Sunday, July 19, 2015

अनुभव का शहर...

लंदन में जुलाई का महीना खासा सक्रीय और विविधताओं से भरा होता है खासकर स्कूल या कॉलेज जाने वाले बच्चों और उनके अविभावकों के लिए – क्योंकि ब्रिटेन में जुलाई में शिक्षा सत्र की समाप्ति होती हैरिजल्ट आते हैं और फिर जुलाई के आखिरी महीने में गर्मियों की लम्बी छुट्टियां हो जाती हैं. जहां छोटे बच्चों का प्रमुख उत्साह छुट्टियों, एवं उन्हें कैसे मनाना है, कहाँ घूमने जाना है इस सब बातों को लेकर रहता है वहीं उनके माता पिता के लिए छुट्टियों के दौरान उनकी देखभाल और उन्हें व्यस्त रखने की जुगत का समय भी यही होता है. 
परन्तु इनसब से अलग एक और खास बात होती है वह यह कि नवयुवकों के लिए यह समय अपने लिए कुछ कार्यानुभव ढूंढने और करने का भी होता है. ब्रिटेन में १३ साल के बाद कुछ सिमित घंटों एवं बच्चों के हित में कुछ शर्तों के साथ उन्हें पार्ट टाइम काम करने या कार्यानुभव लेने की इजाजत है. अत: इन बच्चों को इनकी उम्र के मुताबिक स्कूल के समय और पढाई के अलावा उनकी रूचि और आगे के कैरियर से सम्बंधित असली ऑफिस या काम की जगह पर जाकर कुछ समय कार्यानुभव लेने के लिए उत्साहित किया जाता है. 
इनमें १४-१६ साल तक के बच्चे अधिकतर किसी ऑफिस मेंकिसी दूकान में या स्कूल में दिन में कुछ घंटे या एक – दो हफ़्तों के लिए वहां काम करने के लिए जाते हैं. हालाँकि इस गतिविधि का मुख्य उद्देश्य स्कूल और घर से निकल कर वास्तविक दुनिया के काम -काज देखने सीखने और वास्तविक कार्य का अनुभव लेने के लिए होता है परन्तु अधिकांशत: देखा जाता है कि कार्यस्थल पर ये बच्चे या तो किसी के पास बैठकर उसे या उसके कम्प्यूटर की स्क्रीन घूरते रहते हैं या इंतज़ार करते रहते हैं कि कोई बड़ा आये तो उसे चाय कॉफ़ी पूछ करबना कर दे दें या बहुत हुआ तो फोटो कॉपी करनापेपर यहाँ से वहां पहुँचाना जैसे बेसिक काम कर दिए. 
जहां न तो उन्हें अपने कैरियर से सम्बंधित किसी काम का कोई अनुभव मिलता है न ही उन्हें किसी काम को करने की आदत ही हो पाती है. 

उसपर भी एशियाई मूल के माता पिता तो इन कामों में भी बेहद सिलेक्टिव हुआ करते हैं. जो काम उनके बच्चे को करना चाहिए उनकी लिस्ट बेहद छोटी और जो नहीं करना चाहिए उसकी लिस्ट बेहद लम्बी हुआ करती है. जैसे कि हर माता पिता चाहते हैं उनका बच्चा किसी बड़ी कंपनी में अच्छे सेटअप में कार्यानुभव के लिए जाए. कोई नहीं चाहता कि उनका बच्चा किसी सामाजिक संस्था में किसी सेवा कार्य से जुड़े किसी कार्य को करे. ऐसे में इन बच्चों के लिए ये कार्यानुभव एक छोटे स्कूल के माहौल से निकल कर एक बड़े स्कूल में बड़े लोगों के माहौल को देखने के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता। वह अपने कैरियर और जिंदगी को लेकर वैसा ही कन्फ्यूज और कूप मंडूक बने रहते हैं.

ऐसे में पिछले महीने लन्दन के वेस्ट फिल्ड मॉल में बच्चों का एक खेल केन्द्र खोला गया है. जो बच्चों के बीच महंगी टिकट के वावजूद बेहद लोकप्रिय हो रहा है. “सिटी” किडजानिया” नाम का यह प्ले सेंटर बच्चों के लिए पूरे एक शहर की तरह है. जहाँ अस्पताल, पोस्ट ऑफिस, पुलिस स्टेशन, फायर स्टेशन, स्कूल, थिएटर आदि ६० से भी ज्यादा प्रतिष्ठान हैं जहाँ बच्चे जाकर असली दुनिया के इन असली जगहों पर कैसे काम होता है यह खुद काम कर के देखते हैं. वहाँ उन्हें इन संस्थानों में काम के पैसे भी दिए जाते हैं और उन्हें कैसे संभालना है कैसे खर्च करना है आदि भी बाताया जाता है. इन अलग -अलग जगह पर अलग तरह के काम करके बच्चा न सिर्फ यह जानने में सक्षम होता है कि किस कार्य की क्या अहमियत है और किस कार्य में अधिक पैसा मिलता है बल्कि वह यह भी समझ पाता है कि उसे कौन सा काम करने में सबसे ज्यादा आनंद एवं संतुष्टि मिलती है. उसे समझ में आता है जिंदगी में काम पैसे के लिए नहीं जीने के लिए किया जाता है और कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता. बहुत से बच्चे यह कहते हुए पाए गए कि उन्हें पता ही नहीं था कि फलाना – फलाना भी एक काम होता है और उन्हें बाकियों से ज्यादा तनख्वाह मिलती है.

