Monday, June 29, 2009

आरजू


रो रो के धो डाले हमने, जितने दिल में अरमान थे। 
हम वहाँ घर बसाने चले, जहाँ बस खाली मकान थे। 

यूँ तो दिल लगाने की, हमारी भी थी आरज़ू, 

ढूँढा प्यार का कुआँ वहाँ, जहाँ लंबे रेगिस्तान थे। 
हम तो यूँ ही बेठे थे तसव्वुर में किसी के,
बिखरे टूट के शीशे की तरह कितने हम नादान थे। 
एक अदद इंसान की चाह में, बरसों बिताए तन्हा यहाँ 
पर पाते वहाँ इंसान कैसे, जहाँ सिर्फ़ कब्रिस्तान थे.
जला डाली “शिखा” कि हो रौशन उनकी राह मगर 
पर इस नाजुक सी लौ के कहाँ वो कदरदान थे।

Tuesday, June 16, 2009

जूनून

जानता है जल जायेगा 
फिर भी 
जाता है करीब शमा के वो 
ये जूनून पतंगे का हमें, 
इश्क करना सिखा गया। 
बोस्कोदेगामा जब निकला कश्ती पर 
खतरों से न वो अज्ञात था। 
पर जूनून उसके भ्रमण का हमें 
अपने भारत से मिला गया। 
जो न होता जूनून शहीदों में 
कैसे भला आजादी हम पाते 
जो न होता जूनून भगीरथ को 
कैसे गंगा जमीं पर वो लाते। 
जनहित में हो जूनून अगर 
ये धरती बन जाये स्वर्ग मयी 
पर बढ जाये जो गलत डगर 
तो बन जाये नरक यहीं 
तमन्ना ,ख्वाइशे,सपने ,जज्बे 
हर इंसान के अन्दर होते हैं 
हद्द से गुजरने जब ये लगें 
बस उसे जूनून हम कहते हैं.