथ बिताने के कारण बच्चा उसी से ज्यादा जुड़ा रहता है और कई बार तो स्कूल या अन्य स्थानो, आयोजनों में माँ द्वारा निभाये जाने वाले कार्य भी नैनी ही निभाते हुए देखी जाती है. ऐसे में इस प्रगतिशील औरत के अंदर की माँ कसमसा जाती है. रात को सोते हुए जब बच्चा पूछता है “कल स्कूल से लेने आप आओगी न मम्मा ? कोई बात नहीं, देर हो जाएगी तो मैं इंतज़ार कर लूंगा”। तो उस माँ का कलेजा बाहर आ जाता है. उसे लगता है इस नैनी की सुविधा ने उसे एक बुरी माँ बना दिया है, जो अपने बच्चे के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं निभाती। 
एक नैनी बेशक कितनी भी अच्छी हो, वह अपना काम करती है, अपना कर्तव्य निभाती है. बच्चे को माता – पिता का स्नेह नहीं दे सकती और फिर यह बच्चे भी बड़े होकर अपने रिश्तों के प्रति उस तरह का लगाव नहीं महसूस करते। 

अत: अपने इस मातृत्व के कारण बहुत ही माएं बच्चे की परवरिश के दौरान अपने कामकाजी घंटों में परिवर्तन कर लेती हैं, देर रात तक अतिरिक्त कार्य करतीं हैं कि बच्चे के लिए उन्हें पूरा समय मिले। ऐसे में कहीं न कहीं उन्हें अपने कैरियर से समझौता करना ही पड़ता है और इसके लिए वह तैयार रहतीं हैं. 
क्योंकि, आप उन्हें नैनी कहिये, गवर्नेस कहिये, हेल्पर कहिये या केयर टेकर कहिये …कोई भी माँ का विकल्प नहीं हो सकती।