घर में बैठकर विडियो गेम्स में दुनिया ढूँढने वाले और स्कूल में एक -एक प्रतिशत के लिए तनाव झेलने वाले हमारे भविष्य के इन कर्णधारों के लिए इस तरह के केन्द्रों और गतिविधियों की आज बहुत अहमियत है. एकाकी परिवारों, कामकाजी माता पिता और अपने कमरे में अपने प्ले स्टेशन और फोन में सिमटी इस पीढ़ी के लिए बेहद आवश्यक है कि वह बाहर निकल कर वास्तविक समाज और उसकी वास्तविक समस्याओं से रूबरू हो.


Saturday, July 11, 2015

यूनान का पराभव...

 

एक पुरानी यूनानी (Greek) पौराणिक कथा है कि जब ईश्वर संसार की रचना कर रहा था तो उसने एक छलनी से मिट्टी छान कर पृथ्वी पर बिखेरी. जब सभी देशों पर अच्छी मिट्टी बिखर गई तो छलनी में बचे पत्थर उसने अपने कंधे के पीछे से फेंक दिए और उनसे फिर ग्रीस (यूनान) बना. 


बेशक यह एक किवदंती रही हो परन्तु आज के हालातों में एकदम सच जान पड़ती है. एक उच्च जीवन स्तर वाला विकसित राष्ट्र कैसे कुछ ही समय में पतन के कागार पर खड़ा हो गया यह कोई ऊपर वाले का खेल सदृश्य ही लगता है. 


यह वह देश है जहाँ की राजधानी एथेंस दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है. यह वह देश है जहाँ सुकरातप्लेटोअरस्तु जैसे विद्द्वान हुए जिन्होंने अपने दर्शन से पूरी दुनिया का मार्गदर्शन किया। यह वह देश है जिसने दुनिया को विज्ञान और गणित की परिभाषाएं सिखाईं और आज दुनिया में जितनी भी भाषाएँ बोली जातीं हैं उनमें ग्रीक भाषा के सर्वाधिक शब्द प्रचलित हैं. और यह वही देश है जहाँ से संसार के सबसे प्रसिद्द ओलम्पिक खेलों की नींव पड़ी. 


हालाँकि जब इन खेलों की शुरुआत एथेंस में हुई थी तो इनका स्वरुप बेहद अलग हुआ करता था. और जीतने वालों के लिए कोई सोनाचांदी,और कांस्य पदक नहीं होता था बल्कि विजेता के लिए सिर्फ जैतून का माल्यार्पण और संभवतः कुछ पैसे या जैतून के तेल और सैलेरी से भरे जार हुआ करते थे। पूरे ग्रीस से हजारों की तादाद में लोग इन खेलों को देखने आते थे. यहाँ तक कि युद्ध के समय भी यह आयोजन रुकता नहीं था. ओलम्पिक के समय यूनानी संघर्ष विराम में एक महीने के लिए शांत बैठ जाते थे जिससे कि यूरोप के विभिन्न भागों से खिलाड़ी और दर्शक खेलों के लिए आ सकें। महान सिकंदर का देश जो दुनिआ भर की अकूत सम्पति और राज्य का मालिक था आज सिकंदर की तरह खुली मुट्ठी दिखा रहा है. उसपर भारी क़र्ज़ है जिसे वह चुकाने में असमर्थ है और अब उसकी स्थिति इधर कुआं उधर खाई” वाली हो गई है. 


हालत यह कि पूरे देश के बैंक १ हफ्ते से भी अधिक समय से बंद हैं. नागरिकों को अपना ही पैसा ६० यूरो से अधिक एक दिन में निकालने की इजाजत नहीं है और आगे क्या होगा किसी को समझ में नहीं आ रहा. क्योंकि ग्रीस एक छोटा सा देश हैजहाँ न तो कृषि योग्य भूमि अधिक है न रोजगार के अन्य साधन मौजूद हैं. पर्यटन ग्रीस का मुख्य व्यवसाय है जहां एक दर्जन से भी अधिक विश्व धरोहर स्थल हैं और ग्रीस एक खासा लोकप्रिय पर्यटन स्थल है. अपने बंदरगाह और शिपमेंट को भी ग्रीस अपना उद्द्योग ही मानता रहा है. और अपने उच्च जीवन स्तर को बनाये रखने में किसी भी तरह के दिखावे से भी परहेज नहीं किया है. 


उनकी आर्थिक और राजनैतिक आपदा का एक कारण २००४ के ओलम्पिक खेलों को भी माना जाता है, जिसके लिए जो अंतररार्ष्ट्रीय कर्ज उन्होंने लिया उसके भारी भरकम व्याज को चुका पाने में ग्रीस असमर्थ रहा. इन खेलों पर जितना खर्च किया जाता है उतना इनसे कमाया नहीं जाता. ग्रीस में इनके लिए बनाई गई सुविधाओं की ठीक से देखभाल नहीं की जाती. खेलों के बाद उन्हें तोड़ फोड़ दिया जाता है. यहाँ तक कि घोर आर्थिक तंगी और कर्ज के वावजूद भी ग्रीस ने २००४ में ओलम्पिक खेलों की मेजबानी की. 


फिलहाल स्थिति यह है कि ग्रीस की जनता ने यूरोपियन यूनियन की शर्ते मानने से इंकार कर दिया है. जिसके लिए यु के में रहने वाले ग्रीस के लोग जनमत संग्रह में अपना वोट देने के लिए अपनी मातृ भूमि गए थे. क्योंकि वहां के नियम के मुताबिक वे तभी इसमें हिस्सा ले सकते थे जब की वह ग्रीस लौटते। पिछले शनिवार को लंदनलीड्सब्रिस्टलएडिनबरालिवरपूल आदि शहरों में इस बाबत रैलियां भी हुईं जहां प्रदर्शनकारियों ने जनमत संग्रह की पूर्व संध्या पर ग्रीस के कर्ज को रद्द करने का आग्रह किया। हजारों लोग ट्राफलगर स्क्वेयर में ग्रीक एकमत विरोध में शामिल हुए. अब देखना यह है कि ग्रीस के भविष्य में क्या लिखा है. 


दुनिया केआकर्षण”में एन हैनरिच लिखते हैं कि ग्रीस को औसतन  250 से अधिक दिन सूर्य के प्रकाश का आनंद मिलता है या यूँ कहें कि, एक साल में तीन हजार धूप वाले घंटेजो उसे दुनिया में सबसे अधिक सूर्य के प्रकाश वाले देशों में एक और यूरोप का सबसे अधिक धूप वाला देश बनाता है. क्या स्वर्णिम इतिहासधनी संस्कृति और खूबसूरत व प्रतिष्ठित देवी देवताओं वाला यह देश फिर से प्रकाशवान हो पायेगा या आर्थिक तंगी के अँधेरे में खो जायेगावक़्त ही बताएगा।    






Sunday, July 5, 2015

आधुनिक वॉस्को डी गामा...

अपनी सभ्यता, सुरम्यता और जीवंतता के लिए विश्व फलक पर मशहूर लंदन आने वाले पर्यटकों की संख्या किसी काल समय की मुहताज नहीं है. भारत से भी यहाँ वर्ष पर्यन्त पर्यटकों की अच्छी खासी तादाद देखी जा सकती है. हर पर्यटक का किसी स्थान के प्रति अपना नजरिया होता है तो कुछ पूर्वाग्रह भी होता होगा. ऐसे में ही कोई बाहर से कुछ दिन यहाँ आकर, घूम कर कहे कि यहाँ के मूल निवासियों के दिल में बाहर से आये समुदायों के लिए नफरत है तो इसे सिवाय पूर्वाग्रह या अनुभवहीनता के और क्या कहा जा सकता है. 
न ही यायावरी उन लोगों के लिए सार्थक है जो अपनी कूप मण्डूकता में यहाँ के वासियों को चरित्रहीन की संज्ञा पकड़ा देते हैं. 

हर देश या शहर का अपना एक चरित्र होता है. एक संस्कृति और अनुशासन होता है. कुछ नियम कायदे भी होते हैं. परन्तु उन्हीं में कुछ स्थान ऐसे भी होते हैं जो अपनी मूल विशेषताओं को संभालते हुए भी बाहर से आने वाली हर संस्कृति को खुली बाहों से स्वीकारते हैं. हर धर्म, समुदाय की इज्जत करते हैं और उन्हें अपनी तरह से अपनी संस्कृति के साथ जीने का पूरा मौका देते हैं. लंदन एक ऐसा ही विविध जातीय शहर है जहाँ ३०० से भी ज्यादा भाषाएँ बोली जाती हैं और ५० से भी अधिक समुदाय के लोग रहते हैं. और रहते ही नहीं बल्कि अपनी संस्कृति और परिवेश को पूरी तरह से जीते हुए रहते हैं. अपने त्योहारों को शिद्दत से मनाते हैं अपने बच्चों को अपने संस्कार देते हैं वहीं इस देश में भी एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभाते हुए यहाँ के नियम कानून का पूरी तरह पालन करते हैं. 

कहने का तात्पर्य है कि लंदन में रहने वाले बाहर से आये समुदाय के लोगों को न तो यह देश पराया मानकर भेदभाव करता है न ही यह लोग इस देश को पराया मानकर अपना जीवन जीते हैं. 

यहाँ दिवाली पर पटाखे छुटाने के लिए रात ११ बजे बाद भी कोई मनाही नहीं है, यहाँ के समुन्द्र तट पर गणपति विसर्जन की भी व्यवस्था होती है, मुख्य सड़क से रथ यात्रा जाती है. रमज़ान के महीने में राशन की दुकानो पर खास छूट होती है. ईद, दिवाली, क्रिसमस सब मिलकर पूरे जोश से मनाते हैं. मंत्री मडल में गैर स्वदेशी लोगों को भी बराबर का हक़ और जगह दी जाती है. शहर के मुख्य चौराहे पर महात्मा गांधी की मूर्ति लगाईं जाती है. सभी धर्म और समुदाय के प्रार्थना स्थल बनाने के लिए खुले दिल से सहयोग किया जाता है.
आदि काल से ही यात्री अपनी यात्राओं के माध्यम से विभिन्न परिवेशों को देखने को लालायित रहे हैं और अपने अनुभवों को बांटने की कोशिश करते रहे हैं. ऐसे बहुत से यात्री और लेखक हुए जिन्होंने विभिन्न देश, उनकी संस्कृति और परिवेश से अपने लेखन के द्वारा आमजन  को परिचित कराया और इसके लिए उन्होंने ढेरों लंबी यात्राएं कीं, गहन शोध किया, अध्ययन  किया, उस देश, स्थान की धूल फांकी तब जाकर उसके बारे में कुछ कहा. परन्तु अब समय कुछ और है अब न तो यात्राएं इतनी कठिन रह गई हैं न ही परिवेश इतने अनजाने। तकनिकी और सूचना संचार- सम्पर्क की क्रांति ने जैसे पूरी दुनिया को एक मुठ्ठी तक सीमित कर दिया है. ऐसे में जहाँ कोई भी सूचना हमसे सिर्फ एक क्लिक की दूरी पर होती है वहां इसकी प्रमाणिकता पर भी उतने ही सवाल खड़े हो जाते हैं.
जाहिर है इसी तरह हर कोई यात्री जो २- ४ दिन के लिए किसी स्थान विशेष को एक पर्यटक की भांति देखता है वह उन पर अपनी संक्षिप्त टिप्पणी तो दे सकता है परन्तु उस स्थान विशेष की विशेषताओं और खामियों का विस्तार से वर्णन नहीं कर सकता। वह अपने सीमित अनुभवों का तो बखान कर सकता है परन्तु उस स्थान या वहां के लोगों के स्वभाव एवं चरित्र पर फैसला नहीं सुना सकता। 

अब यदि आप किसी देश में घूमने गए हैं और आपका मेजबान आपको पार्क में घुमाने नहीं ले जाता तो यह समस्या आपके और आपके मेजबान की है न कि पार्क की. जाहिर है आप बिना वह पार्क देखे यह फतवा नहीं सुना सकते कि आपको वहां इसलिए नहीं ले जाया गया क्योंकि वहां के पार्कों का चरित्र अच्छा नहीं है. इसी तरह चार दिन कहीं फाइव स्टार होटल में कुछ खास लोगों के साथ बिता कर आप उस देश के नागरिकों का चरित्र प्रमाणपत्र नहीं बाँट सकते। 

अवलोकन एक कला है और उसे खुले दिल और दिमाग से ही ठीक तरह से किया जा सकता है. उसके लिए अपने चोले से निकल कर उन लोगों की आत्मा से मिलना होता है जिनके बारे में अपने विचार आप रखने जा रहे हैं. उन लोगों की पृष्ठ भूमि, जीवन चर्या, काम काज, कार्य संस्कृति, शिक्षा, आदि सभी कुछ समझना होगा तब कहीं जाकर आप उस देश या उस देश के लोगों के प्रति कोई प्रामाणिक टिप्पणी करने के लायक होते हैं।